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ललित कुमार कश्यप
तुमसे प्यार में अब पहल करने का सोचा है तो जिंदगी का हर पल हो या हर सांस सिर्फ तुम्हारे लिए संभाल कर रखना मेरे हाथ को अपने हाथ से गुजरे न लम्हा कोई तेरे बगैर मेरे अहसास के अनुपमा.....
rajeshwari Thakur
ये दुनियां तुझ पर ही सारे बेबुनियाद आरोप लगाती हैं। जब वो खुद को किसी भी मामले में तेरे बराबर नही पाती हैं। बेवजह शक के घेरे में डाल चरित्र हीनता का दाग लगाती हैं। रिश्तों का आधार तो प्यार विश्वास सम्मान सरलता मांगती हैं पर घर तोड़ाई का इल्जाम सिर्फ अकेले तुझ पर ही क्यूं आती हैं। परेशानियां तो सारी तेरी अपनी सी लगने वाली ये दुनियां बढ़ाती हैं। उलझनों को सुलझाने कि महारत ही बस एक स्त्री को अनुपमा बनाती हैं। ©rajeshwari Thakur #अनुपमा
Anupama Jha
कुछ गुजरे लम्हें डायरी में चुपचाप रहे थे सो पूछने पर बताया हाल बरसों से मुझे ढूंढ रहे थे वो.... कुछ और भी थे पन्ने वक़्त के साथ ,पता नहीं कहाँ बिछड़ गए वो मिलें गर मुझे तो मिलवाऊंगी आप सब से हो मुझसे खफा कहीं छुपे बैठे होंगे वो #लम्हा#अनुपमा##yqdidi
Vrishali G
जीवनाच्या नाटकात सहभाग सगळ्यांचा असतो पण आपली भुमिका नाही वठली तर सारा तमाशा होऊन जातो नाटक
Arora PR
स्वप्नलोको के प्रलोबन मुझे कभी सममोहित नहीं कर सकते क्योकि मैं हर स्वप्न कोबन्द आँखों का नाटक ही समझता हूँ ©Arora PR नाटक
अज़नबी किताब
नाटक.. रंगमंच... कलाकार... कला... दर्शक.. कुछ ऐसा हुआ, में रंगमंच पे खड़ी थी, और मेरी कला मेरा हाथ थामे | दर्शक मेरी कला से मुझे पहचानते थे.. क्या खूब कला थी, खुदा की देख हुआ करती थी | एक बार बोली बात, में जमी को ख़त्म हो ने पर भी निभाती थी, कला थी.. वचन निभाने की, नाटक बन गयी.. रंगमंच पे उस खुदा के, में आज एक कटपुतली बन गयी... वचन निभाती नहीं, ऐसा सुना है मेने, दर्शकों से | क्या कहु, कला खो गयी, पर ये कला उनके लिए कायम है, जो सही में आज भी वचन को समझते है | कला खुदा की देन होती है, खुदा भी ख़ुश होते होंगे मेरे वचन ना निभाने से.. -अज़नबी किताब नाटक..
Babli BhatiBaisla
झूठे और ओछे मक्कार महात्मा को कोई नहीं पूछता काले पड़ गए मैले मनको को कोई नहीं पूजता आर्यो की धरती पर शास्त्रों का ऊंचा स्थान है भारत मां के शास्त्रियों की विश्व में अलग पहचान है लाल बहादुर शास्त्री हो या धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री दोनों ने साबित कर दिखाया गरीबी नहीं पिछाड़ती महानता में पिछड़ जाते हैं धनाढ्य भी नीयत से बहुत मूर्ख लगते हैं भूख हड़ताल का नाटक करते हष्ट-पुष्ट काटा है लम्बा सफ़र आंखें मूंद कर अनपढ बहुत थे पढ़ कर समझ गए सभी जयचंद और शकुनि कौन थे बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla नाटक
Shravan Goud
ॐ हनु हनुमंतेय नमः 🙏 ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः। प्रभु सही मार्ग दिखाइए।