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PraDeep
चत्वारि ते तात गृहे वसन्तु श्रियाभिजुष्टस्य गृहस्थधर्मे । वृद्धो ज्ञातिरवसत्रः कुलीनः सखा दरिद्रो भगिनी चानपत्या ॥ परिवार में सुख-शांति और धन-संपत्ति बनाए रखने के लिए बड़े-बूढ़ों, मुसीबत का मारा कुलीन व्यक्ति, गरीब मित्र तथा निस्संतान बहन को आदर सहित स्थान देना चाहिए । इन चारों की कभी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। ©PraDeep चत्वारि ते तात गृहे वसन्तु श्रियाभिजुष्टस्य गृहस्थधर्मे । वृद्धो ज्ञातिरवसत्रः कुलीनः सखा दरिद्रो भगिनी चानपत्या ॥ परिवार में सुख-शांति और
Nir@j
बहुत ख़ुश हैं हम कि एक हबीब मिला है, मानो बिछड़ कर फ़िर से नसीब मिला है! बेशक देर से आया पर, दुरुस्त आया वो, देखो दोस्त हमें कितना अजीब मिला है! लोग रहतें हैं हमेशा अच्छे की तलाश में, अरे वाह ठाकुर तुझे तो नजीब मिला है! क़िस्मत से तू बेशक सिकंदर है ठाकुर, दिल से अमीर, गुनाहों से गरीब मिला है! ऐशो-आराम से हिसाब करता रह "नीर", तुम्हें दोस्त के साथ साथ मुनीब मिला है! हबीब: मित्र, सखा, दोस्त, अजीब: अनोखा, विचित्र नजीब: कुलीन, शुद्ध रक्तवाला, खानदानी ऐशो-आराम: सुख-चैन, मौज मस्ती, भोग-विलास, ऐश्वर्य। मुनीब:
Buddhi Prakash Jangid
नैवाकृतिः फलति नैव कुलं न शीलं विद्यापि नैव न च यत्नकृतापि सेवा भाग्यानि पूर्वतपसा खलु संचितानि काले फलन्ति पुरुषस्य यथैव वृक्षाः । ©Buddhi Prakash Jangid * नैवाकृतिः फलति नैव कुलं न शीलं * * विद्यापि नैव न च यत्नकृतापि सेवा * * भाग्यानि पूर्वतपसा खलु संचितानि * *काले फलन्ति पुरुषस्य यथैव वृक्
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
कंचन काया जैसे रखना तुम अपनो का मान । बहना तुम हम सबकी प्यारी रखना इतना ध्यान ।। नहीं किसी को आहत करना सब हैं एक समान । संघर्षों से घबराकर तुम भूल न जाना भान ।। जन्म दिवस पे देते तुमको प्यार भरा आशीष । बाकी मैं क्या देने वाला जो देता है ईश ।। सफल बनाओ जीवन अपना रहो कर्म में लीन । जीवन की इस भाग दौड में तुम चुनो पथ कुलीन ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कंचन काया जैसे रखना तुम अपनो का मान । बहना तुम हम सबकी प्यारी रखना इतना ध्यान ।। नहीं किसी को आहत करना
Sunita Singh
पश्चिम की करके नकल, हुए धर्म से हीन | युवाओं को देखिए, लगते कितने दीन || लाज - हया सब भूल कर, बनते बड़े प्रवीन | पश्चिम की करके नकल, हुए धर्म से हीन || अर्ध नग्न यूँ घूमते, लगते शर्म विहीन | पश्चिम की करके नकल, हुए धर्म से हीन || बेची अपनी सभ्यता, बनते बड़े कुलीन | पश्चिम की करके नकल, हुए धर्म से हीन || सुनीता सिंह सरोवर ©Sunita Singh #Parchhai ज पश्चिम की करके नकल, हुए धर्म से हीन | युवाओं को देखिए, लगते कितने दीन || लाज - हया सब भूल कर, बनते बड़े प्रवीन | पश्चिम की कर
atrisheartfeelings
तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम। सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम॥ सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी॥ तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा। करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा॥ तामस तनु कछु साधन नाहीं। प्रीत न पद सरोज मन माहीं॥ अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥ जौं रघुबीर अनुग्रह कीन्हा। तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा॥ सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीति॥ कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना॥ प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा॥ #atrisheartfeelings #ananttripathi #sundarkand #sunderkand #yqbaba #devotional तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम। सुनत जुगल तन पुलक मन मगन स
FAMILY LIFE
मैं मूरत हो जाऊं जिस मंदिर की तुम उसका कोई कपाट बनो मैं होऊं शाम बनारस की तुम गंगा आरती घाट बनो Read in caption 👇👇 मैं कोई किनारा हो जाऊँ तुम बनकर नदी कोई बहना जब डूबूँ साँझ को सूरज सा तुम मेरी लाली में रहना मैं कोई गोताखोर बनूँ तुम सिक्का एक का हो जाना
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 6 हनुमानजी विभीषण को श्री राम कथा सुनाते है:- तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम। सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्राम ॥6॥ विभिषणके ये वचन सुनकर हनुमानजी ने रामचन्द्रजी की सब कथा विभीषण से कही और अपना नाम बताया। प्रभु राम के नाम स्मरण से, दोनों के मन आनंदित हो जाते है:- परस्पर की बाते सुनते ही दोनों के शरीर रोमांचित हो गएऔर श्री रामचन्द्रजी का स्मरण आ जाने से दोनों आनंदमग्न हो गए ॥6॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम विभीषण हनुमानजी को अपनी स्थिति बताते है:- सुनहु पवनसुत रहनि हमारी। जिमि दसनन्हि महुँ जीभ बिचारी॥ तात कबहुँ मोहि जानि अनाथा। करिहहिं कृपा भानुकुल नाथा॥ विभीषण कहते है की – हे हनुमानजी! हमारी रहनी हम कहते है सो सुनो। जैसे दांतों के बिचमें बिचारी जीभ रहती है,ऐसे हम इन राक्षसोंके बिच में रहते है॥ हे तात! वे सूर्यकुल के नाथ (रघुनाथ), मुझको अनाथ जानकर कभी कृपा करेंगे? बिना भगवान् की कृपा के सत्पुरुषों का संग नहीं मिलता:- तामस तनु कछु साधन नाहीं। प्रीत न पद सरोज मन माहीं॥ अब मोहि भा भरोस हनुमंता। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता॥ जिससे प्रभु कृपा करे ऐसा साधन तो मेरे है नहीं।क्योंकि मेरा शरीर तो तमोगुणी राक्षस है,और न कोई प्रभुके चरण कमलों में मेरे मन की प्रीति है॥ परन्तु हे हनुमानजी, अब मुझको इस बात का पक्का भरोसा हो गया है कि, भगवान मुझ पर अवश्य कृपा करेंगे।क्योंकि भगवान की कृपा बिना सत्पुरुषों का मिलाप नहीं होता॥ हनुमानजी द्वारा प्रभु श्री राम के गुणों का वर्णन:- प्रभु श्री राम भक्तों पर सदा दया करते है जौं रघुबीर अनुग्रह कीन्हा। तौ तुम्ह मोहि दरसु हठि दीन्हा॥ सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीति॥ रामचन्द्रजी ने मुझ पर कृपा की है इसी से आपने आकर मुझको दर्शन दिए है॥ विभीषणके यह वचन सुनकर हनुमानजीने कहा कि, हे विभीषण! सुनो,प्रभु की यह रीती ही है की वे सेवक पर सदा परमप्रीति किया करते है॥ हनुमानजी कहते है, श्री राम ने वानरों पर भी कृपा की है:- कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना॥ प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा॥ हनुमानजी कहते है की कहो मै कौन सा कुलीन पुरुष हूँ।हमारी जाति देखो (चंचल वानर की),जो महाचंचल और सब प्रकार से हीन गिनी जाती है॥ जो कोई पुरुष प्रातःकाल हमारा (बंदरों का) नाम ले लेवे,तो उसे उस दिन खाने को भोजन नहीं मिलता॥ शनि देव जी का तांत्रिक मंत्र- ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः। शनि देव महाराज के वैदिक मंत्र- ऊँ शन्नो देवीरभिष्टडआपो भवन्तुपीतये। शनि देव का एकाक्षरी मंत्र- ऊँ शं शनैश्चाराय नमः। शनि देव जी का गायत्री मंत्र- ऊँ भगभवाय विद्महैं मृत्युरुपाय धीमहि तन्नो शनिः प्रचोद्यात्। विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज 255 से 265 नाम 255 सिद्धिसाधनः सिद्धि के साधक 256 वृषाही जिनमे वृष(धर्म) जोकि अहः (दिन) है वो स्थित है 257 वृषभः जो भक्तों के लिए इच्छित वस्तुओं की वर्षा करते हैं 258 विष्णुः सब और व्याप्त रहने वाले 259 वृषपर्वा धर्म की तरफ जाने वाली सीढ़ी 260 वृषोदरः जिनका उदर मानो प्रजा की वर्षा करता है 261 वर्धनः बढ़ाने और पालना करने वाले 262 वर्धमानः जो प्रपंचरूप से बढ़ते हैं 263 विविक्तः बढ़ते हुए भी पृथक ही रहते हैं 264 श्रुतिसागरः जिनमे समुद्र के सामान श्रुतियाँ रखी हुई हैं 265 सुभुजः जिनकी जगत की रक्षा करने वाली भुजाएं अति सुन्दर हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 6 हनुमानजी विभीषण को श्री राम कथा सुनाते है:- तब हनुमंत कही सब राम कथा निज नाम। सुनत जुगल तन पुलक मन मगन सुमिरि गुन ग्रा
N S Yadav GoldMine
White {Bolo Ji Radhey Radhey} नियुक्त किये हुए न्यायाधिकारी पुरुष अपराधियों के अपराध की मात्रा को भली भाँति जानकर जो दण्डनीय हों, उन्हें ही उचित दण्ड दें पढ़िए महाभारत !! 🌷🌷 महाभारत: आश्रमवासिका पर्व पंचम अध्याय: श्लोक 18-32 📔 भारत। जिन मनुष्यों के कुल और शील अच्छी तरह ज्ञात हों, उन्हीं से तुम्हें काम लेना चाहिये। भोजन आदि के अवसरों पर सदा तुम्हें आत्मरक्षा पर ध्यान देना चाहिये। आहार विहार के समय तथा माला पहनने, शय्या पर सोने और आसनों पर बैठने के समय भी तुम्हें सावधानी के साथ अपनी रक्षा करनी चाहिये। युधिष्ठिर। कुलीन, शीलवान्, विद्वान, विश्वासपात्र एवं वृद्ध पुरुषों की अध्यक्षता में रखकर तुम्हें अन्तःपुर की स्त्रियों की रक्षा का सुन्दर प्रबन्ध करना चाहिये। राजन्। तुम उन्हीं ब्राह्मणों को अपने मन्त्री बनाओ, जो विद्या में प्रवीण, विनयशील, कुलीन, धर्म और अर्थ में कुशल तथा सरल स्वभाव वाले हों। उन्हीं के साथ तुम गूढ़ विषय पर विचार करो, किंतु अधिक लोगों को साथ लेकर देर तक मन्त्रणा नहीं करनी चाहिये। सम्पूर्ण मन्त्रियों को अथवा उनमें से दो एक को किसी के बहाने चारों ओर से घिरे हुए बंद कमरे में या खुले मैदान में ले जाकर उनके साथ किसी गूढ़ विषय पर विचार करना। जहाँ अधिक घास फूस या झाड़ झंखाड़ न हो, ऐसे जंगल में भी गुप्त मन्त्रणा की जा सकती है, परंतु रात्रि के समय इन स्थानों में किसी तरह गुप्त सलाह नहीं करनी चाहिये। 📔 मनुष्यों का अनुसरण करने वाले जो वानर और पक्षी आदि हैं, उन सबको तथा मूर्ख एवं पंगु मनुष्यों को भी मन्त्रणा गृह में नहीं आने देना चाहिये। गुप्त मन्त्रणा के दूसरों पर प्रकट हो जाने से राजाओं को जो संकट प्राप्त होते हैं, उनका किसी तरह समाधान नहीं किया जा सकता - ऐसा मेरा विश्वास है। शत्रुदमन नरेश। गुप्त मन्त्रणा फूट जाने पर जो दोष पैदा होते हैं और न फूटने से जो लाभ होते हैं, उनको तुम मन्त्रिमण्डल के समक्ष बारंबार बतलाते रहना। राजन्। कुरूश्रेष्ठ युधिष्ठिर। नगर औश्र जनपद के लोगों का हृदय तुम्हारे प्रति शुद्ध है या अशुद्ध, इस बात का तुम्हें जैसे भी ज्ञान प्राप्त हो सके, वैसा उपाय करना। नरेश्वर। न्याय करने के काम पर तुम सदा ऐसे ही पुरुषों को नियुक्त करना, जो विश्वासपात्र, संतोषी और हितैषी हों तथा गुप्तचरों के द्वारा सदा उनके कार्यों पर दृष्टि रखना। भरतनन्दन युधिष्ठिर। तुम्हें ऐसा विधान बनाना चाहिये, जिससे तुम्हारे नियुक्त किये हुए न्यायाधिकारी पुरुष अपराधियों के अपराध की मात्रा को भली भाँति जानकर जो दण्डनीय हों, उन्हें ही उचित दण्ड दें। 📔 जो दूसरों से घूस लेने की रुचि रखते हों, परायी स्त्रियों से जिनका सम्पर्क हो, जो विशषतः कठोर दण्ड देने के पक्षपाती हों, झूठा फैसला देते हों, जो कटुवादी, लोभी, दूसरों का धन हड़पने वाले, दुस्साहसी, सभाभवन और उद्यान आदि को नष्ट करने वाले तथा सभी वर्ण के लोगों को कलंकित करने वाले हों, उन न्यायाधिकारियों को देश काल का ध्यान रखते हुए सुवर्ण दण्ड अथवा प्राण दण्ड के द्वारा दण्डित करना चाहिये। प्रातःकाल उठकर (नित्य नियम से निवृत्त होने के बाद) पहले तुम्हें उन लोगों से मिलना चाहिये, जो तुम्हारे खर्च बर्च के काम पर नियुक्त हों। उसके बाद आभूषण पहनने या भोजन करने के काम पर ध्यान देना चाहिये। जय श्री राधे कृष्ण जी।। ©N S Yadav GoldMine #SAD {Bolo Ji Radhey Radhey} नियुक्त किये हुए न्यायाधिकारी पुरुष अपराधियों के अपराध की मात्रा को भली भाँति जानकर जो दण्डनीय हों, उन्हें ही उ