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रविंद्र घुमरे (कविराज)
हक्काची लढाई नाव वागळण्या आधी एकदा शेतकऱ्याच्या जागेवर उभे राहून बघा... शेती करण एवढ सोप नसतं जसा दिला जातो सत्तेसाठी दगा.. न्याय हक्कासाठी फोडला जातो टाहो घेतली जाते फाशी लेकर मरतात आमचे उपाशी तरी देखील कोरड्या आश्वासनांचा अभिशाप असतो आमच्या पाठीशी सांगा कधी पर्यंत लाचारी स्विकारायची आम्ही आणि याच लाचारीच्या नावाखाली गुवाहाटी फिरायची तुम्ही... हक्काची लढाई,आता बरोबर झाली पाहिजे... तुम्ही सत्तेचे वलय मिळवले आम्हाला पिक विमा मिळालाच पाहिजे... कवी - रविंद्र मधुकर घुमरे मो.९८६०३३७२८४ ©रविंद्र #अग्रीम द्या.. #विमा द्या..
pramod malakar
*।।विदा हो रहा साल,!!* 🙏🪷🌹💕💘🤷♂️ *जिन्दगी का एक और वर्ष कम हो चला,,* *कुछ पुरानी यादें पीछे क्षछोड़ चला..* *कुछ ख्वाहिशैं दिल में रह जाती हैं..* *कुछ बिन मांगे मिल जाती हैं ..* *कुछ छोड़ कर चले गये..* *कुछ नये जुड़ेंगे इस सफर मे ..* *कुछ मुझसे बहुत खफा हैं..* *कुछ मुझसे बहुत खुश हैं..* *कुछ मुझे मिल के भूल गये..* *कुछ मुझे आज भी याद करते हैं..* *कुछ शायद अनजान हैं..* *कुछ बहुत परेशान हैं..* *कुछ को मेरा इंतजार हैं ..* *कुछ का मुझे इंतजार है..* *कुछ सही है,,* *कुछ गलत भी है..* *कोई गलती तो माफ कीजिये और* *कुछ अच्छा लगे तो याद कीजिए.* """""""""""""""""""""""""""""""""" प्रमोद मालाकार *💕💕 Happy Last Day of the Year🌹💕💘😊🤷♂️🥰 🙏🙏* ©pramod malakar #विदा हो रहा साल
गोलु पाटिल मालोकार
##ती म्हणाली वेडा♡ आहेस तू. मी म्हणालो हो गं फक्त_तुझ्यासाठी.. हो फक्त तिच्यासाठी वेडा आहे...... हो तिच्या साठी वेडा आहे......
Krishna Kumar Sharma
मुझे किसी मौहब्बत नही शिवा तेरे. ।मुझे किसी की जरूरत नही शिवा तेरे तेरे विना भी क्या जीना
नागेंद्र किशोर सिंह
वो विदा हो गए , देखता मैं रहा। आँखें रोती रहीं ,दिल सिसकता रहा। जिस्म से प्राण जैसे निकलने लगे। अश्क बन ख्वाब मेरे बिखरने लगे। अब जिऊं किसलिए ,सोचता मैं रहा। वो विदा हो गए, देखता मैं रहा। ©नागेंद्र किशोर सिंह # वो विदा हो गए # गजल# मेरी कलम से #
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी सत्ताओ के चेहरो की परते कलमें ही पढ़ पाती है नेताओ के वायदों की चीर फाड़ कलमे ही कर पाती है जो सहते जुल्म सितम मौन होकर उनकी आवाज कलमे बन जाती है इतिहासो की गरिमा और न्याय कलमे ही जिंदा रख पाती है खून खराबा कर जंग भले जीती हो मगर कलमे ही हकीकत लिख पाती है भले कितनी काली राते हो नये सुबह की आश कलमे ही जगाती है कलमो के आगे अत्याचारी सरकारे भी विदा हो जाती प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #WritersSpecial अत्याचारी सरकारे भी विदा हो जाती है #WritersSpecial
Parasram Arora
बूढ़ापे के आँगन में ज़ो बचपन से पली हो वह् उम्र बिना पँख के उड़ जाए तो क्या हो इज़्ज़त से शुरू होकर ज़ो पैसे पर खत्म हो उस दौड़ में इंसान पिछड़ जाए तो क्या हो ©Parasram Arora क्या हो?
Parasram Arora
जीवन मे कोई मिलके बिछड़ जाए तो क्या हो? विश्वास का उद्यान अगर उजड़ जाये तो क्या हो? छोटी सी लहर से ही विचारों क़े भवर मे संदेह का तूफ़ान उमड़ जाए तो क्या हो? इज़्ज़त से शुरू होकर जो पैसे पे खत्म हो उस दौड़. मे इंसान पिछड़ जाए तो क्या हो? सड़को ने जो देखी हो और दीवारों ने सुनी हो वह बात हर कान मे पड़ जाए तो क्या हो? जो भूली हुई यादो क़े जख्मो मे दबा हो वह दर्द बिना बात क़े बढ़ जाय तो क्या हो? क्या हो? .......
एक पथिक ...✍️
कुछ ऐसा हो कि मेरे जहन में की तू ही ना हो तो... ना यादें हो... ना बातें हों.......? ना तलब हो.. ना तलबगार हो..? ना ख्वाब हो... ना ख्याल हो.. ? ना अक्स हो... ना कोई शक्श हो...? केसा हो अगर ऐसा हो.............? बस में ही में हूँ अब मेरे जेहन में तो केसा हो ..... मुझमें बस में ही रहूं...? ना गीतकार हो.. ना संगीतकार हो..? ना शायर हो..ना गजलकार हो..? सकूँ भी हो... नींद भी हो.....? दिलचप मेरा वही पुराना अंदाज भी हो..? क्या हो अगर ऐसा हो..? एक पथिक सुमन भट्ट...✍🏻 क्या हो अगर ऐसा हो..?