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Anupam Mishra
था चारो ओर छाया घना अँधियारा उसमें रौशनी ने आकर दिया सहारा पर कमबख़्त मन तो ठहरा बावरा, अँधेरे में ही ढूँढने चला अपना किनारा। बावरा मन
Rohit (ख़ानाबदोश)
पिंजरों से पंछियों को तो ना जाने कितनी बार आज़ाद करा होगा कभी अपने मन के पंछी को उड़ान दी है #खानाबदोश बावरा मन
Shreyashi Mishra
सुनो ,,, अच्छा लगता है अब, खुद का हाथ पकड़ राहो पर चलना, बस यूं ही तुम्हे याद करना ,हल्के से मुस्कुराना ।। फासले कहा है दरमियां हमारे, लगता है अच्छा हवाओ से बाते तुम्हारी करना।। लोग कहते है मेरे एहसासों को शायरी ,उन्हें पता नही ,कलमो से ही शिखा है मैने इश्क़ करना।। अकेले ही रहते है,,खुद में खोए से फिरते है। तबाह कर दिए है खुद को इन राहो में,मुझे पसंद है अब अल्फाज़ो से खेलना।। #बावरा मन
Amit Singhal "Aseemit"
तुझे देखे बिना हुआ जाए मेरा मन बावरा, यह तो बता दे तू कब आएगा मेरा साँवरा। तुझको मेरी ज़िंदगी अगर लगती है प्यारी, इस होली पर मिलन की कर लेना तैयारी। ©Amit Singhal "Aseemit" #मन #बावरा
दूध नाथ वरुण
मन बावरा भयो अब मेरा, कुछ समझे न कुछ जाने न। इश्क की बातें ये करता है, कितना मनाएं ये माने न।। ©दूध नाथ वरुण #मन बावरा
Shaikh Akhib Faimoddin
बावरा मन मन संमदर है तुफानों को छुपाए बैठा है| न छेडो वो तराने बडी मुश्कील से भुलाए बैठा है| मन है बावरा जो खुदको जलाए बैठा है| कसते हैं ताने लोग फिर भी होठों को सिलाए बैठा है| सींप तो कईं मिले इसे ना जाने क्यों मोती गवाए बैठा है| न होगा यहाँ पे सवेरा फिर क्यों आस लगाए बैठा है| मन की बातें मन ही जाने जो काटों की बगीया सजाए बैठा है| मिट रहा है तन फिर भी आरमान दबाए बैठा है| पत्थर की है ये दुनिया क्यों मिट्टि के घर बनाए बैठा है| धन की भाषा समजनेवालों को क्यों प्यार के गीत सुनाए बैठा है| बनाया तन क्यों बनाया मन ये सोचकर रब भी पछताए बैठा है| बावरा मन
Raj
रोशनी निकला रोशनी की तलाश में ही था जाने कब अंधेरों का होके रह गया पता ही नहीं चला मन बावरा
Shreyashi Mishra
किसी के यादो के साये लगते हो ,क्यों इतना खुद में खोए रहते हो। दिन है अब भी तुम्हारा ही ,यूँ रातो को क्यों जागते रहते हो।। क्यो निहारते हो नदियों को बेवजह ,हवाओ को तुम समुन्दर लगते हो।। बावरा मन