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राहुल अग्निहोत्री

ढाई अक्षर प्रेम के,   पढ़े सो पांडित्य होय आज के प्रेम और वैदिक काल के प्रेम में कोई समानता नहीं।
#prem

आज के प्रेम और वैदिक काल के प्रेम में कोई समानता नहीं। #Prem

24 Love

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परवाज़ हाज़िर ........

यांत्रिक कैलकुलेटर का आविष्कार
 विल्हेम शिकार्ड ने सन 1642 में किया था 
और इसे ब्लेज पास्‍कल का नाम दिया गया था।

©G0V!ND DHAkAD #LifeCalculator 



भारत में गणित के इतिहास को मुख्यता ५ कालखंडों में बांटा गया है-

१. आदि काल (500 इस्वी पूर्व तक)(क) वैदिक काल (१००० इस्व

#LifeCalculator भारत में गणित के इतिहास को मुख्यता ५ कालखंडों में बांटा गया है- १. आदि काल (500 इस्वी पूर्व तक)(क) वैदिक काल (१००० इस्व

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संगीत कुमार

संस्कृति  हमारी पहचान  हमारी छठ महान पर्व त्यौहार है 
वैदिक  काल से चल रहा 
बिना  भेद-भाव मन रहा 
समस्त विश्व में  फैल गया
सबका मनोरथ पूर्ण हो रहा
कभी मैथिल मगध और भोजपुरी  क्षेत्र में ही मनता था 
अब हर देश में  मनता है सबको विश्वास  दिलाता है
सबकी मनोकामना  पूर्ण हो जो करे सच्चे मन से विश्वास 

संस्कृति  हमारी पहचान  हमारी  छठ  महान पर्व त्यौहार है   

छठ महा पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई  🙏🙏

©संगीत कुमार संस्कृति  हमारी पहचान  हमारी छठ महान पर्व त्यौहार है 
वैदिक  काल से चल रहा 
बिना  भेद-भाव मन रहा 
समस्त विश्व में  फैल गया
सबका मनोरथ पूर्ण

संस्कृति हमारी पहचान हमारी छठ महान पर्व त्यौहार है वैदिक काल से चल रहा बिना भेद-भाव मन रहा समस्त विश्व में फैल गया सबका मनोरथ पूर्ण #कविता #chhathpuja

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VAniya writer *

#Bhakti 
#bhakt 
#Devotional 
भक्ति शब्द की व्युत्पत्ति 'भज्' धातु से हुई है, जिसका अर्थ 'सेवा करना' या 'भजना' है, अर्थात् श्रद्धा और प्रेमप

#Bhakti #bhakt #Devotional भक्ति शब्द की व्युत्पत्ति 'भज्' धातु से हुई है, जिसका अर्थ 'सेवा करना' या 'भजना' है, अर्थात् श्रद्धा और प्रेमप #OctoberCreator

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KUNWA SAY

आज रविवार है यानी सूर्य देव का दिन। वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। पृथ्वी का जीवन सूर्य से ही है। वैदिक काल में सारे जगत के कर्

आज रविवार है यानी सूर्य देव का दिन। वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। पृथ्वी का जीवन सूर्य से ही है। वैदिक काल में सारे जगत के कर् #फ़िल्म

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Naresh Chandra

हिन्दू धर्म विशाल है सब धर्मों की जननी है कृपया अनुशीर्षक मे पढ़ें 🙏

©Naresh Chandra वैदिक काल और यज्ञ

प्राचीन काल में लोग वैदिक मंत्रों और अग्नि-यज्ञ से कई देवताओं की पूजा करते थे। आर्य देवताओं की कोई मूर्ति या मन्दिर नहीं

वैदिक काल और यज्ञ प्राचीन काल में लोग वैदिक मंत्रों और अग्नि-यज्ञ से कई देवताओं की पूजा करते थे। आर्य देवताओं की कोई मूर्ति या मन्दिर नहीं #विचार #लक्ष्मीनरेश #दिल_की_आवाज़

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Divyanshu Pathak

मेरे देश की आत्मा उत्साह और शौर्य का ऊर्जा पुंज है।सभ्यताओं की जननी है।संस्कारों की खान है।त्याग,तपस्या,प्रेम, भक्ति और शक्ति का भण्डार है।हमें ज्ञात है कि- मोहन जोदड़ो,हड़प्पा, धौलावीरा,कालीबंगा, राखीघड़ी और गनवेरीवाला वृहत्तर भारतबर्ष की प्राचीनतम सभ्यताओं में सुमार हैं।1. सार्गोन अभिलेख - 2600 - 1800 ईसा पूर्व का बताते हैं।2. जॉन मार्शल इसे - 3200 - 2750 ईसा पूर्व का।3. माधोंस्वरूप वत्स - 3500 - 2700 ईसा पूर्व कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि दुनिया में सबसे पहले हम आए।

कैप्शन- में पढ़ें ऋग्वेद काल 1500- 1000 ई.पूर्व से लेकर उत्तर वैदिक काल 1000 - 600 ई पूर्व तक हमने- दुनिया को - ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद और अथर्ववेद जैसे चार ग्

ऋग्वेद काल 1500- 1000 ई.पूर्व से लेकर उत्तर वैदिक काल 1000 - 600 ई पूर्व तक हमने- दुनिया को - ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद और अथर्ववेद जैसे चार ग् #Collab #YourQuoteAndMine #तुमतक #पाठकपुराण

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Dr Upama Singh

     रचना नंबर – 1 
“भारतीय साहित्य में स्त्रीयों का योगदान”
          निबंध– अनुशीर्षक में       

 भारत में विभिन्न भाषा साहित्य के क्षेत्र में जिस तरह पुरुषों ने प्राचीन काल से ही उत्कृष्ट योगदान दिया है ठीक स्त्रीयों की भूमिका भी बराबर क

भारत में विभिन्न भाषा साहित्य के क्षेत्र में जिस तरह पुरुषों ने प्राचीन काल से ही उत्कृष्ट योगदान दिया है ठीक स्त्रीयों की भूमिका भी बराबर क #yqrestzone #collabwithrestzone #rzhindi #similethougths #rzसाहित्य #rzहिंदीकाव्यसम्मेलन

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Nadbrahm

मिथिला इतिहास के एक बड़े हिंस्से में अपने उत्कर्ष पतन के अनगिनत किस्सों को समेटे है। वैदिक काल मे जो क्षेत्र मानव विकाश के लिए विमर्श , संवाद व विद्या साधना की भूमि रही है। ज्ञान का प्रभाव ऐसा की दुनियां के समस्त विद्वान अपने ज्ञानी होने के सामाजिक प्रमाण हेतु जनक सभा मे आकर अपनी विद्वता सिद्ध  करते थे। वैदिक उपनिषद के तत्व ज्ञान का प्रवाह ऐसा की वहाँ का राजा स्वयं को राज पद , संपदा व सामाजिक मान अपमान से मुक्त यहाँ तक कि इस भौतिक देह की सीमाओं से भी मुक्त था। इसी ज्ञान के आधार पर मिथिला के सभी सम्राट विदेह कहलाते थे बिना देह अर्थात भौतिक सीमाओं से परे ज्ञान पुंज। उसी धरती पर कणाद, गौतम,अष्टावक्र जैसे तत्व ज्ञानी का ज्योति फैला। संख्या, मीमांसा के सिद्धि की ये धरती भी काल क्रम में अपने पराभव को नही रोक पाई। काल चक्र में माता जानकी की ये भूमि विप्पनता, अशिक्षा व दरिद्रता का दंश झेलने लगी। राजनीतिक वेदी पर इस क्षेत्र का विखंडन भी भारत व नेपाल के हिस्से में हो गया। इस अंतहीन यात्रा में ज्ञान भले लोप हुआ पर लोक कलाएं आज भी अपने मिथिला के अस्तित्व का गीत सब को सुनाती है। भित्ति चित्र व अहिपन ( अल्पना ) से बढ़ते हुए आज मिथिला पैंटिग उसी मिथिला की खास संस्कृति के  किस्से सुनाती है। 
यह पैंटिग हर पर्व त्योहारों में मिट्टी पर बनी, आँगन में बनी, मिट्टी के घर को लेब कर उस के दीवारों को सजाया नव जीव आवाहन की प्रक्रिया में भी तांत्रिक पैंटिग बन कोहबर( नव विवाहिता के लिए विशेष कमरा) में नव दंपति में लिए उत्तम ऊर्जा का संवाहक बानी । आज मिथिला से बाहर फैसन का भी रूप ले चुकी हमारी संस्कृति की ये अंतहीन कहानी है। 
हाँ मिथिला की बाते युगों से पुरानी है। 
#मिथिला #root #culture_and_civilisation #untoldstory

©BK Mishra मिथिला इतिहास के एक बड़े हिंस्से में अपने उत्कर्ष पतन के अनगिनत किस्सों को समेटे है। वैदिक काल मे जो क्षेत्र मानव विकाश के लिए विमर्श , संवाद

मिथिला इतिहास के एक बड़े हिंस्से में अपने उत्कर्ष पतन के अनगिनत किस्सों को समेटे है। वैदिक काल मे जो क्षेत्र मानव विकाश के लिए विमर्श , संवाद #untoldstory #अनुभव #root #culture_and_civilisation

14 Love

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N S Yadav GoldMine

इस प्रकार लिखी महर्षि वाल्मीकि ने रामायण :- 
{Bolo Ji Radhey Radhey}
वाल्मीकि को प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों कि श्रेणी में प्रमुख स्थान प्राप्त है। पुराणों के अनुसार, इन्होंने कठोर तपस्या कर महर्षि का पद प्राप्त किया था। 

परमपिता ब्रह्मा के कहने पर इन्होंने भगवान श्रीराम के जीवन पर आधारित रामायण नामक महाकाव्य लिखा। ग्रंथों में इन्हें आदिकवि कहा गया है। इनके द्वारा रचित आदिकाव्य श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण संसार का सर्वप्रथम काव्य माना गया है।

इस प्रकार लिखी रामायण :-

रामायण के अनुसार, एक बार महर्षि वाल्मीकि तमसा नदी के तट पर गए। वहां उन्होंने प्रेम करते क्रौंच -सारस पक्षी के जोड़े को देखा। वे दोनों पक्षी मधुर बोली बोलते थे। 

तभी उन्होंने देखा कि एक निषाद -शिकारी ने क्रौंच पक्षी के जोड़े में से नर पक्षी का वध कर दिया और मादा पक्षी विलाप करने लगी। उसके इस विलाप को सुन कर महर्षि की करुणा जाग उठी और अनायास ही उनके मुख से ये शब्द निकले।

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वती: समा:।

यत् क्रौंचमिथुनादेकमवधी: काममोहितम्॥

अर्थात- निषाद। तुझे कभी भी शांति न मिले, क्योंकि तूने इस क्रौंच के जोड़े में से एक की, जो काम से मोहित हो रहा था, बिना किसी अपराध के ही हत्या कर डाली।

तब महर्षि वाल्मीकि ने सोचा कि अचानक ही उनके मुख से श्लोक की रचना हो गई। जब महर्षि वाल्मीकि अपने आश्रम पहुंचे तब भी उनका ध्यान उस श्लोक की ओर ही था। तभी महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में भगवान ब्रह्मा आए और उनसे कहा कि- आपके मुख से निकला यह छंदोबद्ध वाक्य -गाया जाने वाला श्लोक रूप ही होगा।

मेरी प्रेरणा से ही आपके मुख से ऐसी वाणी निकली है। अत: आप श्लोक रूप में ही श्रीराम के संपूर्ण चरित्र का वर्णन करें। इस प्रकार ब्रह्माजी के कहने पर महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य की रचना की। 🙏जय श्री राम 🙏

©N S Yadav GoldMine इस प्रकार लिखी महर्षि वाल्मीकि ने रामायण :- 
{Bolo Ji Radhey Radhey}
वाल्मीकि को प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों कि श्रेणी में प्रमुख स्थान

इस प्रकार लिखी महर्षि वाल्मीकि ने रामायण :- {Bolo Ji Radhey Radhey} वाल्मीकि को प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों कि श्रेणी में प्रमुख स्थान #alone #पौराणिककथा

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Ravikant Mishra

तीरथ वर नैमिष विख्याता ।
अति पुनीत साधक सिधि दाता ।।🙏




भगवान की कृपा से ऐसे 
स्थान पर जन्म मिला मुझे 😊 नैमिषक्षेत्र : इसे आदितीर्थ कहा जाता है। यह उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद से लगभग 40 किलोमीटर पूर्वकी ओर है। यह स्वायम्भुव मनु और शतरूपा की त

नैमिषक्षेत्र : इसे आदितीर्थ कहा जाता है। यह उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद से लगभग 40 किलोमीटर पूर्वकी ओर है। यह स्वायम्भुव मनु और शतरूपा की त #yqbaba #yqdidi #proud #Devotional #Bhakti #Namish

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Ravikant Mishra✨

तीरथ वर नैमिष विख्याता ।
अति पुनीत साधक सिधि दाता ।।🙏




भगवान की कृपा से ऐसे 
स्थान पर जन्म मिला मुझे 😊 नैमिषक्षेत्र : इसे आदितीर्थ कहा जाता है। यह उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद से लगभग 40 किलोमीटर पूर्वकी ओर है। यह स्वायम्भुव मनु और शतरूपा की त

नैमिषक्षेत्र : इसे आदितीर्थ कहा जाता है। यह उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद से लगभग 40 किलोमीटर पूर्वकी ओर है। यह स्वायम्भुव मनु और शतरूपा की त #yqbaba #yqdidi #proud #Devotional #Bhakti #Namish

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N S Yadav GoldMine

आप मेरे इस अपराध को क्षमा कर मुझ पर कृपा कीजिए और मुझे धन-धान्य से समृद्ध कीजिए जानें रोचक कथा !! 💠💠

{Bolo Ji Radhey Radhey}
गयासुर की कथा :- 🌟 धर्म, सदाचार, नीति, न्याय, और सत्य का बोध कराने वाली प्राचीन कथाएं। यह प्राचीन कथा है हमारे जीवन के लिए प्रेरणादायक होती है। वैदिक काल में ब्रह्माजी जब सृष्टि की रचना कर रहे थे तो असुर कुल में गय का जन्म हुआ, पर उसमें आसुरी वृत्ति नहीं थी। वह परम वैष्णव तथा दैवज्ञ था। वेद संहिताओं में जिन असुरों का नाम आया है, उसमें गय प्रमुख है। एक बार उसकी इच्छा हुई कि वह अच्छे कार्य कर इतना पुण्यात्मा हो जाए कि लोग उसके दर्शन करके ही सब पापों से मुक्त हो जाएं तथा मृत्यु के बाद उन्हें स्वर्ग में स्थान मिले।

🌟 ऐसा विचार कर उसने कोलाहल पर्वत पर समाधि लगाकर भगवान विष्णु की तपस्या करनी प्रारंभ की। वर्ष पर वर्ष बीतते गए, उसकी तपस्या चलती रही। उसके कठोर तप से प्रभावित होकर भगवान विष्णु प्रगट हुए और गय की समाधि भंग करते हुए कहा-महात्मन गय, उठो! तुम्हारी तपस्या पूर्ण हुई। किस उद्देश्य के लिए इतना कठोर तप किया? अपना इच्छित वर मांगो। गय ने आंखें खोली तो देखा, सामने चतुर्भुज भगवान विष्णु खड़े हैं। गय ने चरणों में दण्डवत प्रणाम कर कहा-भगवन! 

🌟 आपके चतुर्भुज रूप का दर्शन कर मेरे सब पाप दूर हो गए। मुझे ऐसा लगता है कि आप इसी रूप में मेरे अन्दर समा गए हैं। अब तो यही इच्छा है, आप इसी रूप में मेरे शरीर में वास करें तथा जो मुझे देखे, उसे मेरे बहाने आपके दर्शन का पुण्य मिले तथा उसके सभी पाप नष्ट हो जाएं और वह इतना पुण्यात्मा हो जाए कि मृत्यु के बाद उस जीव को स्वर्ग में स्थान मिले। मेरे इस तप का फल उन सबको प्राप्त हो जो मेरे माध्यम से आपके अप्रत्यक्ष दर्शन करें।

🌟 गय की इस सार्वजनिक कल्याण-भावना से भगवान विष्णु बहुत प्रभावित हुए और हाथ उठाकर बोले-तथास्तु! ऐसा कहते ही भगवान अन्तर्धान हो गए। अब गय एक स्थान पर न बैठकर सर्वत्र घूम-घूम कर लोगों से मिलता। फलस्वरूप जो भी उसे देखता, उसके पापों का क्षय हो जाता और वह मरणोपरान्त स्वर्ग का अधिकारी हो जाता। इससे यमराज की व्यवस्था में व्यवधान आ गया। अब किसी के कर्मफल का लेखा-जोखा वे क्या रखें, जब गय के दर्शन होते ही उसके सब पाप नष्ट हो जाते हैं तथा वह स्वर्ग का अधिकारी हो जाता है तो फिर नरक दूतों का क्या कार्य रहा।

🌟 उन्होंने ब्रह्मा जी के सामने यह समस्या रखी। ब्रह्मा जी ने कहा-ठीक है, इसका कुछ उपाय करते हैं। कर्मफल का विधान बना रहना चाहिए। हम इसके शरीर पर एक यज्ञ का आयोजन करते हैं तथा मैं और अन्य सारे देवता इसकी पीठ पर पत्थर रखकर, उस पर बैठकर उसे अचल कर देंगे। फिर यह कहीं आ-जा न सकेगा। गय की पीठ पर यज्ञ हो, यह तो और पुण्य का काम है, गय ने ब्रह्मा के इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया। ब्रह्मा जी यमराज सहित सारे देवताओं को लेकर, पत्थर से दबाकर उस पर बैठ गए। अपने ऊपर इतना भार होने पर भी गय अचल नहीं हुआ। 

🌟 देवगणों को चिन्ता हुई तो ब्रह्मा ने कहा-इसे भगवान विष्णु ने वरदान दिया है, इसलिए हम विष्णु जी की शक्ति का आह्वान करें तथा उन्हें भी इस शिला पर अपने साथ बैठाएं, तब यह अचल होगा। ब्रह्मा समेत सब देवों ने विष्णु का आह्वान किया तथा अपनी और यमराज की समस्या बताई। विष्णु इस पर विचार कर जब सबके साथ उस पर बैठे तब कहीं जाकर वह अचल हुआ। विष्णु को अपने ऊपर आकर बैठे देखकर उसने देवताओं से कहा-आप सब तथा भगवान विष्णु की मर्यादा के लिए मैं अब अचल होता हूं तथा घूमकर लोगों को दर्शन देकर जो उनका पाप क्षय करता था, उस कार्य को समाप्त करता है।

🌟 पर आप सबके इस प्रयास से भी भगवान विष्णु का यह वरदान व्यर्थ सही जाएगा। भगवन, अब आप मुझे पत्थर-शिला के रूप में परिवर्तित कर यहीं अचल रूप से स्थापित कर दें। गय का यह मर्यादित त्याग देखकर भगवान विष्णु प्रसन्न हो उठे और बोले-गय! तुम्हारा यह त्याग व्यर्थ नहीं जाएगा। इस अवस्था में भी तुम्हारी कोई इच्छा हो तो वह कहो, मैं उसे पूर्ण करूंगा। 

🌟 गय ने कहा-नारायण! मेरी इच्छा है कि आप इन सभी देवताओं के साथ अपरोक्ष रूप से इसी शिला पर विराजमान रहें और यह स्थान मरणोपरान्त धार्मिक कृत्य के लिए तीर्थस्थल बन जाए। जो व्यक्ति यहां अपने पितरों का श्राद्ध करें, तर्पण-पिण्ड दान आदि करें, उन मृतात्माओं को नरक की पीड़ा से मुक्ति मिले। यह सारा क्षेत्र ऐसी ही पुण्य-भूमि बन जाए। 

🌟 विष्णु ने कहा-गय! तुम धन्य हो! तुमने अपने जीवन में भी जन कल्याण के लिए ऐसा ही वर मांगा और अब मरण-अवस्था में मृत आत्माओं की मुक्ति के लिए भी ऐसा ही वर मांग रहे हो। तुम्हारी इस जन-कल्याण भावना से हम सब बंध गए। ऐसा ही होगा। इस क्षेत्र का नाम तुम्हारे नाम गयासुर के अर्धभाग गया से विख्यात होगा। इस क्षेत्र में आने वाले तथा इस शिला के दर्शन कर यहां श्राद्ध तर्पण-पिण्ड दान करने वालों के पूर्वजों को जीवन में जाने-अनजाने किए गए पाप कर्मों से मुक्ति मिलेगी। यहां स्थित पर्वत गयशिर कहलाएगा। 

🌟 गयशिर पर्वत की परिक्रमा, फल्गू नदी में स्नान तथा इस शिला का दर्शन करने पर पितरों का तो कल्याण होगा ही, जो यहां इस उद्देश्य से आएगा, उसके पुण्य में भी श्रीवृद्धि होगी। भगवान विष्णु से ऐसा वर पाकर गय संतुष्ट होकर शान्त हो गया। बिहार प्रदेश में स्थित गया पितरों के श्राद्ध पिण्ड-दान का महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान है। यहां स्थित विष्णु मंदिर के पृष्ठ भाग में पत्थर की एक अचल शिला आज भी स्थित है। जो जन-कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित करते हैं, उनका यश ऐसे ही चिरकाल तक स्थायी तथा स्थिर होता है। जो केवल अपने लिए न जीकर समष्टि के लिए जीते हैं, उनका जन्म-मरण दोनों सार्थक होता है।

©N S Yadav GoldMine
  #Gulaab आप मेरे इस अपराध को क्षमा कर मुझ पर कृपा कीजिए और मुझे धन-धान्य से समृद्ध कीजिए जानें रोचक कथा !! 💠💠

{Bolo Ji Radhey Radhey}
गयासुर

#Gulaab आप मेरे इस अपराध को क्षमा कर मुझ पर कृपा कीजिए और मुझे धन-धान्य से समृद्ध कीजिए जानें रोचक कथा !! 💠💠 {Bolo Ji Radhey Radhey} गयासुर #प्रेरक

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Jaya Prakash

  👉संगीत (Music)👈

👇read caption👇
👇 संगीत की कला दुनिया में सबसे बड़ा खजाना है। संगीत, न सिर्फ हमारे कानों को 

मधुर लगता है बल्कि यह स्ट्रेस लेवल कम करने का भी काम करता है। सं

संगीत की कला दुनिया में सबसे बड़ा खजाना है। संगीत, न सिर्फ हमारे कानों को मधुर लगता है बल्कि यह स्ट्रेस लेवल कम करने का भी काम करता है। सं #Music #yqbaba #yqdidi #yqdada #yqhindi #eveningvibes

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शशांक गौतम

हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ! #yqbaba #yqdidi

दिन है शनिवार 14 सितंबर,
रोज़मर्रा के कामकाज में व्यस्त हरेक जीवित व्यक्ति !
शायद अंजान है, 130 करोड़ हिंदुस्तानियों की मातृभ

#yqbaba #yqdidi दिन है शनिवार 14 सितंबर, रोज़मर्रा के कामकाज में व्यस्त हरेक जीवित व्यक्ति ! शायद अंजान है, 130 करोड़ हिंदुस्तानियों की मातृभ

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Amar Anand

-परम सत्य योगपथ-
ऋषि, मुनि, साधु और सन्यासी में अंतर -
नीचे कैप्शन में...
 ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में  अंतर :------

भारत में प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों का बहुत महत्त्व रहा है। ऋषि मुनि समाज के पथ प्रदर्शक म

ऋषि, मुनि, साधु और संन्यासी में अंतर :------ भारत में प्राचीन काल से ही ऋषि मुनियों का बहुत महत्त्व रहा है। ऋषि मुनि समाज के पथ प्रदर्शक म

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Hariom yadav

वैदिक  पंक्ति

वैदिक पंक्ति

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laukik sanskrit

वैदिक संस्कृत

वैदिक संस्कृत

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laukik sanskrit

वैदिक संस्कृत

वैदिक संस्कृत

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Astro guruji

# वैदिक सनातन

# वैदिक सनातन

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Yuvraj singh Rathore

जिस प्रकार हथौड़ी - छेनी पत्थर पर मारने से पत्थर भी मूर्ति बन जाता उसी प्रकार सही शिक्षा मनुष्य नहीं बल्कि जानवर को भी सभ्य बना देती है

©Yuvraj singh Rathore
  #वैदिक शिक्षा

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Mågîc Võîcë

#वैदिक संस्कृति 

#krishna_flute

#वैदिक संस्कृति #krishna_flute #बात

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dr . Sandip Pawar

🌞 *वैदिक राष्ट्रगीतम्* 🌞

ॐ आ ब्रह्मन् ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायताम्।
आऽस्मिन राष्ट्रे राजन्य: इषव्य: शूरो महारथो जायताम् ।
दोग्ध्री धेनु: वोढाऽनडवान् आशु: सप्ति:
पुरन्ध्रि: योषा जिष्णू रथेष्ठा:
सभेयो युवास्य यजमानस्य वीरो जायताम् ।
निकामे निकामे न: पर्जन्यो वर्षतु
फलवत्यो न ओषधय: पच्यन्तां
योगक्षेमो न: कल्पताम् ।।
( यजुर्वेद, अध्याय २२, मंत्र २२, रृषि- प्रजापति:)

हे ईश्वर !
हमारे राष्ट्र में ब्रह्मवर्चसी ब्राह्मण उत्पन्न हों। हमारे राष्ट्र में शूर, बाणवेधन में कुशल, महारथी क्षत्रिय उत्पन्न हों। यजमान की गायें दूध देने वाली हों, बैल भार ढोने में सक्षम हों, घोड़े शीघ्रगामी करने वाले हों। स्त्रियाँ सुशील और सर्वगुण सम्पन्न हों। रथवाले, जयशील, पराक्रमी और यजमान पुत्र हों। हमारे राष्ट्र में आवश्यकतानुसार समय-समय पर मेघ वर्षा करें। फ़सलें और औषधियाँ फल-फूल से लदी होकर परिपक्वता प्राप्त करें। और हमारा योगक्षेम उत्तम रीति से होता रहे।

🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅

हे ईश्वर ! स्वराष्ट्र में हों द्विज ब्रह्मतेजधारी ।
क्षत्रिय महारथी हों अरिदल विनाशकारी ।।
होवें दुधारू गौवें पशु अश्व आशुवाही।
आधार राष्ट्र की हों नारी सुभग सदा ही ।।
बलवान सभ्य योद्धा यजमान पुत्र होवें ।
इच्छानुसार वर्षें पर्जन्य ताप धोवें ।।
फलफूल से लदी हों औषध अमोघ सारी ।
हो योगक्षेमकारी, स्वाधीनता हमारी ।।

🇮🇳🙏🏻 *योगेश्वर दिनस्य शुभाषयाः* 🙏🏻🇮🇳

©dr . Sandip Pawar वैदिक राष्ट्रगीत

#RepublicDay

वैदिक राष्ट्रगीत #RepublicDay

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Anuradha Priyadarshini

हँसते मुस्कुराते वो लड़ता रहा
आज विदा ले रहा यादें दिए जा रहा

©Anuradha Priyadarshini
  डॉ वेदप्रताप वैदिक

डॉ वेदप्रताप वैदिक #न्यूज़

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mahesh vedik

वैदिक यंज्ञ क्यों करे

वैदिक यंज्ञ क्यों करे

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AmanjnA Sharma

@मंत्र# #वैदिक #शिव #अघोरेभ्यो
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