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Gautam_Anand
ईंट का जवाब पत्थर से दे रहा हूँ इन दिनों खुद पे लानत है बेशर्मी से जी रहा हूँ इन दिनों स्वीकारोक्ति
Preeti Karn
थाह ले लेकर तुम्हें आगाह करता हूँ चाहता हूं और तेरी परवाह करता हूँ। तोलता हूं लफ्जों को फिर बात रखता हूँ सोचता हूं क्यों मैं तुमसे इतना डरता हूँ। बात बात पर सम्हलकर टूट जाता हूँ जिंदगी के फैसलों से मात खाता हूँ। ठन गई है खुद से अब समझा न पाता हूँ मनुहार कर मैं थक गया इतना बताता हूँ। मोह के धागों को मैं सुलझा न पाता हूँ प्रीत का अनुबंध है ठुकरा न पाता हूँ। अनन्य सा विश्वास है बढता ही जाता हूँ एक चिरंतन आस है झुठला न पाता हूँ। चाहता हूं पर किसी से न दिल की बात करता हूँ खुद से कहता हूं हमेशा खुद के पास रहता हूँ। प्रीति। #स्वीकारोक्ति #confessions #yqdidi#yqbaba #my200th milestone.
Runa Upadhyay
अदनासा-
स्वभाव की स्वीकारोक्ति मेरा जन्म चाहे जिस किसी भी धर्म, भाषा एवं जाति में हुआ हो मेरे आंतरिक स्वभाव में अन्य प्रत्येक बाहरी स्वभावों का स्वभाव मेरे आंतरिक स्वभाव में पूर्व निर्धारित ही विद्यमान है इसलिए मैं बाहर की अपनी प्रिय हर वस्तु या जीव के आकर्षण में निरंतर उसी दिशा में बढ़ रहा हूं यह मेरे स्वभाव को स्वीकार्य है यदि, पर, अगर, मगर, परंतु , किंतु क्या वास्तव में ऐसा कुछ भी हैं ? अपितु यह स्वीकार नही है ? तो इसे अस्वीकार कर देना यह आपका अपना प्रिय स्वभाव है। ©अदनासा- #हिंदी #स्वभाव #स्वीकारोक्ति #प्रिय #आंतरिक #आकर्षण #Instagram #Pinterest #Facebook #अदनासा
HINDI SAHITYA SAGAR
कविता : सर्द मन रात की नीरवता, कहीं दूर से आती हुई, दर्द-रंज मिश्रित, ध्वनि को सहज ही, सुन पा रही है, प्रतिपल परिवर्तित होती, उस ध्वनि को... ऐसा प्रतीत होता, जैसे कभी सुनी थी, कहीं किसी मोड़ पर, अब पहचानने की, लाख कोशिशों के बाद, एक असफ़लता ही, साबित हो रही है.. शायद दूर की, या बहुत दूर की, कई तरह के, चिन्तनों की, स्वीकारोक्ति थी, स्वीकारोक्ति? प्रश्नचिन्ह.... ठीक है, एक ठण्डी, काफ़ी, ठण्डी, आह... . . आज की रात, काफ़ी सर्द है, सर्द मन भी है! -शैलेन्द्र राजपूत ©HINDI SAHITYA SAGAR कविता : सर्द मन रात की नीरवता, कहीं दूर से आती हुई, दर्द-रंज मिश्रित, ध्वनि को सहज ही, सुन पा रही है, प्रतिपल परिवर्तित होती,
HINDI SAHITYA SAGAR
कविता : सर्द मन रात की नीरवता, कहीं दूर से आती हुई, दर्द-रंज मिश्रित, ध्वनि को सहज ही, सुन पा रही है, प्रतिपल परिवर्तित होती, उस ध्वनि को... ऐसा प्रतीत होता, जैसे कभी सुनी थी, कहीं किसी मोड़ पर, अब पहचानने की, लाख कोशिशों के बाद, एक असफ़लता ही, साबित हो रही है.. शायद दूर की, या बहुत दूर की, कई तरह के, चिन्तनों की, स्वीकारोक्ति थी, स्वीकारोक्ति? प्रश्नचिन्ह.... ठीक है, एक ठण्डी, काफ़ी, ठण्डी, आह... . . आज की रात, काफ़ी सर्द है, सर्द मन भी है! -शैलेन्द्र राजपूत ©HINDI SAHITYA SAGAR #सर्द_मन कविता : सर्द मन रात की नीरवता, कहीं दूर से आती हुई, दर्द-रंज मिश्रित, ध्वनि को सहज ही, सुन पा रही है,
Sarita Shreyasi
न कह पाने की उद्विग्नता भी देखी, स्वीकारोक्ति की किलकती खुशियाँ भी। की निःस्वार्थ प्रार्थना श्रद्धा-विश्वास से, तुम्हारे सपनों को साकार करने की। स्वार्थ निहित था निश्छल मन में, चाहती थी दूर से खुश देखना,तुम्हें, बिन बंधे,एक मुस्कान का रिश्ता था, सहज बाँध लिया तुम्हारी चाहतों ने। साथ-संबंध की ईच्छा को, दुआओं में शामिल कर लिया, परिश्रम और लगन से तुमने, दोनों ही हासिल कर लिया। न कह पाने की उद्विग्नता भी देखी, स्वीकारोक्ति की किलकती खुशियाँ भी। की निःस्वार्थ प्रार्थना श्रद्धा-विश्वास से, तुम्हारे सपनों को साकार करने
Preeti Karn
अनुभूति में जैसी उतरती हैं विशुद्ध अनछुई कल्पित वैसी कहां व्यक्त कर पाती हूं निर्जन बंजर बीहड़ बियाबान से सूदूर रेगिस्तान तक उदधि तडाग झील झरने मनोरम दृश्य से हृदय विदारक घटनाओं का साक्षी मन साक्ष्य नहीं रख पाता। सहेज कर रखी हैं स्मृतियों ने तितलियों के चटख रंगों की नैसर्गिकता का सम्मोहन महुआ की भीनी मादक मिठास की खुशबू नासिका रंध्रों से होकर मस्तिष्क तक व्याप्त उद्वेलित करती तरंगें.... आम के बौर से गंधाते हवाओं की ठिठोलियां और अमिया की महक का मादक स्पर्श.... मेरे शब्दकोष की अक्षमता सहज स्वीकार्य है मुझे क्योंकि मैं नहीं उतार पाती भावों को यथावत.....!! प्रीति #अनकही #स्वीकारोक्ति #yqdidi #yqhindi #yqhindiquotes #wallpaper : my click अनुभूति में जैसी उतरती हैं विशुद्ध अनछुई कल्पित वैसी कहां व्यक्त
Sunita D Prasad
#तुम्हारी स्वीकारोक्ति.... बता सको, तो बस इतना बताना कि क्या तुम परिवर्तन के नियम के विरुद्ध खड़े रह पाओगे? --सुनीता डी प्रसाद💐💐 #तुम्हारी स्वीकारोक्ति.... हमें उस वस्तु की कमी उस समय अधिक खली जब उसकी आवश्यकता पड़ी। तब हमने यह जाना