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Poet Shivam Singh Sisodiya
योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना | श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः || ४७ || भावार्थ समस्त योगियों में से जो योगी अत्यन्त श्रद्धापूर्वक मेरे परायण है, अपने अन्तःकरण में मेरे विषय में सोचता है और मेरी दिव्य प्रेमाभक्ति करता है वह योग में मुझसे परम अन्तरंग रूप में युक्त रहता है और सबों में सर्वोच्च है | यही मेरा मत है | योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना | श्रद्धावान्भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः || ४७ || योगिनाम् – योगियों में से; अपि – भी; सर्वेषाम्
Shaarang Deepak
ओम भक्त "मोहन" (कलम मेवाड़ री)
बे मतलब का शौक मत पाला करो,इनका भी घर आने का कोई इंतजार कर रहा होता है,,,, पंक्षी पर्यावरण गुलशन की रौनक , सृष्टि की सुषमा होते है,,,,,,,,,फ
Akira Arsh
............. "कायनात एक कविता है" कहीं मन मोहे महक मनोहारी कहीं बागों की छटा है प्यारी ऐसे बहकाये बंसत की बहार जैसे रस हो संयोग श्रृंगार प्याला प्
AB
सम्पूर्ण जगत में भ्रमण करने के पश्चात भी आत्मिक सुख की अनुभूति कहां,? निःसंदेह ही होती जब वापिस अपने घर लौटते होंगे वह,! फिर प्रश्न यह है कि जब आत्मिक सुख तुम्हें घर पर ही मिलना है तो फिर यह भ्रमण क्यूँ,? मै
Anil Siwach