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New मृत्युभोज Quotes, Status, Photo, Video

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Archana pandey

मृत्युभोज क्या परिवर्तन आवश्यक नहीं?? #समाज

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Kundan Singhania

मृत्युभोज १ स्टोरी समाज और संस्कृति

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Paramjeet kaur Mehra

#समाज_सुधारक_संत_रामपालजी #SantRampalJi_AvataranDiwasसंत रामपाल जी महाराज जी अपने सतज्ञान से दहेज, मृत्युभोज, भ्रूण हत्या, जाति-पाति, छुआछ #News

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Divyanshu Pathak

सुप्रभातम साथियो....🙏😊🙏🍵🍵 वैश्वीकरण के इस दौर की दौड़ में हम शामिल तो हुए लेकिन अभी तक दौड़ना शुरू नहीं किया है। जहाँ दुनिया अपनी पूरी ताक़त से #yqbaba #yqdidi #yqhindi #पाठकपुराण

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प्रकृति और परमात्मा की हर एक कृति स्त्री, पुरुष, पशु, वनस्पति, नाग, सागर, पर्वत, कंकर, नदी, की उपासना करने वाले लोगों में जब हिंसा,घरेलू हिंसा, उत्पीड़न, शोषण, बलात्कार, दहेज़ हत्या, लूट, भ्रष्टाचार जैसी विसंगतियों को देखता हूँ तो बस यही सोच कर रह जाता हूँ कि--- 

शिक्षा के नाम पर रटाए गए अध्याय विरलों को छोड़ कर अधिकतर ने पढ़ाई लिखाई को पैसा कमाने या पेट भरने तक सीमित रखा। भूँख बढ़ी और भ्रष्टाचार पनपने लगा। सुप्रभातम साथियो....🙏😊🙏🍵🍵
वैश्वीकरण के इस दौर की दौड़ में हम शामिल तो हुए लेकिन अभी तक दौड़ना शुरू नहीं किया है।
जहाँ दुनिया अपनी पूरी ताक़त से

shamawritesBebaak_शमीम अख्तर

#SAD शिर्क किया न कभी रब्बे जुलजलाल से,इसलिए *पशेमा ना हुई महशर ए अंजाम से//१* लज्जित मैं यक़ीं*मुनाफिको पर कैसे करूं,जो करे वादा खिलाफी और #Live #nojotohindi #lifr #shamawritesBebaak

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Anant Jain

*👂 कान की आत्मकथा👂* *एक बार आवश्य पढ़े... मन में गुदगुदी होने लगेगी...😊* *मैं कान हूँ........👂* *हम दो हैं...*👂👂 *दोनों जुड़वां भाई...*

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Read in Captions *👂 कान की आत्मकथा👂* 

 *एक बार आवश्य पढ़े... मन में गुदगुदी होने लगेगी...😊* 

*मैं कान हूँ........👂*
*हम दो हैं...*👂👂 
*दोनों जुड़वां भाई...*

Ritik Verma the Swan

👂🏻 👂🏻 👂🏻 👂🏻 👂🏻 👂🏻 *...कान की व्यथा...* पढें और आनंद लें.... मैं हूँ कान... हम दो हैं... जुड़वां भाई... लेकिन हमारी किस्मत ही ऐसी ह #Comedy #ritikvermatheswan #RVTS #AAP_KA_YAARAA_RITIK_VERMA_THE_SWAN_PYARAA #ShiningInDark

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👂🏻  👂🏻  👂🏻  👂🏻  👂🏻  👂🏻
     *...कान की व्यथा...*
पढें और आनंद लें....

मैं हूँ कान... हम दो हैं... जुड़वां भाई...
लेकिन हमारी किस्मत ही ऐसी है
कि आज तक हमने अपने दूसरे 
भाई को देखा तक नहीं 😪...
पता नहीं.. कौन से श्राप के कारण
हमें विपरित दिशा में चिपका कर
भेजा गया है 😠...
दु:ख सिर्फ इतना ही नहीं है... 
हमें जिम्मेदारी सिर्फ सुनने की मिली है..
गालियाँ हों या तालियाँ..,
अच्छा हो या बुरा..,
सब हम ही सुनते हैं...

धीरे धीरे हमें *खूंटी* समझा जाने
लगा...
चश्मे का बोझ डाला गया,
फ्रेम की डण्डी को हम पर फँसाया
गया...
ये दर्द सहा हमने...
क्यों भाई..???
*चश्मे का मामला आंखो का है*
*तो हमें बीच में घसीटने का* 
*मतलब क्या है...???*
हम बोलते नहीं तो क्या हुआ, 
सुनते तो हैं ना...
हर जगह बोलने वाले ही क्यों 
आगे रहते है....???

बचपन में पढ़ाई में किसी का दिमाग
काम न करे तो
*मास्टर जी हमें ही मरोड़ते हैं 😡...* 

जवान हुए तो
आदमी,औरतें सबने सुन्दर सुन्दर लौंग,
बालियाँ, झुमके आदि बनवाकर 
हम पर ही लटकाये...!!!
 *छेदन हमारा हुआ,*
*और तारीफ चेहरे की ...!*

और तो और...
श्रृंगार देखो... आँखों के लिए काजल...
मुँह के लिए क्रीमें...
होठों के लिए लिपस्टिक...
हमने आज तक कुछ माँगा हो तो
बताओ...
कभी किसी कवि ने, शायर ने 
कान की कोई तारीफ की हो तो बताओ...
इनकी नजर में आँखे, होंठ, गाल,
ये ही सब कुछ है...
*हम तो जैसे किसी मृत्युभोज की*
*बची खुची दो पूड़ियाँ हैं..,* 
जिसे उठाकर चेहरे के साइड में 
चिपका दिया बस...

और तो और,
कई बार *बालों के चक्कर में* 
*हम पर भी कट लगते हैं* ... 
हमें डिटाॅल लगाकर पुचकार दिया
जाता है...

बातें बहुत सी हैं, किससे कहें...???
कहते है दर्द बाँटने से मन हल्का 
हो जाता है...
आँख से कहूँ तो वे आँसू टपकाती
हैं...नाक से कहूँ तो वो बहाता है...
मुँह से कहूँ तो वो हाय हाय करके
रोता है...

और बताऊँ...
*पण्डित जी का जनेऊ,* 
*टेलर मास्टर की पेंसिल,* 
*मिस्त्री की बची हुई गुटखे की पुड़िया*
सब हम ही सम्भालते हैं...

और आजकल ये नया नया *मास्क*
का झंझट भी हम ही झेल रहे हैं...
कान नहीं जैसे पक्की खूँटियाँ हैं हम...

और भी कुछ टाँगना, लटकाना हो
तो ले आओ भाई...
तैयार हैं हम दोनों भाई...!¡!

😏😏 👂🏻  👂🏻  👂🏻  👂🏻  👂🏻  👂🏻
     *...कान की व्यथा...*
पढें और आनंद लें....

मैं हूँ कान... हम दो हैं... जुड़वां भाई...
लेकिन हमारी किस्मत ही ऐसी ह

आलोक अग्रहरि

आलोक जब कोई अपना, अपना-सा नहीं रहता,
तब रोती है आंख,मुस्कान पर अधिकार नहीं रहता।

चला जाता है जब कोई अपना कि बुलाने पर नहीं आता,
तब आलोक अपनों के गमों का कोई पारावार नहीं रहता।

सुनाते हैं सभी अपने-अपने इष्ट को तमाम कड़वी बातें,
आलोक फिर भी कहां कोई अपनों से पुनः मिल पाता है?

नियति का ये कैसा निष्ठुर चाबुक हर किसी पर चलता है?
रोता,तड़पता और पुनः जीवन जीने को उद्धत हो जाता है।

जीवन और मृत्यु पर नहीं किसी का कोई अधिकार किन्तु,
क्या मृत्युभोज की अनिवार्यता मृत्यु की ही तरह है नियत?

©आलोक अग्रहरि #मृत्यूभोज

Parasram Arora

मृत्युलोक........

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यमराज  तो  आज  भी  आते  हैँ 
पर नचिकेता  को कहाँ पाते हैँ 
क्या कोई  है ऐसा इस जगत मे  जो 
मृत्यु मे उत्सुकता  दिखता हो 
क्या है  मृत्यु क़े  उस पार ये  जानना  चाहता हो?  
खोज का  ये गंभीर  सिलसिला   रुका  हुआ है 
हर  साधक   मरने से पहले मरा हुआ है 
सुना है यमलोक का  द्वार   स्वचालित है.
हर नए  मृतक  क़े लिए  ये  स्वतः  ही  खुल जाता है 
और  स्वतः. बंद  भी  हो  जाता है मृत्युलोक........

अज्ञात कवि

मैं अपनी जिंदगी सवाँरना नहीं
बिखेरना चाहता हूं....
हाँ मैं मृत्यु लोक तक पहुंचना चाहता हूं....🍁🍁 #मृत्युलोक
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