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ठहरिए! समाज ने आपको बुरा बनने से रोका है, अच्छा बनने से नहीं। Hightech Hindi मंथन
Gian Gumnaam
अकेले बैठ कर मंथन करना अपने किरदार पे तेरे अन्दर है उसका मंदिर और तू ढूंढ़ता फिरता है मजार पे ©Gian munkan wala मंथन
आरती राय
खुद को तराशने में टूट गये माँझी के हाथों पतवार छूट गये कभी अपनों के चेहरे पर मुस्कान नज़र नहीं आई। हौसलों के पंख टूटते चले गये। सबको इक दिन जाना है सबका नया ठिकाना है। कोशिशें बेकार हो रही क्यों हरपल बिखरने पर चुभन हो रही । काश कोई समझा दे बीती बातें भूला दें। मंथन
Parasram Arora
हर सुबह दाड़ी बनाते समय मै शेविंग क्रीम की झाग मे. लपेट लेता हूँ वें सारे झूठ. जो मैंने कल बोले थे. और मंथन भी कर लेता हूँ उन झूठो का. जो मूझे आज भी बोलने हैं और शायद कल भी ©Parasram Arora मंथन
matsyalekhika
सुबह की रोशनी के साथ रोज एक नया पन्ना खुदकी जिंदगी में जोड़ती हूं , जो कल मैने गलत किया उसका सबक अपने आज में जोड़ती हूं, सीखा तो शायद वक्त ही देता है । ©pooja पांचाल #आत्म मंथन
Laxmi Yadav
आज आराधना बहुत रोमांचित थी। उसकी वंदना दीदी बरसों बाद मुंबई आ रही है। उनका ऑपरेशन करवाना है पर इसी बहाने दोनों बहनें का मिलन तो होगा। मुंबई की होते हुए भी दीदी की शादी गाँव मे हुई थी। उस की दीदी रौब्दार, जिद्दी और सख़्त मिजाज की थी, पर दिल की भली थी। आराधना को थोडी फिक्र अपनी विजातीय बहु मानसी को लेकर थी। पर दीदी के लिए कमरा सजाने का आनंद उस पर हावी था। मानसी शहर की पढ़ी- लिखी समझदार नौकरी पेशा लड़की थी। इसीलिए रौनक ने उसे पसंद किया था। आखिर दीदी आई। उनका ऑपरेशन भी सफलता पूर्वक हुआ। बहु मानसी ने भी खूब सेवा की। रौनक को समय ना भी हो तो खुद वंदना दीदी का चेक उप करवाने ले जाती। सारी दवाएं समय समय पर देती, बिना भूले फल लेकर आती। आराधना भी खुश थी। वंदना दीदी के साथ बचपन व माइके की मधुर स्मृतियाँ परम आनंद देती थी। वंदना दीदी की दो बहूँए थी।बड़ी बहु सुमन ग्रैजुएट थी। उसे दो बेटी थी। पर दीदी उसे नीचा दिखाने का एक मौका नहीं छोड़ती ।छोटी बहू विमला की आगे पढ़ने की बहुत इच्छा थी, पर दीदी ने इजाजत नही दी। मजाल है दोनों के सर से पल्लू हट जाये,बहुत सख्ती रखती थी। पर ना जाने क्या मानसी की सेवा का मोह जादू चला । आराधना ने वंदना दीदी को मानसी से ये कहते सुना की तुम्हारे जैसा सूट मुझे अपनी बहुओं के लिए भी लेना है। फिर बोली छोटी बहु विमला को आगे पढ़ाई का फारम भरने को कह दिया है। वंदना दीदी रोज़ धार्मिक ग्रंथ पढ़ती थी। आज वो ' अमृत मंथन ' अध्याय पढ़ रही थी। आराधना ने हँस कर पूछा " इस अध्याय मे क्या पढ़ा? आपने "वंदना दीदी ने मुस्कुरा कर कहा " पुराने और नये विचारों का मंथन हुआ। उसमें से नये विचारों का अमृत प्राप्त हुआ। तुमने और तुम्हारे बहु मानसी ने मेरे पुरानी मानसिकता के विष को निकाल डाला। "आराधना इसका गूढ़ रहस्य समझ कर बस मुस्कुरा दी। ©Laxmi Yadav # अमृत मंथन
Tarakeshwar Dubey
मंथन ***** कवि कहते हो खुद को, कर्म चारण का क्यूं करते हो? मुजरे में पग बांध घुंघरू, लक्ष्मी बाई सा दंभ क्यूं भरते हो? झुठी गाथा गढ़ते हुए क्यूं? तनिक लाज नहीं आती, विद्वान हो कर भी कैसे? तुम्हें चाटुकारी है भाती। हूनर जो मिला रचने का, रचो कलम कर धारदार, होवे राष्ट्र में नव सृजन, कृतज्ञ हो जाए संसार। झूठी चाटुकारिता से तुम्हारे, भला किसी का नहीं होगा, बेचोगे पल में इमान जो, प्रतिफल में अपयश मिलेगा। क्षण में वाह करने वाले, बस क्षणिक ही होते हैं, बबूल का रोपण करने से, कांटे ही बस उगते हैं। सारदे की कृपा जब शीश, सज्जनता का करो प्रचार, होवे राष्ट्र में नव सृजन, कृतज्ञ हो जाए संसार। भाषाओं की भी अपनी कुछ, मर्यादाएं है, सीमाएं है, सागर नहीं होता अनंत, उसकी भी परिसीमाएं है। गहन चिंतन, सुघर विचार, संस्कार की परिभाषा है, सर्वत्र विराजे समभाव, धरणी की अभिलाषा है। सर्वोन्नति रहे केन्द्र बिंदु, मानवता का हो प्रसार, होवे राष्ट्र में नव सृजन, कृतज्ञ हो जाए संसार। इतिहास उसी के साथ रहा, जिसने जन की शक्ति पाई, खंडहरों में दबे पड़े हैं, अनगिनत बंदीजन की चतुराई। राष्ट्र जागरण की भाषा, निर्भीक हो कर जो बोलेगा, जन गण के मानस में वह, दीर्घ काल तक राज करेगा। लिया सब जिस समाज से, उसका कुछ करो उपकार, होवे राष्ट्र में नव सृजन, कृतज्ञ हो जाए संसार। ©Tarakeshwar Dubey मंथन #SunSet
श्रीमंत हेमंत मानकर
अक्षरं, शब्द, पेन, शाई, कागद, भावना.. सगळं सगळं इथलंच वापरून.. घ्या ; झालो मी.. साहित्यिक.. द्या मला पुरस्कार.. डोकं माझं कबूल पण.. ते सुद्धा भाडोत्री.. नश्वर, अशाश्वतच ना ??? विचार मंथन
आनन्द मानव
दिल करता चूम लूं तेरे कदमों को, ऐ मोहब्बत के दुश्मनों! बेशक तू चटपटा नहीं,पर दिल को बीमारी से तो बचाता है। *आनन्द मानव* मंथन - विष