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HP
खुद के दुःख को उत्तेजित करने के कारण किसी के रोने-धोने में भी बुरा मानता है। निःसन्देह, ऐसे दुःख-प्रवण व्यक्तियों का जीवन एक भयंकर अभिशाप बन जाता है। अभिशाप
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जो सुखी रहना चाहता है, प्रसन्न रहना चाहता है, सन्तुष्ट रहना चाहता है, उसे सशक्त बनना चाहिये। अशक्त व्यक्ति पर सुख की प्रतिक्रिया भी विपरीत ही होती है। जो अशक्त है, निर्जीव है, रोगी है, उसके सम्मुख यदि हर्ष का वातावरण उपस्थित होता है और दूसरे अन्य लोग हँसे व प्रसन्न होते हैं तो उसे दुःख ही होता है। इसलिये शिष्टाचार के अंतर्गत यह एक नैतिक नियम है कि निःशक्त रोगी आदि व्यक्तियों के सम्मुख हँसना न चाहिये। कितना भयंकर अभिशाप है कि अशक्त व्यक्ति स्वयं तो नहीं ही हँस-बोल सकता, दूसरों को भी प्रसन्न नहीं होने देता। अभिशाप
Parasram Arora
अन्याय अत्याचार और दास्तव तों पिछली पीडिया देख चुकी हैँ अब तों आतंक व्यभिचार और भृष्टाचार नई पीड़ी के लिये अभीशाप बन कर पसर रहा हैँ ©Parasram Arora अभिशाप....
Arora PR
आखिर क्या पा लिया तुमने दुसरो के साथ इतने संबंध बना कर. क्या हासिल हुआ है तुम्हे भीड़ मे रह कर शिवाय दुख और पीड़ा के अतिरिक्त? हा ये सच हैँ कि उस भीड़ नेतुम्हे हिंसा प्रतिशोध लोभ और महत्वकाक्षाएं दी हैँ और सबसे अमहत्वपूर्ण. और असहज बात ये रही कि तुम्हे उस भीड़ ने आत्म तिरस्कार और. नफ़रत का अभिशाप देकर तुम्हे अपनी ही नज़रो मे गिराने का काम किया हैँ ©Arora PR अभिशाप
HP
चरित्र के साँचे में ढाले गये कम साधनों में भी पूर्ण प्रसन्नता का जीवन व्यतीत कर लेते हैं। दुर्गुणी व्यक्तियों के लिये तो सम्पन्नता अभिशाप ही सिद्ध होती है। अभिशाप
Gautam_Anand
दो कौड़ी कि है हैसियत उसकी जो अच्छे अच्छों को उनकी औकात बता देती है कुछ तो कारीगरी रही होगी उसमें जो मुझको मेरे घर में खैरात बता देती है उसे याद बहुत रहता है घर के हर एक शय पे कितने एहसान किये हैं उसने उसके यादों की बेशर्मी कहिये जिस दम पे उम्र गुजारी उन रिश्तों को वाहियात बता देती है वो ग़ैर थी ग़ैर ही रह गई क्या मलाल करूँ उससे अपने रिश्तों का चोट उनसे बेपनाह मिली जो खून के रिश्ते को अभिशाप बना देती है क्या कमाल की खुदाई है ख़ुदा देख के हैरान हो जाए वो घर के ख़ुदा को उसके बच्चों की ज़ात बता देती है #अभिशाप
Balram Singh Thakur
*अभिशाप* *************************************** 2122 2122 2122 212 *************************************** भीष्म ने ये कह दिया, हे ! अर्जुने। संधान कर, बाण की शैय्या बना दे,कृष्ण का अब ध्यान कर। व्यास कहते काल बुत बन,के खड़ा कुछ काल तक, राह बस तकता रहा, कितने महीने साल तक। योग में लेटे रहे तब , लोचनें ही भीगते, चीखती थी पीर लेकिन, भीष्म जी ना चीखते। बच सका है कौन मानुष, इस जहाँ में पाप से, मर रहे हैं भीष्म सा हम,भी किसी अभिशाप से। योग मुद्रा में पड़े हम , भीष्म जैसा बेड पर, श्वांस खातिर मर रहे अब, पेट के बल लेट कर। जागते सब सुन रहे हैं, अट्टहासें काल का, खून हमको भी बुलाता, किस मनुज के लाल का। काल रूपी नाग अब, सबके सिरों पर चल रहा, साँस तो मौजूद लेकिन, साँस में ना 'बल' रहा। मौत 'सच' है इसलिए तू, मौत का सम्मान कर, भीष्म ने ये कह दिया, हे ! अर्जुने। संधान कर।। **************************************** सुखी रहो,स्वस्थ रहो, लेकिन थोड़े दूरस्थ रहो। *बल्लू-बल* **************************************** ©Balram Singh Thakur अभिशाप #Nodiscrimination
Khushi Kandu
इस अनंत विशालकाय आकाश में मात्र मेरे अतृप्त इच्छाओं के लिए स्थान नहीं ये नियति नहीं अभिशाप है.... ©Khushi Kandu #अभिशाप #curse
Parasram Arora
"सौंदर्य "का शव गोद मे लिए रौ रही थी "अमरता " जबकि व्यस्त है पुरषार्थ चिता जलाने मे निशफल रहे है चक्रधर और मर्यादा के प्रहरी भीअपनी देह बचाने मे काल तिमिर के नागपाश मे हम सभी बंधक बन चुके है और चिता की लाल लपटो मे जीवन ले रहा है करवट "नश्वरता "धू धू कर जल रही और परिहास कर रहा "शाश्वत " आज एक नया सत्य हुआ है उजागर वो भी नए सन्दर्भॉ के साथ कि नश्वर जीवन को आज मिल गया है अमर मृत्यु का अभिशाप ©Parasram Arora अभिशाप #fish
Balram Singh Thakur
।!अभिशाप।। ***************************************** बच सका है कौन मानुष, इस जहाँ में पाप से, मर रहे हैं भीष्म सा हम,भी किसी अभिशाप से। योग मुद्रा में पड़े हम , भीष्म जैसा बेड पर, श्वांस खातिर मर रहे अब, पेट के बल लेट कर।। ***************************************** बल्लू-बल ।।थान-खम्हरिया।। ©Balram Singh Thakur अभिशाप,, #COVIDVaccine