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Sunita Singh
जय माँ शारदे आयी है विपदा बड़ी, जगत पुकारे बुद्ध| रोते बच्चे हैं यहाँ, हृदय नहीं है शुद्ध|| बसरे गोले बम वहाँ, आग लगी चहुँ ओर| जहरीली है वायु ये, होगी कैसे शुद्ध|| शब्द सरोवर ©Sunita Singh बुद्ध/युद्ध/शुद्ध #Drown
vibhanshu bhashkar
एक असंतुलित "तराजू" !! जिसके एक पड़ले पर ...'युद्ध'... दूसरे पर 'शांति'... पहले पर मानवकृत बटखरे..जिसमे... इंसानो की चीख .. खून से लथपथ बदन.. मासूम बच्चो के कटे ,बिखरे अंग.. सुहागन की फटी साड़ी पर बिखरे.. उसके पति का कटा पाँव , सर, हाँथ आंखे.. एक अट्टहास ... प्रकृति का हम पे... हमारे विनाश पे... एक पड़ले पर शांति !! जिसके प्रकृति दत्त उपहार... बाप के कंधे पर बैठे.. मासूम चेहरों की मुस्कान.. हरी-भरी फसले, नदिया, वन, उपवन एक सुहागन का सिंदूर... विधवा माँ के गोदी में हँसता .. उसके..बच्चे का सर... शांति की वकालत करना..'पर्यावाची' है... बुजदिली ,कायरता और देशद्रोही का.. युद्ध की वकालत करना...'पर्यावाची' है... बहादुरी ,शौर्य और देशप्रेम का... कौन पड़ला भारी....? हजार लोग हजार मत... आपका भी मत होगा पुर्वत.. घिसी-पीटि भाषा मे.. दानव के साथ दानव... मानव के साथ मानव का .."व्यवहार" ... परंतु क्या यह... सम्पूर्ण ,और संतुष्टि भरा..उत्तर है...??? तलाश..... #NojotoQuote युद्ध और बुद्ध..
abhishek💞
प्रेम क्या है ?? दिल का युद्ध दिमाग के विरूद्ध दिल का युद्ध !!
Amit Singhal "Aseemit"
नागरिकों को दिन रात जब सताता है युद्ध का आतंक, उनके लिए तो यह ज़हरीला होता जैसे साँप का डंक। ©Amit Singhal "Aseemit" #युद्ध #का #आतंक
Sagar vm Jangid
भारत दुनिया को युद्ध नही भारत दुनिया को बुद्ध देता है। भारत दुनिया को युद्ध नही बुद्ध देता है
(विद्रोही जी).!!
निर्बल बकरों से बाघ लड़े,भिड़ गये सिंह मृग-छौनों से घोड़े गिर पड़े गिरे हाथी,पैदल बिछ गये बिछौनों से हाथी से हाथी जूझ पड़े ,भिड़ गये सवार सवारों से घोड़ों पर घोड़े टूट पड़े,तलवार लड़ी तलवारों से हय-रूण्ड गिरे¸गज-मुण्ड गिरे,कट-कट अवनी पर शुण्ड गिरे लड़ते-लड़ते अरि झुण्ड गिरे,भू पर हय विकल बितुण्ड गिरे क्षण महाप्रलय की बिजली सी,तलवार हाथ की तड़प–तड़प हय–गज–रथ–पैदल भगा भगा,लेती थी बैरी वीर हड़प क्षण पेट फट गया घोड़े का,हो गया पतन कर कोड़े का भू पर सातंक सवार गिरा,क्षण पता न था हय–जोड़े का चिंग्घाड़ भगा भय से हाथी,लेकर अंकुश पिलवान गिरा झटका लग गया,फटी झालर,हौदा गिर गया¸निशान गिरा कोई नत–मुख बेजान गिरा,करवट कोई उत्तान गिरा रण–बीच अमित भीषणता से,लड़ते–लड़ते बलवान गिरा मेवाड़–केसरी देख रहा,केवल रण का न तमाशा था वह दौड़–दौड़ करता था रण,वह मान–रक्त का प्यासा था चढ़कर चेतक पर घूम–घूम,करता सेना–रखवाली था ले महा मृत्यु को साथ–साथ,मानो प्रत्यक्ष कपाली था रण–बीच चौकड़ी भर–भरकर,चेतक बन गया निराला था राणा प्रताप के घोड़े से,पड़ गया हवा को पाला था गिरता न कभी चेतक–तन पर,राणा प्रताप का कोड़ा था वह दोड़ रहा अरि–मस्तक पर,या आसमान पर घोड़ा था जो तनिक हवा से बाग हिली,लेकर सवार उड़ जाता था राणा की पुतली फिरी नहीं,तब तक चेतक मुड़ जाता था सेना–नायक राणा के भी,रण देख–देखकर चाह भरे मेवाड़–सिपाही लड़ते थे,दूने–तिगुने उत्साह भरे क्षण मार दिया कर कोड़े से,रण किया उतर कर घोड़े से। राणा रण–कौशल दिखा दिया,चढ़ गया उतर कर घोड़े से क्षण भीषण हलचल मचा–मचा,राणा–कर की तलवार बढ़ी था शोर रक्त पीने को यह,रण–चण्डी जीभ पसार बढ़ी वह हाथी–दल पर टूट पड़ा,मानो उस पर पवि छूट पड़ा कट गई वेग से भू ऐसा,शोणित का नाला फूट पड़ा ऐसा रण राणा करता था,पर उसको था संतोष नहीं क्षण–क्षण आगे बढ़ता था वह,पर कम होता था रोष नहीं कहता था लड़ता मान कहां,मैं कर लूं रक्त–स्नान कहां जिस पर तय विजय हमारी है,वह मुगलों का अभिमान कहां भाला कहता था मान कहां¸,घोड़ा कहता था मान कहां? राणा की लोहित आंखों से,रव निकल रहा था मान कहां ,,,श्याम नारायण पाण्डेय ©ब्राह्मणवंशी जीतू मिश्रा (विद्रोही जी) @हल्दीघाटी का युद्ध 'चेतक'