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Divya Joshi
कौन है जग में इतना सरल माँ पितु के वचनों को प्राणों से प्रिय जो मान चले सदा पाई जिस कैकयी माँ से ममता कटु वचन भी सुन उनके जो चेहरे पर मुस्कान धरे कल तक थे जो भावी राजा सब कुछ खोता देख भी जो हर आज्ञा शिरोधार्य करे प्राण जाए पर न जाए पितु वचन सिय लक्ष्मण का हाथ धर सहर्ष वन गमन स्वीकार्य कहे सीखो प्रभु की सीख माँ पिता का क्या स्थान देव भी हों नतमस्तक जिनके समक्ष हम भी उनका यूँ हरदम सम्मान करें ©Divya Joshi श्रीराम वनवास प्रसंग कौन है जग में इतना सरल माँ पितु के वचनों को प्राणों से प्रिय जो मान चले सदा पाई जिस कैकयी माँ से ममता कटु वचन भी सुन उ
Poet Shivam Singh Sisodiya
उम्मीद है कि उम्मीद है कि दिन चैन ढले, सुख रैन की नींदें ले आये | उम्मीद है कि उगता सूरज कल कुछ उम्मीदें ले आये | उम्मीद है कि बच्चे सारे ही श्रवण से आज्ञाकारी हों, उम्मीद है कि सब बालिकायें मनु सीता सी संस्कारी हों | हो लज्जा शील सनेह शौर्य सब संतानें सुखकारी हों, हो 'अश्रु' न पितु की आँखों में, कोई माँ न दुखियारी हो || उम्मीद है कल का अँधियारा सँग 'अश्रु' की बूँदें ले जाये | उम्मीद है कि उगता सूरज कल कुछ उम्मीदें ले आये || शिवम् सिंह सिसौदिया 'अश्रु' उम्मीद है कि दिन चैन ढले, सुख रैन की नींदें ले आये | उम्मीद है कि उगता सूरज कल कुछ उम्मीदें ले आये | उम्मीद है कि बच्चे सारे ही श्रवण से आज
Piyush Shukla
ज्ञान की ज्योति जलाकर, गुरु करते मजबूत जिसको भी ना गुरु मिलें, रहें ठूंठ का ठूंठ घिस घिस पाथर मणि करें, लेत न कोई मोल गुरु से बड़ा न जौहरी, करें हमें अनमोल ज्ञान गुरू का उम्र भर, आये हरदम काम सब ही ज्ञान की देन है, घर पैसा या नाम डाँट डपट के ही सही देते बढ़िया सीख गुरु माटी को रूप दें, इक कुम्हार सरीख दुनिया की हर रीति को, पितु मातु समझाएं प्रथम गुरु इन्हें मानकर, पहले शीश नवाएं बुरा समय और लोग भी, देते हमको ज्ञान इनको भी गुरु मानिए, देना सब सम्मान दोहे ज्ञान की ज्योति जलाकर, गुरु करते मजबूत जिसको भी ना गुरु मिलें, रहें ठूंठ का ठूंठ घिस घिस पाथर मणि करें, लेत न कोई मोल गुरु से
Er.Shivampandit
🙏मेघनाथ💕 के लिए , उसके मातृ-पितृ प्रेम और आदर के लिए जय हो ऐसे संतान की प्रेयसी दो अंतिम बार विदा, ये सेवक ऋणी तुम्हारा है तुम भी जानो, मैं भी जानू, ये अंतिम मिलन हमारा है मैं मातृचरण से दूर चला, इसका दारुन
नेहा उदय भान गुप्ता
नेह शब्दों से सुसज्जित, आओ आप सबको सच्ची दास्तां सुनाती हूँ। आरम्भ कैसे, कैसे हुआ अन्त, महाभारत की कहानी बताती हूँ।। अनुशीर्षक में पढ़े...👇👇 नेह शब्दों से सुसज्जित, आओ आप सबको सच्ची दास्तां सुनाती हूँ। आरम्भ कैसे, कैसे हुआ अन्त, महाभारत की कहानी बताती हूँ।।1 चन्द्रवंशी शासक ये, प
नेहा उदय भान गुप्ता😍🏹
नेह शब्दों से सुसज्जित, आओ आप सबको सच्ची दास्तां सुनाती हूँ। आरम्भ कैसे, कैसे हुआ अन्त, महाभारत की कहानी बताती हूँ।। अनुशीर्षक में पढ़े...👇👇 नेह शब्दों से सुसज्जित, आओ आप सबको सच्ची दास्तां सुनाती हूँ। आरम्भ कैसे, कैसे हुआ अन्त, महाभारत की कहानी बताती हूँ।।1 चन्द्रवंशी शासक ये, प
विवेक त्रिवेदी
दिनकर का शौर्य प्रकाश से,, शीतलता से शशि है । दिन के पास उजाला है, रजनी का नाम तिमिर से है ।। है झरकर झरना ,, पोखर स्थिरता से है। संचय से है जलधि, सरित निरंतरता से है।। नभ विस्तृत,झील है उथली,गिरी का नाम अडिगता से है। गरुण की दृष्टि, मृग की कस्तूरी, कुसुम का नाम सुरभि से है।। सिंह शिकार, बली गजराज ,बाघ का नाम चाल से है। चंदन की शीतल सुगंध विटप का नाम प्राप्ति से है।। तुरग कठोर, वृषभ श्रमी, सुरभी का नाम दुग्ध से है। है कपोत प्रतीक शांति का, गादुर उलूक रात्रि से है ।। शशका है स्फूर्ति चिन्ह, कच्छप की पहचान सिथिलता है। मयूर है सौन्दर्य चिन्ह, मधुमक्षी की पहचान मधुरता है।। सर्प हलाहाल,कोकिल बानी, बुलबुल का नाम माधुरी है। काग चेष्टा,बको ध्यान तितली पंखों से न्यारी है ।। पितु है कर्म श्रेष्ठ ,, माता ममता की मूरत है । भ्रात भुजा,बहना इज्जत ,लज्जा से घर की नारी है।। दिनकर का शौर्य प्रकाश से,, शीतलता से शशि है दिन के पास उजाला है, रजनी का नाम तिमिर से है है झरकर झरना ,, पोखर स्थिरता से है संचय से है जल
Poetry with Avdhesh Kanojia
श्रद्धाहीन श्राद्ध ●●●●●●●● चल रहा है पितृ पक्ष श्राद्ध कर रहे लोग। नाना प्रकार व्यंजनों का लगा रहे हैं भोग।। किन्तु बहुत जन हैं ऐसे जो कर रहे हैं मन से। पर जब मात पितु थे जीवित तब टूटे हुए थे उनसे।। जीवित में तो पूछते नहीं उन्हें दो समय रोटी। अनदेखी करते हैं उनकी हरकत करते छोटी।। पर जब होता स्वर्गवास तब अनुष्ठान बहु करते हैं। तेरहवीं, बसरी और श्राद्ध सब मजबूरी में करते हैं।। पितृदोष के भय के कारण श्राद्ध किया करते हैं। जीवित पर अनदेखी उनकी अब मरने पर डरते हैं।। यह तो है कर्तव्य व्यक्ति का करो इसे सच्चे मन से। आग्रह है अवधेश का यह भारत के हर जन से।। पर सुनो जब तक जीवित हैं तुम्हारे पिता और माता। उनके आगे नगण्य है इस संसार का प्रत्येक नाता।। सेवा करो जीते जी उनकी आदर और प्रेम के साथ। तुम्हारे शीश पे सदा रहेगा उनके आशीष का हाथ।। और मृत्यु बाद श्राद्ध करो उसी भाव के साथ। मानसिक रूप से ही उनके चरणों में नवाओ माथ।। मात पिता की सेवा से हीन सुखी नही हो सकता। श्रद्धाहीन श्राद्ध से भी कल्याण नही हो सकता।। ✍️अवधेश कनौजिया© श्रद्धाहीन श्राद्ध ●●●●●●●● चल रहा है पितृ पक्ष श्राद्ध कर रहे लोग। नाना प्रकार व्यंजनों का लगा रहे हैं भोग।। किन्तु बहुत जन हैं ऐसे
के_मीनू_तोष
सबको पढूं सोचती हूँ कभी कभी यहाँ हैं जितने उन सभी को पढूं मैं करूँ टिप्पणी, मैं करुँ समीक्षा, और करूँ आलोचना
Poetry with Avdhesh Kanojia
श्रद्धाहीन श्राद्ध ●●●●●●●● चल रहा है पितृ पक्ष श्राद्ध कर रहे लोग। नाना प्रकार व्यंजनों का लगा रहे हैं भोग।। किन्तु बहुत जन हैं ऐसे जो कर रहे हैं मन से। पर जब मात पितु थे जीवित तब टूटे हुए थे उनसे।। जीवित में तो पूछते नहीं उन्हें दो समय रोटी। अनदेखी करते हैं उनकी हरकत करते छोटी।। (पूरी रचना अनुशीर्षक में) #पितृदिन #father #mother #parents #parentslove #माता #पिता श्रद्धाहीन श्राद्ध ●●●●●●●● चल रहा है पितृ पक्ष श्राद्ध कर रहे लोग। नाना प्रकार