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Mangesh P Desai
हळूच चांदणे आले नभावरी पसरले । मनात हळूच माझ्या काव्य हे विस्फुरले ।। संधेला अलविदा करुनी धूरा घेतली हाती । ईवल्या ईवल्या चिमुकल्यांना माई अंगाई गीत गाती ।। रम्य ते आभाळ नटले असंख्य तारकांनी । जशी बाग ही नटते फुलपाखरांनी ।। चिडीचूप शांतता नि मीच जागा एकटा । निशेस सांगतो मी हृदयीची सुंदर कथा ।। कोणी घेती चहा नि कोणी घेती काॅफी । जागलो मी आज खूप वैद्यराज मागतो मी माफी ।। ©Mangesh P Desai #हळूच चांदणे आले...
the_unsung_teller
कुछ टूटे से लगते हो सच है क्या, पुर्जा पुर्जा शब्दों से जोड़कर कविता बना दूं क्या, कभी यूं ना डूब जाना इशक के गहरे समंदर में, उबरना मुश्किल है, जाहिल इश्क़ से ये किसी का नहीं, संभलना फिर बिखर गए गर राहों में, तो सुनो एक बात कहनी है.. समेट कर बारीक टुकड़ा अल्फाजों से तुम्हें कोई रचना बना दूं क्या.. @the_unsung_teller कविता बनोगे या रचना मेरी..
The writer
#OpenPoetry रूक जाने दो इस पल को जिसमें तुम और हम साथ हो, क्या पता कल यह वक्त हमारा हो या न हो| थाम लेने दो इन हाथों को जिसमें हमारे नाम की मेहंदी हो, क्या पता कल इसमें हमारा नाम हो या न हो| कभी तो आओ हमारें इस अकेलेपन के आशियानें मे, जो कभी कहा नही उसे समझ भी जाओं, ताकि तुम भी हमारे दिल की धड़कनों को महसुस कर पाओ, क्या पता कल इस दिल में यह धड़कने हो या न हो| #OpenPoetry कविता: "हो या न हो"
शून्य(ब्राह्मण)
नशा इंसान को मारता है या परिवार को ? किसको इल्जाम दोगे तंबाकू क्या शराब को? धीरे धीरे ये आपकी इच्छाओं को ये मारेगा जब छोड़ देगे सभी तब जा कर कहीं हारेगा! धुंआ का गुब्बारा रोज़ सीने में बनाते हो क्यों रोज़ रोज़ अपने आप को गलाते हो ? बीवी बच्चे और परिवार पर भी ध्यान दो दिन चरिया में ढालो ज़रा तुम इस ज्ञान को! चार दिन की ज़िंदगी को दो दिन में उड़ाते हो बीमारी बढ़ते पर क्यों इतना घबराते हो? आज मरो कल मरो एक ही तो बात है नशे का ना मजहब ना ही इसकी कोई जात है। जीवन के मुख्य लक्ष्य को तुम खोते जा रहे हो तलब की ललक में खुली आंखों से सोते जा रहे हो अभी कुछ भी नहीं हुआ चलो इसे अब छोड़ दो! अलविदा कह कर इसे ज़िंदगी से साथ जोड़ लो! #नशा #ज़िंदगी या #मौत #भावपूर्ण #प्रश्नवाचक_दृष्टि #कविता