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Lucky kunjwal ( Musafir)
ना क्षत्रिय ना शिष्य द्रोण का, एक योद्धा रण में आया था। मित्रता की अमिट छाप छोड़ने, वो कुरुक्षेत्र में आया था।। घर्मवीर वो दानवीर वो, महारथी कहलाया था। हंसते हंसते दान कर दिए कवच कुंडल भी, तभी बलिदान कहलाया था। एक योद्धा रण में आया था।। कोई धर्म, कोई अधर्म के पक्ष में, वो दोस्ती के पक्ष में आया था। जिसने मधुसूदन के रथ को दो पग हिलाया था, रणभूमि में अपने कौशल से, हाहाकार मचाया था, एक योद्धा रण में आया था।। कुरूवंश का अंश नहीं,ना कुंती पुत्र कहलाया था, ना पांडव से ना कौरव से वो अंगराज कहलाया था। परशुराम का शिष्य अनोखा, वो सुर्य पुत्र कहलाया था। एक योद्धा रण में आया था।। कर्ण.......।। #कर्ण #कर्ण_की_वीरता #अंगराज #महाभारत #yqdidi #life
Shubham Singh
इम्तिहानों की अग्नि में तपकर, फ़िर भी मैं तो स्वर्ण रहूंगा, छल से मुझको मात मिली है, फ़िर भी मैं तो कर्ण रहूंगा। सूत बताकर द्रोण ने मुझको खड़ा किया फ़िर कोने में, जात दिखा रहे वो मुझको, जो ख़ुद जन्मे थे दोने में। प्राणों का तो भय नहीं था पर भय था मित्रता खोने में, परम शौभाग्य कभी मिल नहीं पाया कुंती पुत्र होने में। सूत जाति के होने से, द्रौपदी संग प्रीत न हो पाई, वचन निभाना और दानी होना, अंत ये रीत न हो पाई, प्राण का जाना निश्चित था और अंत में जीत न हो पाई, पर हार कर भी सदियों तक मैं, सबके मुख पर वर्ण रहूंगा, छल से मुझको मात मिली है, फ़िर भी मैं तो कर्ण रहूंगा। सारथी बनाया कृष्ण को और रथ पर बिठाया हनुमान को, साबित करने ख़ुद को श्रेष्ठ, मुझसे लड़वाया भगवान को, फ़िर कहते हो श्रेष्ठ तुम्हीं हो, क्या कहें इस अभिमान को, वीर योद्धाओं के बगिया का, मैं सबसे उत्तम पर्ण रहूंगा, छल से मुझको मात मिली है, फ़िर भी मैं तो कर्ण रहूंगा। ©Shubham Singh #कर्ण #कर्ण_की_वीरता #सवश्रेष्ठ_धनुर्धर Satyaprem Dhyaan mira Anshu writer
HARSHAL SONNE
कर्णमंडल अर्धगोलयाकरी तयास शोभे मुकुट शोभेरी लटाछटांचा किनारा लाभुनी मन- हृदयी वाऱ्यासवे मिसळूनि कर्णपत्र ते कर्णपताका होऊनि राजशीभनीय झाले धन्यवाद त्या कलाकारांसी जया हाती हे पुण्य आले ©HARSHAL SONN कर्णमंडल #touchthesky
🅰️NℹL ®️🅰️W🅰️T
|| सफलता का राज|| मेहनत करने का सही तरीक और समय पर काम कर लेना। इस मेहनत का फल एक दिन जरुर मिलग ।। (जैसे कर्णि वैसे भर्णी) जैसे कर्णि वैसे भर्णी
Anshul Singh
#OpenPoetry है रण दुर्दम्य , योद्धा प्रवीण , अद्भुत शर से सज्जित तुरीण । क्षत-विक्षत शव हैं पटे पड़े , मस्तक वीरों के कटे पड़े , कितनों पर मैंने वार किया , कितनों का संहार किया । हे माधव ! इस धर्म युद्ध में मैंने अबतक , धर्म पताका लहराई है , युक्ति से मैंने युद्ध किया है , शौर्य से विजय पायी है । पर एक निहत्थे योद्धा पर , बोलो कैसे मैं प्रहार करूँ , जो रत है अपने रथ में अब , उसका कैसे संहार करूँ । क्या अर्जुन का बल क्षीण हुआ , या आत्मबल संकीर्ण हुआ , जो एक असहाय वीर पर , मैं अपनी शक्ति दिखलाऊँगा । विजय भी हो जाए माधव , मैं कायर ही कहलाऊँगा । हे भगवन ! तुमने ही तो मुझको , धर्म मार्ग बतलाया था , अपने सामर्थ्य पर विश्वास करूँ , ये पाठ मुझे सिखलाया था । अब तुम ही मुझको धर्म से , विरत कैसे कर सकते हो , एक शस्त्रहीन पर शस्त्र उठाऊँ , ये कैसे कह सकते हो ? बोलो ना माधव चुप क्यों हो , शंका का समाधान करो , अंधकार में डूब रहा , आलोकित मेरे प्राण करो । #OpenPoetry #व्यथा #अर्जुनकृष्णसंवाद #कर्णवध
Anand Mishra
जब निश्चित हो निज हार प्रबल, और मन कुंठित सा तकता हो, लर्जिश हो तन और साँसों में, और डग-मग भय सब सुनता हो, खलिश मची हो अंतर्मन, जीत खड़ी ,फुफकारे फन, आंख झुकीं,मन शायी हो, हर-पल थमते भाई हों, उठो वीर! तब सांस भरो, अब साथी मन का आएगा, सभी पुकारेंगे वीर उसे भी, पर वो कर्ण कहलायेगा । ©Anand Mishra कर्ण #कर्ण
BHUMIKULDEEP SHANDILYA