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AK__Alfaaz..
साँझ की, दहलीज पर बैठी, निहारती वो, कच्ची सड़क की, पगडंडियों से, लौटती क्षितिज पर, धूप की पनिहारिन को, ढ़लते सूरज के संग, बढ़ती प्रतिक्षा की, परछाइयों का होता जन्म, अंधकार की सहमति, प्रभात के नाम मन की स्लेट पर, लिखती नही आक्रोश वो, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #रूदाली साँझ की, दहलीज पर बैठी, निहारती वो, कच्ची सड़क की,
Sanjay Tiwari
बादल मेहरबां हुए भी तो इस कदर एक एक बूंद को ढूंढा किये दरबदर रिमझिम फुहारों से तन मन तरबतर हुआ ये रूह तो प्यासी रही ,वो न मुत्तसिर हुआ मुत्तसिर -प्रभावित #तृष्णा
नि:शब्द अमित शर्मा
समय पर सब ने दे पर समाई ना होती ..(2) चाहत पूरी होज्या स , मन चाही ना होती ©निःशब्द अमित शर्मा #तृष्णा
Rajesh rajak
Alone आदि तो सबको मिला,न मिला किसी को अंत, घर ढूंढे,आंगन ढूंढ़े सब जग ढूंढे कंत, क्षितिज वहम है आपका,नहीं जमीं का छोर, परम सत्य है आत्मा,क्यों झांके चहुं ओर, ईश्वर अंश तू जीव है,कर मानव से प्रेम, माया तो छल रूप है, ज्यों राहु कालनेम, आया है सो जाएगा,फिर काहे का अभिमान, यम बंधन में कोई गया,कोई चढ़ गया विमान, मन मदिरा क्यों धारता,मन की बैरी प्रीत, मन,वचन अरू कर्म से,जीत सके तो जीत, तृष्णा,
Parasram Arora
कितना दौड़ते हो? कुछ तो मिलता नहीं अब रुको तृष्णा बेपेंदे की बाल्टी है भरो खड़खड़ाओ कुवें से खूब खींचो ये जिंदगी नहीं ाअनेक जिंदगी खींचते रहो खाली क़ि खाली रहेगी ज़ब भी बाल्टी आएगी खाली हाथ आएगी कुवें बदल लो... इस कुवें से उस कुवें. पर जाओ उस कुवें से उस कुवें पर जाओ यही हम लोग कर रहे हैँ मगर कुओं का क्या कुसूर? बाल्टी वही क़ि वही ©Parasram Arora #तृष्णा.......
CK JOHNY
मुँह में रहे न दाँत पेट में रही न आँत मन सदा है भ्रांत। इच्छाएं हुई न शांत। तृष्णा