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shivraj singh
मैंने देखा तो नहीं इस महान पुरुष को मगर मैं जब इनकी कहानी सुनता हूं तो अकेले ही सारी दुनिया से लड़ने की हिम्मत आ जाती है शिवराज सिंह सिंगल भीमराव अंबेडकर
shivraj singh
maine dekha to nahin is mahan purush ko magar main jab inki kahani sunata hun to akele hi sari duniya se ladne ki himmat a jaati hai भीमराव अंबेडकर
Brjendra
हाथ उठाया मैंने था हाथ पकड़ के चलना है संविधान लिखा मैंने था उसको पढ़ कर आगे बढ़ना है ©Brjendra भीमराव अंबेडकर जी
Dr. Sonam Rajput
उठो संघर्ष करो..... अपनी आवाज़ अन्याय के खिलाफ उठाओ..... भीमराव अम्बेडकर जयंती.....
डॉ.अजय कुमार मिश्र
*बाबा साहब डॉ.भीमराव आंबेडकर के जयन्ती पर उन्हें शत-शत नमन??* ------------------- प्रकृति का शास्वत नियम है परिवर्तन,लेकिन प्रकृति उस परिवर्तन को स्वयं एवं पुरुष के संयोग से कराती है,उसमें भी जो पुरुष अचेतन/जड़ प्रकृति को हृदयंगम कर सकल कल्याण के निमित्त परिवर्तन का ध्वजवाहक बनता है,उसे मानव समाज ईश्वर मानता है,क्योंकि वह व्यक्ति विशेष जड़ प्रकृति से आत्म चेतना का संयोग कर मानव कल्याण के निमित्त प्रकृति-जन्य कालातीत नियम-निर्देशों में परिवर्तन करता है। वह परिवर्तन सार्वभौमिक,एकाकी,समुदाय विशेष, समाज विशेष,क्षेत्र विशेष,वर्ण विशेष अथवा वशुधैवकुटुम्बकम के प्रति भी हितकारी एवं कल्याणकारी होता है;परन्तु वह परिवर्तन कालांतर तक ग्राह्य नही होता,अपितु वह परिवर्तन भी पुनः परिवर्तन रूपी कार्य के लिए कारण रूप बनता है;क्योंकि मानव अज्ञानता से ज्ञान के तरफ उन्मुख होता हुआ अपनी उत्कट इक्षाओं एवं आकांक्षाओं से सदैव सर्वोच्चता को शिरोधार्य करना चाहता है;जिसके निमित्त कभी वह भाग्य का सहारा लेता है,तो कभी सद्कर्मों का लेकिन जब मानव कर्महीन,ज्ञानहीन होकर परिवर्तन के आदर्श को अपना नायक मानकर सर्वस्व प्राप्ति की इक्षा से समाज पर अपने आधिपत्य को स्थापित करना चाहता है,तो पुनः प्रकृति किसी पुरुष विशेष को अपने संयोग से नायक बनाकर नवीन परिवर्तन का रेखांकन करने को उद्वेलित होती है। बाबा साहब भीमराव आंबेडकर जी ने प्रकृति जन्य नियमों को सामाजिक कुरीतियों की संज्ञा देकर उन नियमोँ में परिवर्तन कर वर्ण विशेष और समुदाय विशेष में एक नव-चेतना का संचार किया;जिससे कि उत्कृष्ट समाज के समतुल्य समस्त मानव समाज उत्कृष्ट बन सके;लेकिन प्रतिकात्मक सम्बल लेकर नही अपितु ज्ञान-कर्म एवं विद्वेष-रहित सद्भावना को आत्मसात कर;परंतु आज जिस चिंतन से बाबा साहब ने सामाजिक कुरीतियों को समाप्त कर युग निर्माण के ध्वजवाहक बने आज उस ध्वज वाहक के आदर्शों को हम केवल प्रतीकात्मक अधिकार के रूप में स्वीकार करने एवं प्राप्त करने की आकांक्षाओं को प्रबल करने में समाज में पुनः नित नवीन कुरीतियों को जन्म देने एवं पुनः परिवर्तन के मार्ग को प्रशस्त करने को आतुर हैं। अतः आज के दिन आवश्यक है कि हम बाबा साहब के विचाओं ,सिद्धांतों एवं उनके आदर्शों को आत्मसात कर पुनः सामाजिक कुरीतियां उतपन्न न हो इसका संकल्प लें। *!!पुनः पुनः नमन!!* *डॉ.अजय कुमार मिश्र* (पूर्व-संयुक्त मंत्री-suacta) ©डॉ.अजय मिश्र डॉ. भीमराव आंबेडकर #Drown
कवि अजय जयहरि कीर्तिप्रद
डॉ भीमराव अम्बेडकर दिलाया हक कदम से कदम मिलाकर चलने का सुबह शाम बेखौफ होकर अपने घर से निकलने का पलने का ख्वाब की कुछ कर सकते हैं अब हम भी दीपक बन कर जमाने के बीच ; जलने का कवि अजय जयहरि कीर्तिप्रद डॉ भीमराव अम्बेडकर..... कीर्तिप्रद
pramod malakar
भीमराव अंबेडकर जी का जन्म दिवस पर मेरी ओर से समर्पित ################################### आओ हमसब मिलकर, भीमराव अंबेडकर का जन्मदिन मनाएं , आओ हम अंबेडकर के नाम एक दीप जलाएं । संविधान शिल्पकार का आओ हम मार्ग अपनाएं।। एक सूत्र में बांध कर समाज को , राष्ट्र प्रेम का मंत्र दिया जातिवाद को । मानवता का कल्पना कर , उर्जा दिया है हिंदुस्तान को । शासक को कंधा बनाकर , बदल दिया भारत के बिगड़े हालात को । पर अफसोस , चंद देशद्रोही कुचल रहा है , अंबेडकर के पवित्र सौगात को । चीख रहा है अब भारी मन , रो रहा है अब हर जन , कब जागेंगे हम , कब टूटेगा हमारा भ्रम । कब दिखेगा हकीकत का दर्पण , दिल का होगा मिलन या पहनेंगे कफन । त्याग - उद्देश्य शब्द विलुप्त हो चुका है , जीने की कला अद्भुत हो चुका है , अब संविधान भी हमारी मूर्खता को देख कर , गुजरते वक्त तले चुप हो चुका है । आओ संविधान का लौ से , अपने अंतर्मन को जगमगाएं । आओ अंबेडकर के नाम एक दीप जलाएं , आओ हम भीमराव अंबेडकर का जन्मदिन मनाएं।। ******************************************** प्रमोद मालाकार की कलम से भीमराव अंबेडकर के जन्मदिन के अवसर पर देश को समर्पित । ****************** ©pramod malakar #भीमराव अंबेडकर जन्म दिवस।