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Shankar Kamble
*रिते राहिले हात अजूनी* *ओंजळ काही भरली नाही* *बंद ओठांआड रुतली* *कळ,वेदना बरेच काही* *सांगूनी का कुणांस कळते?* *जरी पांघरे शुभ्र कवडसे* *सावलीत पोळले उन्हाला* *किती सोसले नको खुलासे* *ज्वार सरता लाट एकटी* *दूर किनारी हरवून गेली* *जखमां देई फुंकर आता* *भास कोरडा अन् कडं ओली* *सांज मिटल्या डोळ्याने मग* *स्वप्न पाहते तरुतळी* *भान येता हूरहूर दाटे* *तरंग उमटे शांत जळी* *रुदन करते मूक मनाने* *पीळ पडता काळजाला* *थांबले मी तिथेच अजूनी* *काळ मात्र पुढे पातला* ©Shankar Kamble #रिते #रिकामे #तू #ती #एकटी #सोबत #भासतुझा #सखे #प्रिये
Raja khan
दिमाग में थोड़ी खयालों की लगाम रहने दो। दिल को अभी मोहब्बत का गुलाम रहने दो । एक तेरे मिलने के लिए वक्त से जंग करता हूं । तमन्ना है कि बाहों में एक और शाम रहने दो । जरूरत नहीं मुझे कुछ साज ओ सामां की राजा ? मत करो यह सब इंतजाम रहने दो । सीने से लगा लो बस सच्ची मोहब्बत में सनम । कुछ और नहीं बस चाहत का यह निजाम रहने दो । - राजा खान निजामे मोहब्बत
Sushil Patial
रिक्शे वाला रिकशेवाला , सीधा-सादा भोला - भाला मन से सुन्दर, तन से काला हाथ में हैंडल पाँव में पैंडल माथे पे पसीना सच पुछो तो है यही जीना !! कडी महनत ये करता है तोडे न कभी किसी का ताला धन्य है वो मैय्या, भैया जन्मा जिस ने ये रिक्शेवाला !! ©Sushil Patial रिक्शे वाला
Lokesh kumar
धूप बहुत ज्यादा थी,तो सोचा रिक्शा कर लूँ। रिक्शे वाले भईया लाल किला जाना है,चलोगे क्या? हाँ बाबू जी, बैठो। बाद में खिटपिट न हो इसलिए पहले ही पूँछ लिया कि कितना लोगे?। बस 40 रुपये बाबू जी। रुपये कम करने को कहता इससे पहले ही मेरी नज़र उसके घाव वाले पैर पर पड़ी। अरे भईया पैर में तो घाव है तुम्हारे तो रिक्शा कैसे चलाओगे? रिक्शे वाले कि बात सुन में सोच में पड़ गया। उसने कहा कि बाबू जी रिक्शा पैर से नहीं पेट से चलता है। # दिल_से_ज़ुबाँ_तक -लोकेश रिक्शे वाला
Rajesh Raana
बड़ी तलब थी उसे आसमान पे घर बनाने कि , सो मैंने आसमान पे ले जाकर उसे छोड़ दिया । अब मेरे ज़मी पे लौटने से पहले वो ज़मी पर पड़ा कराह रहा था। आसमान के ठिकाने
Marutishankar Udasi
कोई हमे तरकिब बता दे ऐ जहां वाले दिल मे वह बेरहम है बसी कैसे उदासी उसे निकाले ©Marutishankar Udasi कैसे निकाले #adventure
Preeti Karn
अजनबी था शहर कल तक रास्ते भी गुमशुदा आसमां अपना सा था बस चांद बेगाना लगा धूप थी वैसी ही कच्ची दोपहर अलसाई सी शाम के साये थे धुंधले रात कुछ घबराई सी रात की आगोश में वीरानियों का शोर था सब तो थे अपने ही बस खुद का न कोई ठौर था.... प्रीति #बदले ठिकाने #yqdidi