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Shivraj Solanki
#Pehlealfaaz अश्क आंखों से निकल आते है समय थम सा गया लगता है जब विदाई के अंतिम क्षण आते है फिर व्यक्ति अच्छा हो या बुरा प्यार आ ही जाता है याद उसके साथ गुजारे पल आने लगते है अनुभव बुरे है तो भुला दिए जाते है अनुभव अच्छे हो तो याद किए जाते है शिव सुन्दर (शिवराज खटीक) #कविता विदाई
Rahul
हुस्न का घमंड न कर, न नाज कर तू खुदाई पर, मेरे जनाजे पर माँ मेरी सागर छलका देगी, आंगन को दुःख होगा न तेरे रुकसत का न शहनाई रोयेगी विदाई पर। @रK विदाई पर
Eshu
यह टीचर की विदाई का कविता खिलता हुआ गूलब थे आप हमरे अधरे जीवन ज्ञान के दीपक थे आप हम सब बच्चे थे नादान पढ़ने में नहीं था ज्ञान हमरे भूलो को माफ करिए दे कर विद्या का दान अपने अनमोल शिक्षा को खेल खेल में हमें सिखाया संस्कारों का पाठ हमें पढ़ाया सही गलत का ज्ञान कराया हमारे लिए विश्वास जगाया मंजिल तक पहुंचाने का रास्ता दिखा दिया हमारे आंगन छोड़ कर जा रहे हैं आप जीवन में सदा सुख रहो आप ©Eshu यह कविता है टीचर की विदाई #Butterfly
Anwesh Dubey
छात्रों की भावभीनी विदाई में समर्पित कविता,,,,,,
Malik
इक शाख़ ज़िन्दगी के शजर से जुदा हुई रोने का था मुक़ाम यहाँ हंस रहे हैं लोग | ✍️तौसीफ रज़ा तहसीनी ©Malik 2020 की विदाई पर #bye2020
Dr. Bhagwan Sahay Meena
#विषय - विदाई #विधा - गीत (कन्याभ्रूण हत्या पर) मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। जहां आंगन तेरे खेलती, ले फूल सी अंगड़ाई। पापा देख देख मुस्काती, मैं सहती नहीं जुदाई। मैं अंगुली पकड़े चलती मां, जग तेरी करें बढ़ाई। तात मात से दुनिया कहती, बेटी ही घर महकाई। मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। देख जगत की यह करतूतें, आंखें मेरी भर आई। गर्भ से जब किए निष्पादन, बोटी - बोटी घबराई। मखमल सी मेरी काया को,यूं खंड खंड कटवाई। चीखें मेरी निकली होगी, मां गर्भाशय मरवाई। मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। कैसे होगा मंगल गायन, कहां बजेगी शहनाई। पाप किया बेटे के खातिर, बेटी जिसने कटवाई। जब बहू ढूंढते जगत फिरें,तब याद गर्भ की आई। दुनिया बेटे की चाहत में, मां बेटी को मरवाई। डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदमपुरा जयपुर राजस्थान। ©Dr. Bhagwan Sahay Rajasthani #maaPapa कन्या भ्रूणहत्या पर गीत विदाई
Mumtaz Ahmed Khan
नूर आंखों का दिल के सहारे चले। वो गया चांद! देखो वो तारे चले! बागबा ने शफकत से पाला जिसे! मोसमों ने नज़ाकत से ढाला जिसे! उस हसीं रूप को, सुबह की धूप को! यह समय के कहां लेके धारे चले! नूर आंखों का दिल के सहारे चले! जिसके दम से था आबाद मेरा जहां जिस की रौनक से रोशन था यह आशियां अब हमें छोड़ कर। हम से मुंह मोड़ कर। करके सुना वह घर को हमारी चले। नूर आंखों का दिल के सहारे चले। खुशबुओं सी, वो चंचल सी अल्हड़ पवन! जिसके दम से था आबाद मेरा चमन! अब बहुत दूर वो! कितने मजबूर वो। ले नई जिंदगी के शरारे चले ! नूर आंखों का दिल के सहारे चले! ©Mumtaz Ahmed Khan अपनी बिटिया की विदाई पर #VantinesDay
Dr. Bhagwan Sahay Meena
शीर्षक--- विदाई विधा - गीत (कन्याभ्रूण हत्या पर) मापनी - लावणी छंद/ 16-14 पर यति मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। जहां आंगन तेरे खेलती, ले फूल सी अंगड़ाई। पापा देख देख मुस्काती, मैं सहती नहीं जुदाई। मैं अंगुली पकड़े चलती मां, जग तेरी करें बढ़ाई। तात मात से दुनिया कहती, बेटी ही घर महकाई। मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। देख जगत की यह करतूतें, आंखें मेरी भर आई। गर्भ से जब किए निष्पादन, बोटी - बोटी घबराई। मखमल सी मेरी काया को,यूं खंड खंड कटवाई। चीखें मेरी निकली होगी, मां गर्भाशय मरवाई। मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। कैसे होगा मंगल गायन, कहां बजेगी शहनाई। पाप किया बेटे के खातिर, बेटी जिसने कटवाई। जब बहू ढूंढते जगत फिरें,तब याद गर्भ की आई। दुनिया बेटे की चाहत में, मां बेटी को मरवाई। डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदमपुरा जयपुर राजस्थान। ©Dr. Bhagwan Sahay Rajasthani #Wochaand विदाई गीत कन्या भ्रूणहत्या पर