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Nagvendra Sharma( Raghu)

हकीकत है या हसीन #ख्वाब है तू, मेरी जिन्दगी का पुरा हिसाब है तू, मेरे भरोसे की आखरी निशानी, मेरे प्रेम का आखरी चिराग है तू, मेरी जिंदगी में #foryou #किरदार #yqhindi #मुस्कुरा #हथियार #Krishnalove #nagvendrasharma

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हकीकत है या हसीन ख्वाब है तू, 
मेरी जिन्दगी का पुरा हिसाब है तू,
मेरे भरोसे की आखरी निशानी, 
मेरे प्रेम का आखरी चिराग है तू,

मेरी जिंदगी में मेरा हथियार है तू, 
तूणीर है, कृपाण है, तलवार है तू,
बाँध लिया कफन मैंने भी माथे पर, 
हर युद्ध में साथ मेरे रथ-सवार है तू,

मेरी कहानी में मेरा ही किरदार है तू, 
मेरे साँसों की पहली हकदार है तू,
तु मुझमें है तो क्या माँगु खुदा से, 
मुस्कुरा रही है मतलब समझदार है तू..।। हकीकत है या हसीन #ख्वाब है तू,
मेरी जिन्दगी का पुरा हिसाब है तू,
मेरे भरोसे की आखरी निशानी,
मेरे प्रेम का आखरी चिराग है तू,

मेरी जिंदगी में

रजनीश "स्वच्छंद"

शीला लेख।। छेनी हथौड़ी हाथ मे ले, स्मृतियों की वक्षशीला पर, शब्द हूँ मैं कुरेदता।। बन दधीचि अस्थियों का ले तूणीर तरकश में भर, तम हूँ मैं भेद #Poetry #Quotes #kavita #hindikavita #hindipoetry

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शीला लेख।।

छेनी हथौड़ी हाथ मे ले, स्मृतियों की वक्षशीला पर,
शब्द हूँ मैं कुरेदता।।
बन दधीचि अस्थियों का ले तूणीर तरकश में भर,
तम हूँ मैं भेदता।।

धीर स्थिर अन्तःकरण का, नीर ले आंखों में भर,
तार हूँ मैं छेड़ता।
मूक बधिर मैं सूरदास, शब्ददृष्टि संग लिए समर
पार हूँ मैं देखता।।

शिशु, बालक, वयस्क, वृद्ध, सबके मन वास कर,
ज्ञानचक्षु मैं फेरता।
कोई सबल, निर्बल हो या हो दिनचर या निशाचर,
दर्द सबकी टेरता।।

पौरुष का हुंकार भी मैं, नारी का गहना मान बन,
निज से हूं झेंपता।
पवनसुत का बल कभी तो कभी कान्हा समान बन,
वस्त्र भी हूँ फेंकता।।

शब्द की महत्ता जो समझे, बन स्तंभ अशोक का,
ज्ञान हूँ मैं टेकता।।
बन शीला लेख मैं, खुशी से परे, बिन शोक का,
जन जन को मैं सेवता।।

©रजनीश "स्वछंद" शीला लेख।।

छेनी हथौड़ी हाथ मे ले, स्मृतियों की वक्षशीला पर,
शब्द हूँ मैं कुरेदता।।
बन दधीचि अस्थियों का ले तूणीर तरकश में भर,
तम हूँ मैं भेद

रजनीश "स्वच्छंद"

संस्कृति।। आदि से अनंत तक, डाकुओं से संत तक। मैं ही तेरा सार हूँ, कृष्ण से कबीर पंथ तक। रौशन हुआ मैं जल रहा, #Poetry #Quotes #kavita

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संस्कृति।।

आदि से अनंत तक,
डाकुओं से संत तक।
मैं ही तेरा सार हूँ,
कृष्ण से कबीर पंथ तक।

रौशन हुआ मैं जल रहा,
कम्पित धरा में चल रहा।
मैं विष्णु और महेश हूँ,
ये जग है मुझमे पल रहा।

विष पीये मैं नीलकंठ,
मथुरा काशी धाम हूँ।
कृष्ण की उदंडता हूँ,
राम का प्रणाम हूँ।

भीष्म का प्रण हूँ मैं,
वृहद समर का रण हूँ मैं।
तूणीर हूँ अर्जुन का मैं,
दाउ भीम का घन हूँ मैं।

मैं प्रलय, मैं शांत धार,
विजेता का मैं कंठ हार।
मैं दवानल मैं प्रबल,
मैं वेदश्लोक मैं हूं सार।

मैं वेद भी पुराण भी,
मैं हूँ रथी सुजान भी।
कृष्ण सा मैं सारथी,
वाणी भी मैं कृपाण भी।

मैं सीख हूँ, मैं ज्ञान हूँ,
आधुनिक भी और पाषाण हूँ।
मैं द्वंद्व द्वेष क्लेश हूँ,
मैं ही विधि और त्राण हूँ।

©रजनीश "स्वछंद" संस्कृति।।

आदि से अनंत तक,
डाकुओं से संत तक।
मैं ही तेरा सार हूँ,
कृष्ण से कबीर पंथ तक।

रौशन हुआ मैं जल रहा,

Chanchal Jaiswal

ना जाने कितनी शालाएँ ना जाने कितने सभागार जाग्रत वाणी वो तूर्य हुई हुई कभी तूणीर बाण हुआ कभी गाण्डीव प्रखर पाञ्चजन्य का नाद शिखर। पुलकित मे #ToYou #happyrepublicday #mybelovedcountry #लाज़िमहैकिहमसबदेखेंगे #foreverinlove #i❤my

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ना जाने कितनी शालाएँ 
ना जाने कितने सभागार
जाग्रत वाणी थी तूर्य हुई
हुई कभी तूणीर बाण
हुआ कभी गाण्डीव प्रखर
पाञ्चजन्य का नाद शिखर।
पुलकित मेधा सौरभ भर-भर
फड़कता शौर्य साहसी भुजदल।
केशर सा जगमग भाल भानु
उत्तुंग हिमालय सा सीना
हरियाला हृदय भावभीना
कण्ठ-कण्ठ जयघोष विपुल
स्पंदन-स्पंदन राष्ट्रवन्दन।
गौरवशाली इतिहास प्रवर
प्रेरित होते जनगण सुनकर
नन्हें-नन्हें से बाल नवल
विकसेगा इनमें भारत कल।

(शेष कविता caption में...) ना जाने कितनी शालाएँ 
ना जाने कितने सभागार
जाग्रत वाणी वो तूर्य हुई
हुई कभी तूणीर बाण
हुआ कभी गाण्डीव प्रखर
पाञ्चजन्य का नाद शिखर।
पुलकित मे

रजनीश "स्वच्छंद"

दिखता नही, पर वो है।। अश्रुपूर्ण नेत्र, दिखते नही, पर हैं। हैवानों के क्षेत्र, दिखते नही, पर हैं।। चाय की प्याली संग चर्चा राजनीति की, बाते

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दिखता नही, पर वो है।

read the poem in descrption section #NojotoQuote दिखता नही, पर वो है।।

अश्रुपूर्ण नेत्र, दिखते नही, पर हैं।
हैवानों के क्षेत्र, दिखते नही, पर हैं।।
चाय की प्याली संग चर्चा राजनीति की,
बाते

Nitin Kr Harit

हे पार गगन के आवासी, अब तो कुछ ध्यान करो, अब दुर्दिन है, अति विषम घड़ी, अब तो उत्थान करो। अब प्रातःकाल घर घर आंगन, खगकुल के कलरव शब्द नहीं, #yqbaba #yqdidi #yqhindi #dashera #NitinKrHarit

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तुम इस अवनि के सार गर्भ, ये अवनि सार तुम्हारी है,
ये व्याकुल तो तुम व्याकुल, किस कारण नाथ बिसारी है?
क्यों विमुख हुए दिनों के नाथ, किस कारण धीरज धरा हुआ?
क्या भूल गए है कांधों पर, तूणीर अभी तक भरा हुआ।
जो काल दंत को काट सके, एक सर संधान करो,
अब दुर्दिन है, अति विषम घड़ी, अब तो उत्थान करो,

हे पार गगन के आवासी, अब तो कुछ ध्यान करो,
अब दुर्दिन है, अति विषम घड़ी, अब तो उत्थान करो।

पूरी रचना अनुशीर्षक में पढ़ें  हे पार गगन के आवासी, अब तो कुछ ध्यान करो,
अब दुर्दिन है, अति विषम घड़ी, अब तो उत्थान करो।

अब प्रातःकाल घर घर आंगन, खगकुल के कलरव शब्द नहीं,

रजनीश "स्वच्छंद"

आहत।। आहत, हां, आहत हूँ मैं, आहत हूँ अपनेआप से। अंदर उमड़ती, दुर्भावनाएं अनायास से। आहत हूँ, #Poetry #kavita

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आहत।।

आहत,
हां, आहत हूँ मैं,
आहत हूँ अपनेआप से।
अंदर उमड़ती,
दुर्भावनाएं अनायास से।
आहत हूँ,
अपनी अकर्मण्यता,
और अपने ही एहसास से।
माता पिता की भावनाएं,
उनके जीवंत आस से।
कर्म की पूजा, कब की मैंने,
सिवा इसके आदत सब की मैंने।
आओ, तुम भी देखो,
आओ देखो मेरे हालात को।
आज लड़ता हूँ खुद से,
आओ देखो उलझे मेरे ज़ज़्बात को।
किस ख़ातिर जन्म हुआ मेरा,
किस ख़ातिर।
नाज़िर बना हूँ, बही-खाता लिए,
कैसा नाज़िर।
आहत हूँ,
शकुनि की तरह अपनी सहोदरा के लिए।
किस कुल का नाश करूँ,
समजा की हत्या कैसे इस धरा के लिए।
कुल-कलंकित, 
आत्मा विक्षिप्त,
सार-रहित प्राण-वायु,
मुर्दा-गंध लिप्त।
हृदय गति, अतिमन्द,
नाड़ी स्थूल।
दीर्घता का सूक्ष्मीकरण,
उदर पड़ते शूल।
आत्मा पड़ी घृणित,
क्षत-विक्षत।
शापग्रस्त, शापग्रस्त,
निज शापग्रस्त।
चढ़ा तूणीर, प्रत्यंचा तान,
निज-व्याध है ललकारता।
प्रण-जड़ित मृत्यु आस में,
भीष्म हृदय है सालता।
आक्षेप दोष-मुक्त है,
पाप-निवारण यंत्रित हुआ।
श्रमिक कार्मिक नहीं,
जीव-कर्म भी मंत्रित हुआ।
चित्कारऔषधि की खोज में,
मन यहां वानर हुआ।
संजीवनी की तलाश में,
मन-सिंह भी कातर हुआ।
ये जन्म कब स्व-अवतार था,
टपकता स्वार्थ-लार था।
दूषित हृदय कलुषित पड़ा,
रक्षक भी है मूर्छित खड़ा।
अहो सर्प-दंश,
आ नवजीवन संचार कर।
युधिस्ठिर के सत्य पर,
आ द्रोण का संहार कर।
आहत पड़ा था धर्म तब,
आहत हुआ मज़हब यहां।
आहत हूँ शब्द उकेरता,
आहत हुआ मरघट यहां।
लिपि जो स्वीकार्य हो,
अतिसंयोक्तियों से हो परे।
हो रहे आहत जो तुम,
फिर क्यूँ, हाथों पे हाथ हो धरे।

©रजनीश "स्वछंद" आहत।।

आहत,
हां, आहत हूँ मैं,
आहत हूँ अपनेआप से।
अंदर उमड़ती,
दुर्भावनाएं अनायास से।
आहत हूँ,

Nojoto Hindi (नोजोटो हिंदी)

नागार्जुन की कलम से प्रस्तुत है- उनकों प्रणाम... जो नहीं हो सके पूर्ण–काम मैं उनको करता हूँ प्रणाम । कुछ कंठित औ' कुछ लक्ष्य–भ्रष्ट जिनके अ #Kalamse #Nagarjun

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 नागार्जुन की कलम से प्रस्तुत है- 
उनकों प्रणाम...
जो नहीं हो सके पूर्ण–काम
मैं उनको करता हूँ प्रणाम ।
कुछ कंठित औ' कुछ लक्ष्य–भ्रष्ट
जिनके अ

रजनीश "स्वच्छंद"

चलो मैं राह दिखाता हूँ।। इस धधकती आग में तुम्हे मैं जल दिखाता हूँ, मुश्किल रही जो राह उस पर चल दिखाता हूँ। मौन होकर तुम यहाँ क्यूँ खड़े मझध #Poetry #Quotes #Life #kavita

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चलो मैं राह दिखाता हूँ।।

इस धधकती आग में तुम्हे मैं जल दिखाता हूँ,
मुश्किल रही जो राह उस पर चल दिखाता हूँ।

मौन होकर तुम यहाँ क्यूँ खड़े मझधार में,
सीख लो तुम जश्न मनाना जीत में हार में।
हार ही तेरे कदम के बढ़ने का अभिप्राय है,
हर कदम पे है खुशी, या फिर छुपी हाय है।
ज़िन्दगी अनमोल है, सोच तू और जान ले,
है अमर तू नहीं, खुद को समझा तू मान ले।
विष जो पीता है वही, नर से शंकर हुआ,
ध्यान तू इतना लगा, क्यूँ मन तेरा बंजर हुआ।
आ तेरे चश्मे से तुम्हे तेरा मैं कल दिखाता हूँ।
मुश्किल रही जो राह उस पर चल दिखाता हूँ।

है देख सूरज उग रहा, किरणे हैं इठला रहीं,
है उदय का जश्न ये, तम भी वो पिघला रहीं।
डूबने के डर से कब सूरज कहीं छुप बैठता,
ले सप्तअश्व अपना, अंधेरे के दिल मे पैठता।
तुझको देने सीख देखो, उदय अस्त होता रहा,
जल ही मिलती रौशनी, तपित कष्ट ढोता रहा।
कभी फ़लक के शीर्ष पर, धरा कभी है चूमता,
जो है वो डूबा जा रहा, फिर आ सुबह झूमता।
चलो आज बन सूरज तुम्हे मैं ढल दिखाता हूँ।
मुश्किल रही जो राह उस पर चल दिखाता हूँ।

भेरी देखो बज उठी, रण है, नहीं ये स्वांग है,
उठा तूणीर, रथ सजा, फड़क रही जो जाँघ है।
कोई कृष्ण मिलेगा नहीं, राह तुम्हे ही गढ़नी है,
गीता की सीख तुम्हे, निज मन मे ही पढ़नी है।
वार कर रहे पितामह, लिये शिखंडी साथ,
कुछ जुगत लगा, न बैठ तू बांधे अपने हाथ।
ललकारे है दुर्योधन देखो, बना वज्र समान,
बातों का दौर नहीं, संभालो तुम तीर कमान।
तुम जो बढ़े, तेरी राहों से मैं टल दिखाता हूँ।
मुश्किल रही जो राह उस पर चल दिखाता हूँ।

©रजनीश "स्वछंद" चलो मैं राह दिखाता हूँ।।

इस धधकती आग में तुम्हे मैं जल दिखाता हूँ,
मुश्किल रही जो राह उस पर चल दिखाता हूँ।

मौन होकर तुम यहाँ क्यूँ खड़े मझध

रजनीश "स्वच्छंद"

मैं तो दीया हूँ।। मैं तो दीया हूँ, आज जला, कल फिर जल बुझ जाऊंगा। राह दिखाने तुझको मैं, सूरज ढलने पर फिर आ जाऊंगा।। अपने शब्दों से, अपनी कव

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मैं तो दीया हूँ।।।

read the poem in description section.. #NojotoQuote मैं तो दीया हूँ।।

मैं तो दीया हूँ, आज जला, कल फिर जल बुझ जाऊंगा।
राह दिखाने तुझको मैं, सूरज ढलने पर फिर आ जाऊंगा।।

अपने शब्दों से, अपनी कव
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