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kumaarkikalamse

यह कोई कहानी नहीं ना ही कहीं पढ़ा.! मैं अक्सर हर हफ़्ते जयपुर से दिल्ली और दिल्ली से जयपुर सफ़र करता हूँ। मेरी यात्रा ज्यादातर रोडवेज बस से #Kumaarsthought #Kumaarsharing #kumaarwrites

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हिम्मत नहीं हारनी - मेहनत नहीं छोड़नी


(Read in caption)


 यह कोई कहानी नहीं ना ही कहीं पढ़ा.!

मैं अक्सर हर हफ़्ते जयपुर से दिल्ली और दिल्ली से जयपुर सफ़र करता हूँ। मेरी यात्रा ज्यादातर रोडवेज बस से

K K Joshi

             गज़ल 

जब वो, उनके साथ हंसा होगा 
गम कितना तन्हा तन्हा होगा 

जो इतना नीचे गिर सकता है 
पहले वो कितना ऊंचा होगा

जिनकी हर करवट अध्याय बने
सोए वो, पुस्तक का क्या होगा 

सभी अगर विश्वासपात्र होंगे 
अपने पर सबको शक सा होगा 

बहरे कानों पर लाखों पहरे 
मूक अधर,  दस्तक का क्या होगा  गज़ल #गज़ल #तन्हाई #अकेलापन

Aman Pathak

कुछ अधुरी गज़लें है, कुछ अधुरेे शेर है, कुछ अधुरे मतले,
किताब-ए-कल्ब में लीखे है कबसे, कुछ अनसुलजे मसले...

ना रहेगा तु मुसलसल, ना ही वो तेरे वादे, ना ही वो तेरी कसमें,
रुठेगा जब खुदाया हमसे, मीट़ जायेगी ये हस्ती, मीट़ जायेगी ये नस्ले..

एक बात जमी है बरसों से लब पे, सुन केहेता हुं अब तुजसे,
वक्त है अभी, फिर ना होगा ये, करले इश्क तुं अब मुजसे...

मौत ही मंज़ील है तेरी, अब कितना भागेगा उससे,
इन साँसों पे तुं यंकीँ ना कर, धोका खायेगा क्या खुदसे?...

देख ये बाँहें है फेली, आ समा जा तुं अब इनमें,
सुखा-बंजर खडा ये "मौजी", बन फसल लेहेरा जा तुं मुजमें...

- मौजी #गज़ल

संजय श्रीवास्तव

गज़ल

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गज़ल
सुना है बस्ती में कुछ इंसान भी है 
एक ही घर में गीता औ कुरान भी है 

एक मुद्दत से जो दिलों में रहती है 
एक हिंदी तो एक उर्दू जुबान भी है 

इश्क़ की खुशबू बिखरी फिजाओं में 
दरों दीवार में यहां रोशनदान भी है 

कौन गुरबत में यहां जीता है संजय 
एक रोटी ही जिसका यहां ईमान भी है 

नफरतो कहीं और घर बना लो तुम 
यहां तो भक्ति के साथ अजान भी है

संजय श्रीवास्तव गज़ल

संजय श्रीवास्तव

गज़ल

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=========*गज़ल" =============

बेवफा ही था सही ,वो मेरा दिलदार था 
कैसे भूल जाऊं ,वो जो पहला प्यार था

क्यूँ नही रोका उसे,  जा रहा था छोड़कर 
वो भी तो मेरी तरह ,मिलने को बेकरार था 

इश्क़ की चादर में लिपटी, आयेगी वो जरुर 
खुद से ज्यादा मुझे, उस  पर जो एतबार था

दर्द में डूबा हुआ सा, अल्फाज मेरे इश्क़ का 
कोई कह देता उसे , मै इश्क़ में बीमार था

कब मिले क्यूँ मिले ,और कैसे उनसे मिले 
जो नजर हमसे मिली ,प्यार का इजहार था

एक जैसा ही नसीबा, मेरा और महबूब का 
जुस्तजू  मेरी और मुझको ,उनका इंतजार था

थाम कर कलाई मेरी ,नजरो से कह दिया
दास्ताने इश्क़ मै भी, लिखने को तैयार था

वो हसीन लम्हा उफ रब तेरा भी शुक्रिया 
दूर तक कोई नहीं था मै और मेरा यार था 

रूबरू थे वो और ,आँख थी कुछ भरी भरी 
भर लिया बांहो मे संजय ,न कोई तकरार था 

संजय श्रीवास्तव गज़ल

संजय श्रीवास्तव

गज़ल

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अभी जिंदा हूँ तू कितने भी, सितम कर ले
जो भी करना है तुझको ,मेरे हमदम कर ले

उसने लिखी है तबाही, जो मुकद्दर में मेरे
सोचना क्या कि ज्यादा या, कुछ कम कर ले

शौक था उनको कि खेलेंगेें , मेरे जज्बातों से
अभी बाकी है गर कुछ तो ,मेरे सनम कर ले

मना लेता था कभी मुझको, जो रुठ जाऊँ मैं
मशवरा देता है कि लहजा, तू नरम कर ले

मुंतजिर हूँ कि संजय, - वो आयेंगी जरुर
अब अमावस की इस रात को, पूनम कर ले

संजय श्रीवास्तव गज़ल

संजय श्रीवास्तव

गज़ल

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गज़ल

मै क्या कहता जो गम मेरे अंदर था
उसके पास तो गमों का समंदर था

मत इतरा किस्मत की बादशाही पर
मांगते देखा जो कल का सिकंदर था

बहारे गुलिस्तां की फिक्र कौन करे
हर तरफ से उठ रहा जो बवंडर था

बात करता है वही दोस्ती की मुझसे
जिसके हाथों में     तीरे खंजर था

उसकी मेहनत का नतीजा तो देखो
फस्ल उगायी वहीं जो जमीन बंजर था

क्या बताओगे आने वाली नस्लों को
जो गुजरा है वो खौफनाक मंजर था

कह दिया उसने भी जाते जाते संजय
अंदाजे मुहब्बत तेरा  बहुत सुंदर था

संजय श्रीवास्तव गज़ल

राग

# गज़ब.. #शायरी #nojotophoto

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 # गज़ब..

संजय श्रीवास्तव

गज़ल

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तेरे दिल मे भी तो इश्के गुबार जैसा है
मुझको जो दिखता हे वो प्यार जैसा है

लाख करती है नजरअंदाज तेरी नजरें
फिर भी लगता है कुछ इकरार जैसा है

चंद लफ्जों में समेट लेता हूँ जो तुमको
बस यही तो चाहत के इजहार जैसा है

उसकी नजदीकियां भिगो देती मुझको
वो बारिशों के जैसा कुछ फुहार जैसा है

ऐसी दीवानगी कभी अच्छी नही होती
कहते हैं संजय भी अब बीमार जैसा है

संजय श्रीवास्तव गज़ल

संजय श्रीवास्तव

गज़ल

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दिलों में नफरत लिये वो प्यार से मिलते हैं
आजकल कुछ इस तरह यार से मिलते हैं

अब भरोसा करे तो किस पर करें हम भी
पीछे बंदूक और खंजर तैयार से मिलते हैं

एक ही मालिक है रब हो या भगवान मेरा
फिर क्यूँ ! नफरतों की दीवार से मिलते हैं

सब शराफत के चोले में लपेटे हैं खुदको 
जब मिलते हैं इक गुनहगार से मिलते हैं

थक गये हम खिजां के साथ रहकर संजय
बुला रहा है चलो फिर बहार से मिलते हैं।

संजय श्रीवास्तव गज़ल
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