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भूल को भूल से भूलने को भूले।। कटु जो शब्द है याद जो आते नही।। सत्य को सत्य से सत्यता को  जीते।। कर्तव्य बोध जो हुआ अहंकार को ताड़ने #Poetry #Pencil #kavishala #akib #hindinama #Jaipur_nojoto

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भूल को भूल से
भूलने को भूले।।
कटु जो शब्द है
याद जो आते नही।।
सत्य को सत्य से
सत्यता को  जीते।।
कर्तव्य बोध जो हुआ
अहंकार को ताड़ने

KHATOLA MUSIC

👉 मृत्यु से जीवन का अंत नहीं होता जैसे हम फटे-पुराने या सड़े-गले कपड़ों को छोड़ देते हैं और नए कपड़े धारण करते हैं, वैसे ही पुराने शरीरों को #sunrays

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👉 मृत्यु से जीवन का अंत नहीं होता


जैसे हम फटे-पुराने या सड़े-गले कपड़ों को छोड़ देते हैं और नए कपड़े धारण करते हैं, वैसे ही पुराने शरीरों को बदलते और नयों को धारण करते रहते हैं। जैसे कपड़ों के उलट फेर का शरीर पर कुछ प्रभाव नहीं पड़ता, वैसे ही शरीरों की उलट-पलट का आत्मा पर असर नहीं होता। जब कोई व्यक्ति मर जाता है तो भी वस्तुत: उसका नाश नहीं होता।

मृत्यु कोई ऐसी वस्तु नहीं, जिसके कारण हमें रोने या डरने की आवश्यकता पड़े। शरीर के लिए रोना वृथा है, क्योंकि वह निर्जीव पदार्थों का बना हुआ है, मरने के बाद भी वह ज्यों का त्यों पड़ा रहता है। कोई चाहे तो मसालों में लपेट कर मुद्द तों तक अपने पास रखे रह सकता है, पर सभी जानते हैं कि देह जड़ है। संबंध तो उस आत्मा से होता है जो शरीर छोड़ देने के बाद भी जीवित रहती है। फिर जो जीवित है, मौजूद है, उसके लिए रोने और शोक करने से क्या प्रयोजन?

दो जीवनों को जोड़ने वाली ग्रंथि को मृत्यु कहते हैं। वह एक वाहन है जिस पर चढ़कर आत्माएँ इधर से उधर, आती-जाती रहती हैं। जिन्हें हम प्यार करते हैं, वे मृत्यु द्वारा हमसे छीने नहीं जा सकते। वे अदृश्य बन जाते हैं, तो भी उनकी आत्मा में कोई अंतर नहीं आता। हम न दूसरों को मरा हुआ मानें, न अपनी मृत्यु से डरें, क्योंकि मरना एक विश्राम मात्र है, उसे अंत नहीं कहा जा सकता।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

📖 अखण्ड ज्योति-मार्च 1948 पृष्ठ 1   

 
http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1948/March/v1.1

©KHATOLA MUSIC 👉 मृत्यु से जीवन का अंत नहीं होता
जैसे हम फटे-पुराने या सड़े-गले कपड़ों को छोड़ देते हैं और नए कपड़े धारण करते हैं, वैसे ही पुराने शरीरों को
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