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Abhishek Jain

 स्वाध्याय

स्वाध्याय #nojotophoto

5 Love

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YumRaaj ( MB जटाधारी )

**यदि कश्चित् कथमपि अन्यस्य विषये अत्यन्तं उत्साहितः, प्रसन्नः, क्रुद्धः, दुःखितः वा भवति ।  अतः तस्य वा केनचित् कारणेन तस्मिन् व्यक्तिना क्रुद्धः, यदि च सुखी तदा केनचित् प्रकारेण वा, तदेव तस्य सुखस्य कारणं, यदि सः भावविक्षिप्तः अस्ति तर्हि सः अपि क्रुद्धः भवति, यदि च सः is sad then it is due to कारणं तस्य व्यक्तिस्य प्रति अत्यन्तं आसक्तिः।  तथा च आसक्तिः आसक्तिः वा कस्यचित् व्यक्तिस्य दुःखस्य मूलकारणं भवति!**

©YumRaaj YumPuri Wala
  #Dhund #स्वाध्याय
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HP

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता
जीव की शारीरिक स्थिति पर विचार करें तो प्रत्यक्षतः यह देखने में आता है कि दो शक्तियाँ अवस्थित हैं। प्रथम पञ्चधा प्रकृति—जिससे हाथ, पाँव, पेट, मुँह, आँख, कान, दाँत आदि शरीर का स्थूल कलेवर बनकर तैयार होता है। इस निर्जीव तत्व की शक्ति और अस्तित्व का भी अपना विशिष्ट विधान है जो भौतिक विज्ञान के रूप में आज सर्वत्र विद्यमान है। जड़ की परमाणविक शक्ति ने ही आज संसार में तहलका मचा रखा है जबकि उसके सर्गाणुओं, कर्षाणुओं, केन्द्रपिण्ड (न्यूक्लिअस) आदि की खोज अभी भी बाकी है। यह सम्पूर्ण शक्ति अपने आप में कितनी प्रबल होगी इसकी कल्पना करना भी कठिन है। द्वितीय—शरीर में सर्वथा स्वतन्त्र चेतन शक्ति , भी कार्य कर रही है जो प्राकृतिक तत्वों की अपेक्षा अधिक शक्तिमान मानी गई है। यह चेतन तत्व संचालक है, इच्छा कर सकता है, योजनायें बना सकता है, अनुसन्धान कर सकता है इसलिये उसका महत्व और भी बढ़-चढ़कर है। हिन्दू ग्रन्थों में इस सम्बन्ध में जो गहन शोधों के विवरण हैं वे चेतन शक्ति की आश्चर्यजनक शक्ति प्रकट करते हैं। इतना तो सभी देखते हैं कि संसार में जो व्यापक क्रियाशीलता फैली हुई है वह इस चेतना का ही खेल है। इसके न रहने पर बहुमूल्य, बहु शक्ति -सम्पन्न और सुन्दर शरीर भी किसी काम का नहीं रह जाता। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

10 Love

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HP

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता
जीवधारियों के शरीर में व्याप्त इस चेतना का ही नाम आत्मा है। सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, ज्ञान तथा प्रयत्न उसके धर्म और गुण हैं। न्याय और वैशेषिक दर्शनों में आत्मा के रहस्यों पर विशद प्रकाश डाला गया है और उसे परमात्मा का अंश बताया गया है। यह आत्मा ही जब सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष आदि विकारों का त्याग कर देती है तो वह परमात्म-भाव में परिणित हो जाता है।

आज भौतिक विचारधारा के लोग इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं होते। उनकी दृष्टि में शरीर और आत्मा में कोई भेद नहीं है। इतना तो कोई साधारण बुद्धि का व्यक्ति भी आसानी से सोच सकता है कि जब उसके हृदय में ऐसे प्रश्न उठते रहते हैं—’मैं कौन हूँ’, ‘मैं कहाँ से आया हूँ’, ‘मेरा स्वरूप क्या है’, ‘मेरे सही शरीर-धारण का उद्देश्य क्या है’ आदि। ‘मैं यह खाऊँगा’, ‘मुझे यह करना चाहिए, ‘मुझे धन मिले’—ऐसी अनेक इच्छायें प्रतिक्षण उठती रहती हैं। यदि आत्मा का प्रथम अस्तित्व न होता तो मृत्यु हो जाने के बाद भी वह ऐसी स्वानुभूतियाँ करता और उन्हें व्यक्त करता। मुख से किसी कारणवश बोल न पाता तो हाथ से इशारा करता, आँखें पलक मारती, भूख लगती, पेशाब होती। पर ऐसा कभी होता नहीं देखा गया। मृत्यु होने के बाद जीवित अवस्था की सी चेष्टायें आज तक किसी ने नहीं कीं, आत्मा और शरीर दो विलग वस्तुयें—दो विलग तत्व होने का यही सबसे बड़ा प्रमाण है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

8 Love

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HP

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता
जीवधारियों के शरीर में व्याप्त इस चेतना का ही नाम आत्मा है। सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, ज्ञान तथा प्रयत्न उसके धर्म और गुण हैं। न्याय और वैशेषिक दर्शनों में आत्मा के रहस्यों पर विशद प्रकाश डाला गया है और उसे परमात्मा का अंश बताया गया है। यह आत्मा ही जब सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष आदि विकारों का त्याग कर देती है तो वह परमात्म-भाव में परिणित हो जाता है।

आज भौतिक विचारधारा के लोग इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं होते। उनकी दृष्टि में शरीर और आत्मा में कोई भेद नहीं है। इतना तो कोई साधारण बुद्धि का व्यक्ति भी आसानी से सोच सकता है कि जब उसके हृदय में ऐसे प्रश्न उठते रहते हैं—’मैं कौन हूँ’, ‘मैं कहाँ से आया हूँ’, ‘मेरा स्वरूप क्या है’, ‘मेरे सही शरीर-धारण का उद्देश्य क्या है’ आदि। ‘मैं यह खाऊँगा’, ‘मुझे यह करना चाहिए, ‘मुझे धन मिले’—ऐसी अनेक इच्छायें प्रतिक्षण उठती रहती हैं। यदि आत्मा का प्रथम अस्तित्व न होता तो मृत्यु हो जाने के बाद भी वह ऐसी स्वानुभूतियाँ करता और उन्हें व्यक्त करता। मुख से किसी कारणवश बोल न पाता तो हाथ से इशारा करता, आँखें पलक मारती, भूख लगती, पेशाब होती। पर ऐसा कभी होता नहीं देखा गया। मृत्यु होने के बाद जीवित अवस्था की सी चेष्टायें आज तक किसी ने नहीं कीं, आत्मा और शरीर दो विलग वस्तुयें—दो विलग तत्व होने का यही सबसे बड़ा प्रमाण है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

8 Love

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HP

जीव की शारीरिक स्थिति पर विचार करें तो प्रत्यक्षतः यह देखने में आता है कि दो शक्तियाँ अवस्थित हैं। प्रथम पञ्चधा प्रकृति—जिससे हाथ, पाँव, पेट, मुँह, आँख, कान, दाँत आदि शरीर का स्थूल कलेवर बनकर तैयार होता है। इस निर्जीव तत्व की शक्ति और अस्तित्व का भी अपना विशिष्ट विधान है जो भौतिक विज्ञान के रूप में आज सर्वत्र विद्यमान है। जड़ की परमाणविक शक्ति ने ही आज संसार में तहलका मचा रखा है जबकि उसके सर्गाणुओं, कर्षाणुओं, केन्द्रपिण्ड (न्यूक्लिअस) आदि की खोज अभी भी बाकी है। यह सम्पूर्ण शक्ति अपने आप में कितनी प्रबल होगी इसकी कल्पना करना भी कठिन है। द्वितीय—शरीर में सर्वथा स्वतन्त्र चेतन शक्ति , भी कार्य कर रही है जो प्राकृतिक तत्वों की अपेक्षा अधिक शक्तिमान मानी गई है। यह चेतन तत्व संचालक है, इच्छा कर सकता है, योजनायें बना सकता है, अनुसन्धान कर सकता है इसलिये उसका महत्व और भी बढ़-चढ़कर है। हिन्दू ग्रन्थों में इस सम्बन्ध में जो गहन शोधों के विवरण हैं वे चेतन शक्ति की आश्चर्यजनक शक्ति प्रकट करते हैं। इतना तो सभी देखते हैं कि संसार में जो व्यापक क्रियाशीलता फैली हुई है वह इस चेतना का ही खेल है। इसके न रहने पर बहुमूल्य, बहु शक्ति -सम्पन्न और सुन्दर शरीर भी किसी काम का नहीं रह जाता। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

7 Love

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HP

आज भौतिक विचारधारा के लोग इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं होते। उनकी दृष्टि में शरीर और आत्मा में कोई भेद नहीं है। इतना तो कोई साधारण बुद्धि का व्यक्ति भी आसानी से सोच सकता है कि जब उसके हृदय में ऐसे प्रश्न उठते रहते हैं—’मैं कौन हूँ’, ‘मैं कहाँ से आया हूँ’, ‘मेरा स्वरूप क्या है’, ‘मेरे सही शरीर-धारण का उद्देश्य क्या है’ आदि। ‘मैं यह खाऊँगा’, ‘मुझे यह करना चाहिए, ‘मुझे धन मिले’—ऐसी अनेक इच्छायें प्रतिक्षण उठती रहती हैं। यदि आत्मा का प्रथम अस्तित्व न होता तो मृत्यु हो जाने के बाद भी वह ऐसी स्वानुभूतियाँ करता और उन्हें व्यक्त करता। मुख से किसी कारणवश बोल न पाता तो हाथ से इशारा करता, आँखें पलक मारती, भूख लगती, पेशाब होती। पर ऐसा कभी होता नहीं देखा गया। मृत्यु होने के बाद जीवित अवस्था की सी चेष्टायें आज तक किसी ने नहीं कीं, आत्मा और शरीर दो विलग वस्तुयें—दो विलग तत्व होने का यही सबसे बड़ा प्रमाण है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

10 Love

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HP

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता
जीव की शारीरिक स्थिति पर विचार करें तो प्रत्यक्षतः यह देखने में आता है कि दो शक्तियाँ अवस्थित हैं। प्रथम पञ्चधा प्रकृति—जिससे हाथ, पाँव, पेट, मुँह, आँख, कान, दाँत आदि शरीर का स्थूल कलेवर बनकर तैयार होता है। इस निर्जीव तत्व की शक्ति और अस्तित्व का भी अपना विशिष्ट विधान है जो भौतिक विज्ञान के रूप में आज सर्वत्र विद्यमान है। जड़ की परमाणविक शक्ति ने ही आज संसार में तहलका मचा रखा है जबकि उसके सर्गाणुओं, कर्षाणुओं, केन्द्रपिण्ड (न्यूक्लिअस) आदि की खोज अभी भी बाकी है। यह सम्पूर्ण शक्ति अपने आप में कितनी प्रबल होगी इसकी कल्पना करना भी कठिन है। द्वितीय—शरीर में सर्वथा स्वतन्त्र चेतन शक्ति , भी कार्य कर रही है जो प्राकृतिक तत्वों की अपेक्षा अधिक शक्तिमान मानी गई है। यह चेतन तत्व संचालक है, इच्छा कर सकता है, योजनायें बना सकता है, अनुसन्धान कर सकता है इसलिये उसका महत्व और भी बढ़-चढ़कर है। हिन्दू ग्रन्थों में इस सम्बन्ध में जो गहन शोधों के विवरण हैं वे चेतन शक्ति की आश्चर्यजनक शक्ति प्रकट करते हैं। इतना तो सभी देखते हैं कि संसार में जो व्यापक क्रियाशीलता फैली हुई है वह इस चेतना का ही खेल है। इसके न रहने पर बहुमूल्य, बहु शक्ति -सम्पन्न और सुन्दर शरीर भी किसी काम का नहीं रह जाता। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

9 Love

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जीवधारियों के शरीर में व्याप्त इस चेतना का ही नाम आत्मा है। सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, ज्ञान तथा प्रयत्न उसके धर्म और गुण हैं। न्याय और वैशेषिक दर्शनों में आत्मा के रहस्यों पर विशद प्रकाश डाला गया है और उसे परमात्मा का अंश बताया गया है। यह आत्मा ही जब सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष आदि विकारों का त्याग कर देती है तो वह परमात्म-भाव में परिणित हो जाता है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

8 Love

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HP

छान्दोग्योपनिषद के सातवें अध्याय के 26वें खण्ड में बताया गया है
‘आत्मा से प्राण, आत्मा से आशा, आत्मा से स्मृति, आत्मा से आकाश, आत्मा से तेज, आत्मा से जल, आत्मा से आविर्भाव और तिरोभाव, आत्मा से अन्न, आत्मा से बल, आत्मा से विज्ञान, आत्मा से ध्यान, आत्मा से चित्त; आत्मा से संकल्प, आत्मा से मन, आत्मा से वाक्, आत्मा से नाम, आत्मा से मन्त्र, आत्मा से कर्म और यह सम्पूर्ण चेतन जगत ही आत्मा से आच्छादित है। इस आत्म-तत्व का ज्ञान प्राप्त कर लेने वाले मनुष्य जीवन-मरण के बन्धनों से मुक्त हो जाते हैं।’ आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

6 Love

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HP

कुछ दिन पूर्व इस बात को लेकर वैज्ञानिकों में काफी लम्बी चर्चा चली थी और आत्मा के अस्तित्व सम्बन्धी उनके मत लिए गए थे जिन्हें सामूहिक रूप से ‘दो ग्रेट डिजाइन’ नामक पुस्तक में प्रकाशित किया गया है। पुस्तक में उपसंहार करते हुए लिखा गया है—

‘यह संसार कोई आकस्मिक घटना नहीं लगता है। इसके पीछे कोई सुनियोजित विधान चल रहा है। एक मस्तिष्क, एक चेतन-शक्ति काम कर रही है। अपनी-अपनी भाषा में उसका नाम चाहे कुछ रख लिया जाय पर वह मनुष्य की आत्मा ही है।’

इसके अतिरिक्त जे. एन. थामसन, जे. बी. एम. हेल्डन, पी. गोइडेस, आर्थर एच. काम्पटन, सर जेम्स जोन्स आदि वैज्ञानिकों ने भी आत्मा के अस्तित्व में सहमति प्रकट की है। उसके प्रत्यक्ष ज्ञान के साधनों का पाश्चात्य देशों में भले ही अभाव हो, पर विचार और बुद्धिशील मनुष्य के लिए यह अनुभव करना कठिन नहीं है कि यह जगत केवल वैज्ञानिक तथ्यों तक सीमित नहीं वरन् उन्हें नियन्त्रित करने वाली कोई चेतना भी अवश्य काम कर रही है और उसे जानना मनुष्य के लिए बहुत आवश्यक है।

शास्त्रीय कथानकों के माध्यम से आत्मा के अस्तित्व, गुणों और क्रियाओं के सम्बन्ध में बड़ी ही ज्ञानपूर्ण चर्चायें की गई हैं। ऐसे कथानकों में नारद, ध्रुव आदि के वार्तालाप के साथ राजा चित्रकेतु की कथा भी बड़ी शिक्षाप्रद और वास्तविक तथ्यों से ओत प्रोत है।

चित्रकेतु एक राजा था जिसे महर्षि अंगिरा की कृपा से एक सन्तान प्राप्त हुई थी। बच्चा अभी किशोर ही था कि उसकी मृत्यु हो गई। राजा पुत्र-वियोग से बड़ा व्याकुल हुआ। अन्त में ऋषिदेव उपस्थित हुए और उन्होंने दिवंगत आत्मा को बुलाकर शोकातुर राजा से वार्तालाप कराया। पिता ने पुत्र से लौटने के लिए कहा तो उसने जवाब दिया, ‘ए जीव! मैं न तेरा पुत्र हूँ और न तू मेरा पिता है। हम सब जीव कर्मानुसार भ्रमण कर रहे हैं। तू अपनी आत्मा को पहचान। हे राजन् ! इसी से तू साँसारिक संतापों से छुटकारा पा सकता है।’ अपने पुत्र के इस उपदेश से राजा आश्वस्त हुआ और शेष जीवन उसने आत्म-कल्याण की साधना में लगाया। राजा चित्रकेतु अन्त में आत्म-ज्ञान प्राप्त कर जीवन-मुक्त हो गया।

यह आत्मा अनेक योनियों में भ्रमण करती हुई मनुष्य जीवन में आती है। ऐसा संयोग उसे सदैव नहीं मिलता। शास्त्रीय अथवा विचार की भाषा में इतना तो निश्चय ही कहा जा सकता है कि जीवों की अपेक्षा मनुष्य को जो श्रेष्ठताएँ उपलब्ध है वे किसी विशेष प्रयोजन के लिए ही हैं जो आत्मज्ञान या अपने आपको जानना ही हो सकता है, आत्मज्ञान ही मनुष्य-जीवन का लक्ष्य है जिससे वह जीवभाव से मुक्त होकर ईश्वरीय भाव में लीन हो जाता है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

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Shravan Goud

नित्य स्वाध्याय करने से आत्मा की शुद्धि होती है। नित्य स्वाध्याय करने से आत्मा की शुद्धि होती है।

नित्य स्वाध्याय करने से आत्मा की शुद्धि होती है।

0 Love

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ARVIND KUMAR KASHYAP

प्राकृतिक सौंदर्य एवं व्यवस्था का कोई जवाब नहीं,यह उत्कृष्ट व्यवस्था ईश्वरीय सत्ता की है।

प्राकृतिक सौंदर्य एवं व्यवस्था का कोई जवाब नहीं,यह उत्कृष्ट व्यवस्था ईश्वरीय सत्ता की है। #जानकारी

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SANDIP GARKAR

पाठ 1 इयत्ता चौथी

पाठ 1 इयत्ता चौथी

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Dr.Vinay kumar Verma

मेरी दो बातें: 'व्यक्तित्व विकास के सूत्र' : पहला - 'स्वाध्याय' #shorts #motivation

मेरी दो बातें: 'व्यक्तित्व विकास के सूत्र' : पहला - 'स्वाध्याय' #Shorts #Motivation #जानकारी

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digital creator

ब्रह्मचारणी की शक्ति, आत्मा का अनमोल रत्न,
इंद्रियों का संयम, और आत्मा का निरंतर उत्थान।
स्वयं को समर्पित करें, ब्रह्मचारणी के रूप में,
ऊंचाइयों को छूने की दिशा, और अपने लक्ष्य की प्राप्ति करें।

©digital creator
  #navratri #ब्रह्मचारणी
#आत्मसंयम
#ब्रह्मचरण
#सन्यास
#आत्मा
#ब्रह्मचर्यशक्ति
#ब्रह्मचारणीशक्ति
#स्वाध्याय
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Motivational indar jeet guru

जीवन दर्शन 🌹
नित्य स्वाध्याय की नियमित व्यवस्था रखनी चाहिए - आत्मनिरीक्षण एवं आत्मपरिशोधन का मार्गदर्शन जो , पुस्तकें इस प्रयोजन को पूरा करती है !.i.j

©motivationl indar jeet guru 
  #जीवन दर्शन 🌹
नित्य स्वाध्याय की नियमित व्यवस्था रखनी चाहिए - आत्मनिरीक्षण एवं आत्मपरिशोधन का मार्गदर्शन जो , पुस्तकें इस प्रयोजन को पूरा कर

#जीवन दर्शन 🌹 नित्य स्वाध्याय की नियमित व्यवस्था रखनी चाहिए - आत्मनिरीक्षण एवं आत्मपरिशोधन का मार्गदर्शन जो , पुस्तकें इस प्रयोजन को पूरा कर #विचार

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Ganesh Shewale

इयत्ता3

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10f8edc2473021437edeae271a336822

silent girl

नवरी बाई 😘😘
#treding #navarilook #नवरी

नवरी बाई 😘😘 #treding #navarilook #नवरी #Love

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Ajeet Ajeet

हैप्पी राम नवमी के ढेर सारी शुभकामनाएं और बधाई   जस विधिं रखों राम तस विधिं रहियों सिता राम  सिता राम कहीयों

©Ajeet Ajeet
  #राम #नवमी
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Sunita Bishnolia

पर्यावरण (दोहे)
हरी-भरी धरती रहे,नीला हो आकाश,
स्वच्छ बहे सरिता सभी,स्वच्छ सूर्य प्रकाश।।
पेड़ों को मत काटिए,करें धरा श्रृंगार।
माटी को ये बांधते,ये जीवन आधार।।
सुनीता बिश्नोलिया©®



शुद्ध हवा में साँस लें,कोई न काटे पेड़।
आस-पास भी साफ़ हो, सभी बचाएँ पेड़।।

धरती माता ने दिए,हमें अतुल भण्डार,
स्वच्छ पर्यावरण रखें, मानें हम उपकार।।

कानन-नग-नदियाँ सभी,धरती के श्रृंगार। 
दोहन इनका कम करें,मानें सब उपहार।। 

साफ-स्वच्छ गर नीर हो,नहीं करें गर व्यर्थ।
कोख न सूखे मात की, जल से रहें समर्थ।

धूल-धुआँ गुब्बार ही,दिखते चारों ओर।
दूषित-पर्यावरण हुआ,चले न कोई जोर।।

कान फाड़ते ढोल हैं,फूहड़ बजते गीत,
हद से ज्यादा शोर है,खोये 
मधुरिम गीत।

हरी-भरी खुशहाली के,धरती भूली गीत।
मैली सी वसुधा हुई,भूली सुर संगीत।।

पर्यावरण स्वच्छ राखिये,ये जीवन आधार,
खुद से करते प्यार हम,कीजे इससे प्यार।

#सुनीता बिश्नोलिया
#जयपुर #पर्यावरण  #स्वच्छ #पर्यावरण
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Bishwa Bijay Sharma

गोस्वामी तुलसीदास ने श्री रामचरित मानस में लिखा है,

कलयुग केवल नाम अधारा I सुमिरि सुमिरि नर उतरहि पारा II 

अर्थ: कलयुग में केवल राम नाम का जाप करने मात्र से मनुस्य भव बंधन से मुक्त होकर भवसागर पार हो जायेगा I


भावार्थः  कलयुग के प्रभाव को समझने वाले ये जानते थे कि कलिकाल मे  मनुष्य धर्म कर्म  से विमुख होकर सांसारिक मोह माया में संलिप्त रहेगा, उसे भगवत भजन में अरुचि तथा कलयुगी व्यसनों के प्रति घोर आशक्ति  होगी, चूँकि गोस्वामी तुलसीदास जी भविष्य द्रष्टा थे, अतः उन्होंने मनुष्य को धर्म-कर्म की तरफ जोड़ने के लिए ये चौपाई लिखी थी अभिप्राय
ये था कि मनुष्य अपनी मुक्ति के उद्देश्य से जब श्री राम नाम का सुमिरन बारम्बार करेगा, तो उसे श्री राम के बारे में जानने 
की उत्सुकता होगी और वो श्रीराम चरित मानस एवं अन्य धर्म ग्रंथो का अध्ययन करेगा, जिससे उसे मर्यादा पुरुषोत्तम
श्रीराम के आदर्शो और मूल्यों का ज्ञान होगा, और अगर श्रीराम के आदर्शो और मूल्यों में से मनुष्य हजरावां भाग भी आत्मसात कर लेगा तो निसन्देह मनुष्य सभी बंधनो से मुक्त होकर भव सागर पार हो जायेगा I

उदाहरण:   जिस प्रकार भोजन -भोजन कहने मात्र से भूक नहीं शांत होती, एवं पानी - पानी कहने मात्रा से प्यास नहीं बुझती अपितु भूक के लिए भोजन एवं प्यास के लिए पानी को ग्रहण  करने के उपरांत ही भूक एवं प्यास शांत होता है, उसी प्रकार केवल राम नाम जपने मात्र से मुक्ति नहीं मिलती अपितु अपने आचरण में श्री राम के आदर्शो एवं मूल्यों को आत्मसात करने के उपरांत ही मुक्ति मिलती है I
 
जै श्री सीता राम I                                    ✍️विश्व विजय राम नवमी

राम नवमी

10 Love

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Fardeen Khan Khan

जिंदगी  खामोश थी जब तुम ना थे 
तुम आए जिन्दगी गमगीन हो गई  
             #NojotoQuote नवमी खान

नवमी खान

5 Love

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RJ Prasad...

दिवस गं नवमीचा ..
न गुलाबी रंगाचा ...

देवीच्या गं मायेचा...
वाटे मज अमृताचा...☺️

            @  प्रसाद पारेकर...

©RJ Prasad... #Navraatra नवमी
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Ram

राम नवमी

46 Views

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safernama _withme

पूज कर आज  बेटियों को तुम  मान दिखा रहें हों
कल तुम ही  उनके अभिमान को तोड़ दोगे।
सम्मान करना हैं तो हर दिन करों ।
क्यों एक दिन के लिए ढोंग रचा रहें हों । ##राम  नवमी ##

##राम नवमी ##

6 Love

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Ekta Dubey

राम सत्य है 
राम ही जीवन 

राम है मानव
राम ही ईश्वर 

राम धर्म 
राम ब्रह्म

राम ब्रह्माण्ड 
राम ही सर्वत्र राम नवमी

राम नवमी #बात

8 Love

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सतीश तिवारी 'सरस'

डॉ. प्रकाश जी डोंगरे की पंक्तियाँ

जलती सड़कों पर
जो एक
अकेला आदमी
गुलमोहर की तलाश में
नंगे पाँव जा रहा है
व्यवस्था का सूरज
सबसे अधिक
उससे ही घबरा रहा है।

''बूढ़ा पिता और आम का पेड़'' काव्य संग्रह से साभार

©सतीश तिवारी 'सरस' 
  #व्यवस्था
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