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Rampal Yadav
जानता हू नदी झरने जो मुझे थें पार करने कर चुका हूं हंस रहा ये देख कोई नही भेला।। मैं अकेला!! मैं अकेला ... मैं अकेला... मैं अकेला।।। देखता हूं आ रही मेरे दिवस की सांध्य बेला।। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला✍️✍️ ©Rampal Yadav मैं अकेला।।#हिंदी कविता।। #सूर्यकांत त्रिपाठी निराला।। #कविता #हिंदी
Hrishi Vishal 007
trilokibhogta
ASHOK KUMAR POET
मा की ममता मा का वर्णन करना यारो मुमकिन नहीं नामुमकिन है । सगरी धरा को बुक बनाऊ सगरे नीर को स्याही । जब लिखने बैठू ममता मा की तो बुक स्याही कम परजाय ' । दुनियाॅ में मा ही सबसे दानी है मेहनत पसीने की कमाई बच्चो पर करती निसंकोच खर्च । और थकी हारी होने पर भी अपनी न करके परवाह बच्चों को भूखा देख ना रह पाती है माता । सारी थकावट दूर हो जाती देख अपने भूखे बच्चों को । तुरन्त बनाती हैं खाना चाहे रात हो या दोपहरी । मा की लीला अद्भुत है जितना वर्णन करु उतना ही मोकू कम लागै । अशोक कुमार Poet धन्यवाद । मा की ममता छोटी कविता
Harendra Singh Lodhi