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Parasram Arora
खून को पानी का पर्यायवाची मत मान. लेना अनुभन कितना भी कटु क्यों न हो वो.कभी कहानी नही बन सकताहै उस बसती मे सच बोलने का रिवाज नही है यहां कोई भी आदमी सच.को झूठ बना कर पेश कर सकता है ताउम्र अपना वक़्त दुसरो की भलाई मे खर्च करता रहा वो ऐसा आदमी कुछ पल का वक़्त भी अपने लिये निकाल नही सकता है ©Parasram Arora पर्यायवाची......
पंकज कुम्हार
दिल मरुस्थल हो रहा कुछ हरियाली दिखा नब्ज़ों से connection दिल का नब्ज़ों में बांध ना बना खारा ही सही पर इन्हें कुछ पानी तो दिखा दिल-मरुस्थल
Jogendra Singh writer
आपके अनुसार Nojoto का पर्यायवाची क्या है Answer in comment section ©Jogendra Singh Rathore 6578 nojoto ka पर्यायवाची #Light
Parasram Arora
क्या कभी लौट पायेगा वो प्रवासी जल मरुस्थलो मे? कैसे विस्मृत कर सकता है आज वो मरुस्थल कि. वो भी कभी समुन्द्र का अंश था और उसमे भी. लहरे कभी ठाठे मारा करती थी लेकिन वक़्त ने करवट ली और उसके जल क़ो सूरज ने वाशपिकृत करके उसे मरुस्थल मे बदल दिया आज वो सन्नाटो मे चीख चीख कर अपनी व्यथा प्रकट करता है. और आज भी वो तरलता के स्वप्न उन वीरान रातो मे देखा करता है ©Parasram Arora मरुस्थल की व्यथा
Usha Dravid Bhatt
#OpenPoetry मरुस्थल सफेद किरमिची चादर सा दिखता मरुस्थल, भोर की बेला जैसा कितना शान्त और शीतल , मैं चली जा रही हूँ , कभी न मिलने वाले बिछडे साथी की खोज में , ज्यों भटकता रहता है हिरण अपने गर्भ में छिपी कस्तूरी की खोज में । कांटे बिंधे पैरों से , जख्मी तन लिए , आंसुओं से तर-बतर चेहरा - ऐसे ढूँढ़ता है अपने प्राण को, जैसे निष्प्राण सा पागल अन्त समय में प्राणवायु ढूंढता है , क्या मिल सका है कभी ,खोया हुआ ,इस अनन्त फैली मरुभूमि में । असंख्य हादसों की कब्रगाह बन कर कैसे शान्त हो तुम , अब तो बता कहाँ है मेरा राही , तू इतना कठोर मत बन - देख आंख वीरान हैं ,जिस्म वेजान है ,शब्द पथरा गये । सोचा था मेरे हृदय की चित्कार के दर्द को तू सह न पायेगा , भूल थी मेरी ,कहां मैने आंसू बहाए , अरे मरू तू तो म-रु-स्थल है कहां तुझमे संवेदनाएं । थक गयी हूं अब , लहू रिसते घावों का दर्द सह नहीं सकती , विश्रान्त दे दे मुझे , अपनी स्पन्दन हीन निशान्त गोद में , कि पहुँच जाऊँ मैं अपने प्रिय के पास । भोर बिना *उषा* का क्या अस्तित्व । बस अब सो जाऊं , जहाँ से फिर कभी उठ न सकूं चिरंतन काल तक , दरकती खिसकती रेत में , लुप्त हो गयी खुशियों की तरह ।। खुशियों से विहीन मरुस्थल
Parasram Arora
कोई पुरखो को पानी पहुंचा रहा हैँ कोइ गंगाओ मे पाप धो रहा हैँ कोई पथर की प्रतिमाओं के सामने बिना भाव सर झुकाये बैठा हैँ धर्म के नाम पर हज़ार तरह की मूढ़ताएं प्रचलन मे हैँ धर्म से संबंध तो तब होता हैँ जब आदमी जागरण की गुणवत्ता हासिल कर लेता हैँ जहाँ जागरण होगा वहा अशांति कभी हो ही नहीं सकती क्यों कि जाग्रत आदमी विवेकी होता हैँ इर्षा क्रोध की वृतियो से ऊपर उठ चुका होता हैँ औदेखा जाय तो धर्म औऱ शांति पर्यायवाची शब्द हैँ धर्म औऱ शांति...... पर्यायवाची शब्द हैँ
#CTK -Funny 0r Die
पप्पू को नहाते वक़्त पड़ोस की लड़की ने देख लिया काफी हंगामे के बाद मामला कोर्ट पहुँचा जज साहब:- आखिर तुम चाहते क्या हो? पप्पू:- बदला न्याय और बदला दोनों पर्यायवाची हैं। #CTK