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पंकज गिरि
सोचा नहीं अच्छा बुरा देखा सुना कुछ भी नहीं, मांगा खुदा से रात दिन तेरे सिवा कुछ भी नहीं, जिस पर हमारी आंख ने आंसू बहाए रात भर, भेजा वही कागज उसे हमने लिखा कुछ भी नहीं , एक शाम की दहलीज पर बैठे रहे वो देर तक, आंखों से की बातें बहुत मुंह से कहा कुछ भी नहीं।। जगजीत सिंह जी🙏
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मुझसे बिछड़ के...खुश रहते हो!!!! मेरी तरह तुम भी झूठे हो!!!! इक टहनी पर चाँद टिका था.... मैं ये समझा.... तुम बैठे हो!!!! उजले-उजले फूल खिले थे.... बिल्कुल जैसे तुम हँसते हो!!!! मुझको शाम... बता देती है.... तुम कैसे कपड़े पहने हो!!!! तुम तन्हा दुनिया से लडोगे!!!! बच्चों सी... बातें करते हो!!! जगजीत सिंह साहब की गाई ग़ज़ल
SUFIYAN"SIDDIQUI"
#5LinePoetry ये दौलत भी ले लो,ये शोहरत भी ले लो, भले छीन लो मुझ से मेरी जवानी, मगर मुझ को लोटा दो बचपन का सावन, वो काग़ज की कश्ती वो बारिश का पानी, जगजीत सिंह, मुवी '"आज'" की गज़ल, ये तस्वीरें देखकर याद आ गया,,,,मेरा लिखा नही है ©SUFIYAN"SIDDIQUI" #5LinePoetry,,, जगजीत सिंह जी की गज़ल #5LinePoetry