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Ashwani Dixit
साहेब आज बोहरा बने, पहुंचें हैं इंदौर। जनमानस तड़पे बहुत, बदल गया है दौर।। बदल गया है दौर, रामलला थे कौन? मंदिर की चर्चा नहीं, बैठे साधे मौन।। साहेब भूले साहिबी, गाज़ी भये हुजूर। नारियल थर-थर कंपै, चौड़ा चले खजूर।। "भक्तमाल" श्रृंखला की अगली कड़ी #dixitg #politcs #MP
Anil Siwach
Anil Siwach
shubham upadhyay
महाकाल के बेटे हैं इसलिए चुप बैठे हैं जो हमसे ऐंठे हैं श्मशान में लेटे हैं 8081939798 contact me #mahakal#महादेव भक्ता जय हो Vighnesh Upadhyay
Sarita Prashant Gokhale
*घेते परिक्षा सीतामाई मारुतीची* *भक्तास ना दिसले रामरूप त्यात,* *जरी रामभक्तीचे स्थान चरणाला* *तरी रामसीता वसलेले श्रेष्ठ हृदयात...* ©Smita Raju Dhonsale *घेते परिक्षा सीतामाई मारुतीची* *भक्तास ना दिसले रामरूप त्यात,* *जरी रामभक्तीचे स्थान चरणाला* *तरी रामसीता वसलेले श्रेष्ठ हृदयात...* *©️स्म
Poetry with Avdhesh Kanojia
धन त्रयोदशी पर्व यह पावन परम पवित्र। घर घर सबके सज रहे यक्षराज के चित्र।। माँ लक्ष्मी की कृपा हो हर्षित हों सब लोग। धन वैभव समृद्धि से सबका हो संयोग।। सभी हृदय प्रसन्न हैं पावन मन प्रत्येक। आप सभी को देता हूँ शुभकामना अनेक।। #धनतेरस #poetry #poem #life #poet #writer #कविता शुभ धन त्रयोदशी धन त्रयोदशी पर्व यह पावन परम पवित्र। घर घर सबके सज रहे यक्षराज के चित्र
_suruchi_
🙏🙏-ओम नमः शिवाय-🙏🙏 भक्ता वरती संकट येता गुरु मध्यस्ती झाला अनन्य भावे शरण येता तू तारिसी भक्ताला पायां वरती तुमच्या आता वाहते जीव सारा
yogesh atmaram ambawale
गजानना श्री गणराया यावे लवकर विघ्न हाराया. भक्ता मनी हर्ष भराया, कोरोना संकट दूर कराया. गजानना श्री गणराया यावे लवकर विघ्न हाराया. OPEN FOR COLLAB ✨ #ATganeshabg1 • A Challenge by Aesthetic Thoughts! ♥️ Adorn this bg with your soulful words.✨ BG credits: Harshita Sing
PARBHASH KMUAR
देवी दुर्गा ने अपने भक्तों के कल्याण के लिए पृथ्वी पर नौ अवतार लिए थे, जिन्हें नवदुर्गा भी कहा जाता है। इनमें सबसे पहला अवतार, देवी शैलपुत्री का है। देवी दुर्गा के प्रथम स्वरूप ‘शैलपुत्री’ का अर्थ है, पर्वत की पुत्री या पहाड़ों की बेटी। इन नौ अवतारों में से देवी दुर्गा के इस अवतार की कहानी, माता सती के आत्मदाह से जुड़ी हुई है। तो आइए जानते हैं, माँ शैलपुत्री की महिमा की पुण्य कथा- देवी दुर्गा के इस अवतार की पूजा, नवरात्रि के पहले दिन बड़े धूमधाम से की जाती है। देवी दुर्गा के प्रथम स्वरप, शैलपुत्री को शांति और सौभाग्य की देवी माना जाता है। देवी शैलपुत्री का स्वरूप भी अत्यंत मनोरम है। देवी के बाएं हाथ में कमल का पुष्प सुसज्जित है, तो वहीं उन्होंने अपने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण किया है। देवी शैलपुत्री का वाहन वृषभ यानी बैल है, इसलिए उन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। उनकी महिमा कथा का उल्लेख नवदुर्गा पुराण में भी मिलता है। पुराणों में निहित कथा के अनुसार, प्रजापति दक्ष अपने दामाद भगवान शिव के प्रति अत्यंत क्रोध और ईर्ष्या का भाव रखते थे। एक बार, उन्होंने कनखल में एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया और सभी देवताओं को उसमें शामिल होने का निमंत्रण भेजा, लेकिन दक्षराज ने अपनी पुत्री सती और उनके पति शिव को इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया। इस यज्ञ के बारे में जब देवी सती को पता चला, तो वह वहां पहुंची और दक्ष से शिव को निमंत्रण न भेजने का कारण पूछा। इसपर प्रजापति दक्ष ने सती का घोर अपमान किया और महादेव के बारे में कई अनुचित शब्द भी कहे। देवी सती अपने पति का ऐसा अपमान सह नहीं पाईं और उन्होंने, उसी यज्ञ की अग्नि में अपनी देह त्याग दी। देवी सती के इस तरह आत्मदाह करने के बाद, भगवान शिव उन्माद से हो गए और कैलाश भी श्रीहीन हो गया। सभी देवताओं को महादेव की ऐसी हालत देखकर अत्यंत चिंता होने लगी, लेकिन दैत्यों को महादेव की दशा पर बहुत आनंद आ रहा था और उन्होंने मौके का फायदा उठाते हुए, स्वर्गलोक में उपद्रव मचाना शुरू कर दिया था। तब सभी देवताओं ने त्रस्त होकर, आदिशक्ति का ध्यान किया और उनसे देवगणों की रक्षा करने की प्रार्थना की। देवी आदिशक्ति ने तब सभी देवताओं को यह कहते हुए आश्वस्त किया, कि वह बहुत जल्द राजा हिमवान के घर कन्या रूप में जन्म लेंगी। दूसरी तरफ़, पर्वतराज हिमालय और उनकी पत्नी मैनावती की कोई भी संतान नहीं थी, इसलिए उन दोनों ने भी आदिशक्ति की आराधना करते हुए, उनसे संतान प्राप्ति का वर मांगा। पर्वतराज और उनकी पत्नी की तपस्या से प्रसन्न होकर, आदिशक्ति ने उन्हें यह आशीर्वाद दिया, कि वह स्वयं उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लेंगी। कालांतर में जब देवी ने हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया, तो पर्वत की पुत्री होने के कारण उनका नाम पार्वती, शैलपुत्री और गिरिजा पड़ा। बचपन से ही देवी शैलपुत्री, महादेव को ही अपना सर्वस्व मानती थीं और देवर्षि नारद के कहने पर वह शिव को पाने की तपस्या करने के लिए, जंगल में चली गईं थी। उस वक्त, कोई भी देवी शैलपुत्री को उनकी तपस्या से विचलित नहीं कर पा रहा था। तब स्वयं महादेव ने उनके प्रेम की परीक्षा लेने के लिए, सप्तऋषियों को शैलपुत्री के पास भेजा। सप्तऋषियों ने वहाँ जाकर, महादेव के बारे में बहुत बुरा भला कहा, कि वे तो अघोरी हैं, जटाधारी हैं इत्यादि, लेकिन शैलपुत्री पर इन बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और वह अपनी तपस्या में लीन रहीं। उनकी ऐसी अडिग भक्ति और प्रेम को देख सप्तऋषि बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कैलाश आकर सारा वृत्तांत महादेव को सुनाया। इसके बाद, महादेव ने देवी को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करने का निश्चय कर लिया और सप्तऋषियों ने उनके विवाह का शुभ लग्न तय कर दिया। हिंदू धर्म में नवरात्रि के त्योहार का काफ़ी महत्व होता है और इसे मुख्य रूप से साल में दो बार मनाया जाता है, पहला चैत्र के महीने में और दूसरा आश्विन के महीने में। देवी शैलपुत्री की पूजा के दौरान दुर्गा स्तोत्र, सप्तशती और चालीसा इत्यादि का पाठ भी किया जाता है। मां शैलपुत्री का पूजन मंत्र - “वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥” अर्थात, सभी भक्तों को मनोवांछित वर देने वाली, वृषारूढ़ा देवी शैलपुत्री का मैं वंदन करता हूँ। ऐसी मान्यता है, कि देवी शैलपुत्री को सफेद वस्तुएं अत्यंत प्रिय हैं, इसलिए उनकी पूजा में सफेद फूलों और मिठाइयों का भोग लगाया जाता है। मान्यता तो यह भी है, कि काशी में देवी शैलपुत्री का एक प्राचीन मंदिर स्थित है, जहाँ माता के दर्शन मात्र ©parbhashrajbcnegmailcomm देवी दुर्गा ने अपने भक्तों के कल्याण के लिए पृथ्वी पर नौ अवतार लिए थे, जिन्हें नवदुर्गा भी कहा जाता है। इनमें सबसे पहला अवतार, देवी शैलपुत्र