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Krishna Deo Prasad. ( Advocate ).
याद रखना अगर बड़ा बनना है , तो मर्यादा में रहो क्योंकि बड़ी कंपनी के पीछे limited (लिमिटेड) लिखा होता है.!! ©Krishna Deo Prasad. ( Advocate ). #लिमिटेड
ishu
अनलिमिटेड मोहब्बत उसको मेरा लिमिटेड प्यार ही पसंद है ... उसे नही पसंद मेरा अनलिमिटेड होके किसी और के हिस्से मैं भी जाना .... #लिमिटेड इश्क़
hitesh dave
ईग्रोन इंडियाटेक प्राइवेट लिमिटेड
Vijay Kumar उपनाम-"साखी"
जय हो वीर चेतक थारी शत्रु पे पड़ा तू बड़ा भारी दिखाई तूने ऐसी वीरता, धरी रह गई शत्रु तैयारी मानसिंह के हाथी को, दिखाई पैर टाप भारी प्रताप को जब घेरा, चेतक बन गया शेरा, शत्रु को दी मात भारी जय हो वीर चेतक थारी ऐसी दिखाई वफादारी, सदियों तक गूंजेगी चेतक तेरी किलकारी ऐसी छलाँग लगाई तूने हक्की-बक्की रह गई शत्रु की सेना सारी देख तेरा रण-कौशल, अकबर हुआ लाचारी जय हो वीर चेतक थारी तू है,प्रताप की तलवारी उसका ख़्वाब टूट गया प्रताप उससे छूट गया दिखाया पौरुष तूने, बड़ा ही प्रलयंकारी हल्दीघाटी में जिंदा है, आज भी तेरी चिंगारी जय हो वीर चेतक थारी तू है,स्वामीभक्त अवतारी जब तक ये मैदान रहेगा तब तक तेरा नाम रहेगा प्रताप के संतापहारी जय हो वीर चेतक थारी दिल से विजय जय हो चेतक थारी
(विद्रोही जी).!!
निर्बल बकरों से बाघ लड़े,भिड़ गये सिंह मृग-छौनों से घोड़े गिर पड़े गिरे हाथी,पैदल बिछ गये बिछौनों से हाथी से हाथी जूझ पड़े ,भिड़ गये सवार सवारों से घोड़ों पर घोड़े टूट पड़े,तलवार लड़ी तलवारों से हय-रूण्ड गिरे¸गज-मुण्ड गिरे,कट-कट अवनी पर शुण्ड गिरे लड़ते-लड़ते अरि झुण्ड गिरे,भू पर हय विकल बितुण्ड गिरे क्षण महाप्रलय की बिजली सी,तलवार हाथ की तड़प–तड़प हय–गज–रथ–पैदल भगा भगा,लेती थी बैरी वीर हड़प क्षण पेट फट गया घोड़े का,हो गया पतन कर कोड़े का भू पर सातंक सवार गिरा,क्षण पता न था हय–जोड़े का चिंग्घाड़ भगा भय से हाथी,लेकर अंकुश पिलवान गिरा झटका लग गया,फटी झालर,हौदा गिर गया¸निशान गिरा कोई नत–मुख बेजान गिरा,करवट कोई उत्तान गिरा रण–बीच अमित भीषणता से,लड़ते–लड़ते बलवान गिरा मेवाड़–केसरी देख रहा,केवल रण का न तमाशा था वह दौड़–दौड़ करता था रण,वह मान–रक्त का प्यासा था चढ़कर चेतक पर घूम–घूम,करता सेना–रखवाली था ले महा मृत्यु को साथ–साथ,मानो प्रत्यक्ष कपाली था रण–बीच चौकड़ी भर–भरकर,चेतक बन गया निराला था राणा प्रताप के घोड़े से,पड़ गया हवा को पाला था गिरता न कभी चेतक–तन पर,राणा प्रताप का कोड़ा था वह दोड़ रहा अरि–मस्तक पर,या आसमान पर घोड़ा था जो तनिक हवा से बाग हिली,लेकर सवार उड़ जाता था राणा की पुतली फिरी नहीं,तब तक चेतक मुड़ जाता था सेना–नायक राणा के भी,रण देख–देखकर चाह भरे मेवाड़–सिपाही लड़ते थे,दूने–तिगुने उत्साह भरे क्षण मार दिया कर कोड़े से,रण किया उतर कर घोड़े से। राणा रण–कौशल दिखा दिया,चढ़ गया उतर कर घोड़े से क्षण भीषण हलचल मचा–मचा,राणा–कर की तलवार बढ़ी था शोर रक्त पीने को यह,रण–चण्डी जीभ पसार बढ़ी वह हाथी–दल पर टूट पड़ा,मानो उस पर पवि छूट पड़ा कट गई वेग से भू ऐसा,शोणित का नाला फूट पड़ा ऐसा रण राणा करता था,पर उसको था संतोष नहीं क्षण–क्षण आगे बढ़ता था वह,पर कम होता था रोष नहीं कहता था लड़ता मान कहां,मैं कर लूं रक्त–स्नान कहां जिस पर तय विजय हमारी है,वह मुगलों का अभिमान कहां भाला कहता था मान कहां¸,घोड़ा कहता था मान कहां? राणा की लोहित आंखों से,रव निकल रहा था मान कहां ,,,श्याम नारायण पाण्डेय ©ब्राह्मणवंशी जीतू मिश्रा (विद्रोही जी) @हल्दीघाटी का युद्ध 'चेतक'