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Muktak kavya manch
रातें बदलती हैं और बदलते हैं दिन। यहां हर चीज बदलती हैं इक दिन।। मैने किलकारियों को शब्दों में बदलते देखा। मैने कई परायों को अपनों में बदलते देखा।। जो भी खड़े किये हैं घमंड के परकोटे, वो भी खंडहर होते देखे हैं इक दिन। यहां हर चीज...................।। कभी कुछ सपने भी बदलते हैं। तो कई दफा अपने भी बदलते हैं।। मैने यहां बदलता हर मंजर देखा हैं। अपनों के हाथों में भी खञ्जर देखा हैं।। जो सांसो के साथ धड़कती हैं हर दिन, यहां वो धड़कन भी बदलती हैं इक दिन। यहां हर चीज..................... ..........।। छोटी सी आंखों में समन्दर देखा हैं। कभी मासूम चेहरों में बवण्डर देखा हैं।। किसी को दिल से अमीर तो किसी को गरीब देखा हैं। अपनों को दूर जाते तो दुश्मनों को करीब देखा हैं।। जिस पर खुद से भी ज्यादा भरोसा हो, वो शख्स भी बदल जाता हैं इक दिन। यहां हर चीज......................।। कभी आदत बदलती हैं कभी फितरत बदलती हैं। बदलता हैं जमाना जब तभी कुदरत बदलती हैं।। इस बेईमान जमाने की जद में। बचकर रहे जो ईमान की हद में।। ठोकर खाकर जो संभले, वही तकदीर बदलती हैं इक दिन। यहां हर चीज.................।। ✍️कवि- पुरूषोत्तम शर्मा ©Purushottam Sharma कवि-पुरूषोत्तम शर्मा #Drops