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Bharat Bhushan pathak
मनमोहन छंद विधान :- यह चार चरणों का सममात्रिक छंद है।इसके प्रत्येक चरण में १४ मात्राएँ। इसमें यति ८-६ मात्रा पर रखी जाती है,अन्त में नगण (१११) अनिवार्य है।इसमें क्रमागत दो-दो चरणों या चारों चरणों पर तुकान्त रखा जा सकता है। पढ़े-पढ़ें सब,समझ-समझ। इसमें क्या है,भला हरज।। सुन्दर भाषा,बड़ी सरल। दूर करे ये,तिमिर गरल।। कितने रचते,पद हरपल। निर्मल धारा,ज्यों कलकल।। माते हिन्दी,करूँ नमन। वैर भाव को,करो दमन।। संस्कृत पुत्री,मिले शरण। विनय करूँ ये,धरे चरण।। भारत भूषण पाठक'देवांश'🙏🌹🙏 ©Bharat Bhushan pathak #हिन्दी मनमोहन छंद विधान :- यह चार चरणों का सममात्रिक छंद है।इसके प्रत्येक चरण में १४ मात्राएँ। इसमें यति ८-६ मात्रा पर रखी जाती है,अन्त म
Bharat Bhushan pathak
छंद- विजात छंद विधान-यह १४ मात्रिक मानव जाति का छंद है। इसकी १,८ वीं मात्रा का लघु होना अनिवार्य है। इसके अंत में २२२ वाचिक भार होता है।यह चार चरणों वाला छंद है।क्रमागत दो-दो चरण या चारों चरण समतुकान्त होता है। मापनी- लगागागा लगागागा १२२२ १२२२ चमकती जब,यहाँ चपला। करे हे यह,बहुत घपला। सदा यह प्राण लेती है। कभी ना त्राण देती है।।१ रहम भी खूब ये करती। इसी से है, हरी धरती।। चमकना शान्त हो ऐसे। चमकता चाँद हो जैसे।।२ ©Bharat Bhushan pathak #Reindeer छंद- विजात छंद विधान-यह १४ मात्रिक मानव जाति का छंद है। इसकी १,८ वीं मात्रा का लघु होना अनिवार्य है। इसके अंत में २२२ वाचिक भार
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
*दिनाँक-- 02-11-2022* *विधा*-- *रास छंद* *विधान – प्रत्येक पद में 22 मात्राएँ होती हैं। 8, 8, 6 मात्राओं पर यति होती है और पदांत 112 से होता है। चार चरणों से एक छंद बनता है। क्रमागत दो-दो चरण में तुकांतता होती है ।* नाथ हमारे , द्वार तुम्हारे , भजन करें । तुमको ध्यावें , तुमको पावें , नमन करें ।। शरण तुम्हारी , दुनिया सारी , पीर हरो । आप हमारे , पालन हारे , पार करो ।। तुम हो सपना , जीवन अपना , प्रीत कहे । मैं हूँ प्यासा , तुमसे आशा , गंग बहे ।। सूना जीवन , भटके ये मन , आप मिले । मेरा आँगन , तुमसे साजन , खूब खिले ।। ०२/११/२०२२ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR #City *दिनाँक-- 02-11-2022* *विधा*-- *रास छंद* *विधान – प्रत्येक पद में 22 मात्राएँ होती हैं। 8, 8, 6 मात्राओं पर यति होती है और पदांत
Bharat Bhushan pathak
छंद- विजात छंद विधान-यह १४ मात्रिक मानव जाति का छंद है। इसकी १,८ वीं मात्रा का लघु होना अनिवार्य है। इसके अंत में २२२ वाचिक भार होता है।यह चार चरणों वाला छंद है।क्रमागत दो-दो चरण या चारों चरण समतुकान्त होता है। मापनी- लगागागा लगागागा १२२२ १२२२ चमकती जब,यहाँ चपला। करे हे यह,बहुत घपला। सदा यह प्राण लेती है। कभी ना त्राण देती है।।१ रहम भी खूब ये करती। इसी से है, हरी धरती।। चमकना शान्त हो ऐसे। चमकता चाँद हो जैसे।।२ ©Bharat Bhushan pathak #GarajteBaadal छंद- विजात छंद विधान हेतु आदरणीय संजीव शुक्ल'सचिन' जी का अग्रिम आभार:- यह १४ मात्रिक मानव जाति का छंद है। इसकी १,८ वीं मात्
राजकिशोर मिश्र राज
kavi manish mann
इक राज था। इक साज था। लेकिन नहीं, वो आज था। पाठ-4: अश्व/शुनगति (मात्रिक छन्द - 7 मात्राएँ, अंत में "ध्वजा"): दिनांक: 17.09.2020 मात्रिक छन्द: अश्व/शुनगति (मात्रिक छन्द - 7 मात्राएँ,
kavi manish mann
छंद मन पाठ - 52: चन्द्रवत - 17 मात्राएँ - अन्त में (22) दिनांक: 06.02.2021 मात्रिक छन्द: चन्द्रवत -17-अन्त में 22 मापनी - 2122 1212 22 "छन्द प
kavi manish mann
#शक्ति_छंद जिसे चाहते थे दिया वो दगा। यहां कौन किसका हुआ है सगा। सिला प्यार का खूब हमको मिला। शिकायत करें क्या करें अब गिला। पाठ - 55 : शक्ति -18 मात्राएँ - अन्त में (212) मापनी - 122 122 122 12 (लगागा लगागा लगागा लगा) "छन्द प्रभाकर" में 18 मात्राओं के छ
Rd medhekar "समर्थ"
प्रथमागत खुली खिड़की से झाँककर, तुमने मुझे जगाया, स्वप्न भंग किया मेरा, और मैं तमतमाया, अक्सर तो ऐसा होता नहीं, पर आज ये हुआ, रात खिड़की का मैं, परदा लगाना जो भूला, अवसर को तुमने भुनाया, और मैं चौन्धियाया, मैं अभ्यस्त अँधेरे का, विश्वास उजाले का खो चुका, किंकर्तव्यविमूढ़, अधर में अटका, राह भटका, अंधेरे से निकल, उजाले में आने में, आखिर कुछ तो समय लगता है, मेरे भाई, खैर, अब आ ही गए हो तो आओ, कौन रोक सका है तुम्हें, आगत का स्वागत है, खुली खिड़की के उस पार खड़े, तुम्हें एक नज़र , बंद आँखों से देखकर , प्रणाम, दीवार पर टंगे कैलेंडर पर तारीख देख कर, सुबह के अखबार के पन्ने पलटकर, चाय की चुस्कियां लेते, आज में होने का , अहसास कराने के लिए, धन्यवाद, और क्षमा, इस अनौपचारिक स्वागत के लिए.... 28-2-2020 --**रामदास शब्दांकन@समर्थ RD प्रथमागत
Rashmi singh raghuvanshi "रश्मिमते"
सारा काम ख़त्म होता है तो मम्मी का चश्मा गुम हों जाता है, होता कुछ यूं है कि आप अपने सारे काम करके जैसे ही बैठने वाले होते हो इत्मीनान के साथ तभी एक आवाज़ आती है मेरा चश्मा नही मिल रहा है, वो चश्मा ढूढ़ने के बाद जब बैठने जाते हो तो वो शुकुन नही मिलता। 😂😊😀😀😀😀😀😅🙏🙏 ©rashmi singh raghuvanshi #चश्में की कारमात