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Amit Saini
है सफर जिंदगी का जिंदगी के लिए ना कर फकत किसी बात पर जी ले जीवन खुशी के लिए #Life टेढ़ी-मेढ़ी रास्तों पर
Aakash Udeg
ढूंढ़ते हैं, मोड़ और ढलान-चड़ाव मे ज़िंदगी, पर सच कहूं तो, एक सीधी राह होती है ज़िंदगी। बस हमारी मोड़ और ढलान-चड़ाव की खोज हमें, सीधे रास्ते से दूर ले जाती है, और फिर जिंदगी टेढ़ी-मेढ़ी बन जाती है। #टेढ़ी #मेढ़ी #ज़िंदगी #yqbaba
Archana Tiwari Tanuja
गलियां :- ************* लुभाती हमें क्यों ख्वाबों की गलियां हैं? मुस्कुराती हमें देख नन्ही सी कलियां हैं। ये तितली जीवन से कितने रंग समेटे है इन्हें छूने को मचलती मेरी उंगलियां हैं। आंखों पे पर्दा डाल अंधेरे का आभास! क्यों हमें डरातीं ये तो जैसे सहेलियां हैं। तन्हा है सफ़र मंज़िल है बड़ी दूर अभी, घिर आती हैं कभी ग़म की बदलियां हैं। धूंध सी छाई है इन टेढ़ी-मेढ़ी गलियों में, अब तो सूझे न रास्ता जैसे! पहेलियां हैं। अर्चना तिवारी तनुजा ©Archana Tiwari Tanuja #galiyaan #Nojoto #kavita #NojotoHindi #NojotoFamily #MyThoughts #hindiwriters 29/07/2023 गलियां :- ********* लुभाती हमें क्यों ख्वाबों
विलुप्त आवाज़
अजनबी बनता है क्यों, तू कोई बेगाना नहीं। फिर न कहना कि मुझे भूल से पहचाना नहीं। मेरे दर पर लिखा है नाम तेरा भी, पढ़ना मेरा घर, घर है, आने-जाने का बहाना नहीं। जा रहा हूँ तेरे शब्दों की बेयक़ीनी से, मेरे शब्दों के मुझे मायने समझाना नहीं। इम्तिहानों की इबारत नहीं झूठी होती, टेढ़ी-मेढ़ी-सी लिखावट पे मेरे जाना नहीं। जाने क्यों आदमीयत से मेरा याराना है, मेरी इस एक अदद लत से ख़ौफ़ खाना नहीं। मुझको लगता है, बड़ी दूर का चला है तू क़दम बहक न जाएँ, देखना गिर जाना नहीं। अजनबी बनता है क्यों, तू कोई बेगाना नहीं। फिर न कहना कि मुझे भूल से पहचाना नहीं। मेरे दर पर लिखा है नाम तेरा भी, पढ़ना मेरा घर, घर है, आने-ज
Vandana
टूटती बिखरती जिंदगी में एक उम्मीद की किरन जगमगाई,,,, जैसे अंधेरे में जुगनू की रोशनी से टेढ़ी-मेढ़ी राह दिख आई,,, तारों की रोशनी में अंधेरी अकेली रात कट जाए,,, सुनसान रास्तों में कोई हमनवा मिल जाए,,, हर किसी को गम पि गया एक उम्र तक,,, जैसे मासूमियत से भरा बचपना घुटनों में रेंग कर ख्वाब बन आंखों में आ जाए,,,, उधेड़बुन में जिंदगी कट गई है,,, मुकम्मल जहां की आरजू तितली जैसी हो गई है,,,, छूने को लपकते हैं और दूर चली जाती है,,, जो रह जाती है अधूरी वही तृष्णा है,,, मृग ढूंढे जिसको वन वन कस्तूरी कुंडली में बसा वही कृष्णा है,,, प्यास कभी बुझती नहीं,, आकांक्षाएं तड़पात
lalitha sai
कोमल है तू.. निर्मल है तू.. बनारस की गंगा घाट है तू..! चंचल है तू.. मोहन है तू... मेरे राधे शाम की.. प्यारी मुस्कान है तू..! गोपी है तू.. गोपी नंदन है तू.. गोपियों के मन के.. उस रास की रात की गीत है तू! Dedicating a #testimonial to vandana Dixit Happy wala birthday vandhu...😘😘😘❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘😘 Love you lot...😘😘😘😘 Kanha.. Tumhar
CalmKazi
शब्दों की बिसात क्या बिछाऊँ, ये धड़कनों की शतरंज में उनकी बारी है। किसी एक प्यादे को न्योछावर कर जाऊँ, ये तख़्तो ताज क्या पूरी बाज़ी तुम्हारी है। मैं क्यों, कैसे, कब और कहाँ से यहाँ पहुँचा ये मुझे भी समझने का वक़्त नहीं मिला। तुम्हारे साथ की इच्छा थी, इरादा भी था, पर उम्मीद ना हुई, ठिक
Vandana
इन वादियों में खुशबू फैली है,उस प्रेम की जर्रे जर्रे से रस टपकता है, हर फूल से ऐसी महक आती है, जो भर देती है, उन खयालों में, जो कहीं ईश्वर तत्वों से भीगा हुआ है एक अनजान सी दुनिया,'जहां मैं, और ये हरी-भरी वादियां,, मेरे पैरों को छूते छोटे-छोटे फूल, महसूस होती नरम हरी घास, गुदगुदी सा एहसास कराती है, बाहों में भर रहा है नीला सा आसमान, जैसे विचार कहीं थम से गए हो, मैं उड़ रही हूँ,,, पूरा कैप्शन में,,, 'इन वादियों में खुशबू फैली है,उस प्रेम की जर्रे जर्रे से रस टपकता है, हर फूल से ऐसी महक आती है, जो भर देती है, उन खया
Neena Jha
चल पड़ी हूँ, जल धारा-सी टेढ़ी-मेढ़ी ख़ुद की बनाई राह पर, थकती हूँ, धीमी पड़ती हूँ, मग़र एक अथाह समंदर है मेरे नाम, यही सोच अपनी नदी का आँचल छोड़ समंदर से मिलने अनवरत दौड़ती हूँ। उड़ रही हूँ बेख़ौफ़ हवा-सी, कभी लू बनकर अपनी ही मुट्ठी की रेत उड़ा देती, कभी सुकून बनकर ज़मीं रगों की सहलाती, महज़ समन्दर पीने को तपती धूप में भी जलती हूँ। खिल रही हूँ, फूल बन कर, एक नए अपनेपन की चाह में, माली छोड़ा, अपना चमन तजा, खिली काँटेदार कूचे की कंटीली क्यारी में, जो मुरझाए पल में बिना प्रणय, खिल जाए पल में पाकर प्रीत अमूल्य, हवा-पानी, सूर्य प्रभा मेरे खिलने का प्रमाण न देंगे, पूछो जीवनसार मेरा, जलधि की तरंगों से, जिसे पाने को शहर अपना छोड़ आयी हूँ। कीमत बढ़ाने अपनी, अपनी ही ज़मीं रोंद आयी हूँ, हीरा बनने की चाह छोड़, मोती सागर का पाने आयी हूँ, डूब जाने का डर नहीं, तपती लहर बनकर तुझ में हलचल देने आयी हूँ, समझ ले मेरी कीमत, सीने से लगा ले, जीवनसाथी बना ले, ज्वार भाटा साथ साधेंगे, किनारे कर देने से भी किनारे न होंगे, तू सूखेगा जिस रोज़, हम भी तभी लुटेंगे। नीना झा संजोगिनी ©Neena Jha #BehtiHawaa #Neverendingoverthinking #नीना_झा #जय_श्री_नारायण #संजोगिनी जय माँ ज्ञानदात्री 🙏 चल पड़ी हूँ, जल धारा-सी टेढ़ी-मेढ़ी ख़ुद की ब