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VATSA
चीख़ कर सुनाई, वो बात अलविदा जाग कर बिताई, वो रात अलविदा अलविदा मगरूरियत, ज़माने की अल्विदा फ़ेहरिस्त वो, बहाने की फिर ना मिले वो, मुलाक़ात अलविदा दिल में ना रह पाई, कायनात अविदा अलविदा चोट खाई, दीवारों को अलविदा दुश्मन बने, यारों को भीड़ वाली, वो बारात अलविदा बस शुरू होती, शुरुआत अलविदा अलविदा हाँ में हाँ मिलाने वालों को अलविदा जन्नत दिखाने वालों को नस्ल भेद भाव मेरी जात अलविदा खोखकले सारे वो ख़यालात अलविदा अलविदा सरकार बनी सरकारों को अलविदा लाचार बने बेचारों को “वाह” का खेल ये मार काट अलविदा बस धर्म सिखाते हज़रात अलविदा अलविदा साहब की, जीहज़ूरी को अलविदा हर बात पर, मंज़ूरी को जो दी बिन माँगे, ख़ैरात अलविदा जो झाँकते मेरी औक़ात अलविदा #अलविदा_2019 #वत्स #dsvatsa #illiteratepoet #yqdidi #yqhindi #happynewyear चीख़ कर सुनाई, वो बात अलविदा जाग कर बिताई, वो रात अलविदा अल
Mahfuz nisar
मैं तवायफ बावक़ार हूँ साहब। आप हज़रात के महफ़िलों की शान हूँ,साहब अकेली औरत हूँ, लेकिन किसी ने पूछा नहीं, क्या उसका कोई मकान है साहब, पाजेब,सलवार,लाली से सजी मोरनी की तरह नाचती हूँ, सब हमबिस्तर होना तो चाहते हैं, लेकिन किसी ने नहीं पूछा, क्या मैं भी रिश्ते की गरज़गार हूँ,साहब। माँ को देखा था,अब ख़ुद को देख रही हूँ, मुझे लगता है कि तवायफ हूँ,तो बस कोई मज़ाक उड़ाने की सामान का इंतज़ाम हूँ साहब। आपकी गीली मुस्कान,और जबान की लरज अच्छी है, वैसे मैं तो बहुतों की तलबगार हूँ साहब, कहूँगी तो डरती हूँ, कोई सिरफिरा गला ना उतार दे आकर, अब भी अपने लिए थोड़ी सी इज्जत के ख़ातिर अग्यार हूँ साहब, मैं तवायफ बावक़ार हूँ साहब। ✍mahfuz nisar © #Love मैं तवायफ बावक़ार हूँ साहब। आप हज़रात के महफ़िलों की शान हूँ,साहब अकेली औरत हूँ, लेकिन किसी ने पूछा नहीं, क्या उसका कोई मकान है साहब,
Gufran Bahraichi
बज़्म ए गुलिस्तान ए सुखन ((वाॅट्सअप ग्रुप)) में कहे गए कलाम में से कुछ पसंदीदा अशआर आप सभी की समाअतों के ज़ेर ए नज़र पेश ए ख़िदमत है उम्मीद करता हूँ आप सबको सभी शोअरा हज़रात के अशआर पसंद आएंगे ((मिंजानिब गुरूप एडमिन गुफरान बहराईची)) अगर किसी को जुड़ना है तो बरा ए करम इस नम्बर पर मैसेज करें (9140420308) कोई खिड़की तो खुले पर्दा हटे तो पहले दिल के कमरे में तेरे सुबहे नमोदार,तो हो ((वसिक़ अंसारी बदायुनी साहब)) मुझकाे मन्ज़ूर है इस शौक़ में अन्धा हाेना चन्द पल के लिये लेकिन तिरा दीदार ताे हो ((चांद ककरालवी साहब)) कुछ तो अरबाबे सुखन में तिरा मेयार तो हो मीरो ग़ालिब की ज़ुबाँ में तेरी गुफ्तार तो हो ((फारूक़ मेहवर हरदोई साहब)) घर में दाख़िल न कभी होगी तशद्दुद की हवा जिसमें सूराख़ न हो कोई वो दीवार तो हो ((जमील सकलैनी साहब)) पारसा चारों तरफ़ मुझको नज़र आते हैं बज़्मे ज़ाहिद में कोई मुझसा गुनहगार तो हो ((शायर:- आलम फिरोज़ाबादी साहब)) ख़ार आ जायें हिमायत में अभी फूलों की बागबाँ तुझको गुलिस्ताँ से मगर प्यार तो हो ((शायरा:- अस्मा तारिक़ साहिबा (कुवैत))) जिसने पैगाम-ए-मुहब्बत ही दिया मर कर भी फिर से उन लोगों का इस देश में अवतार तो हो ((प्रीतम राठौर भिनगाई साहब)) लाख पत्थर का सही पर वो पिंघल सकता है उससे सुफ़यान कभी प्यार से गुफ़तार तो हो ((सुफियान बुटरानवी साहब)) सुर्खरू इतना किसी राेज़ मिरा प्यार ताे हो मेरी तसवीर कभी ज़ीनत ए अखबार ताे हो ((गुफरान बहराईची)) WhatsApp Group बज़्म ए गुलिस्तान ए सुखन ((वाॅट्सअप ग्रुप)) में कहे गए कलाम में से कुछ पसंदीदा अशआर आप सभी की समाअतों के ज़ेर ए नज़र पेश ए ख़िदमत है उम्मी