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Ravendra
Mohd Akhtar Razaa
*तेरी बुराइयों* को हर *अख़बार* कहता है, और तू मेरे *गांव* को *गँवार* कहता है // *ऐ शहर* मुझे तेरी *औक़ात* पता है // तू *चुल्लू भर पानी* को भी *वाटर पार्क* कहता है // *थक* गया है हर *शख़्स* काम करते करते // तू इसे *अमीरी* का *बाज़ार* कहता है। *गांव* चलो *वक्त ही वक्त* है सबके पास !! तेरी सारी *फ़ुर्सत* तेरा *इतवार* कहता है // *मौन* होकर *फोन* पर *रिश्ते* निभाए जा रहे हैं // तू इस *मशीनी दौर* को *परिवार* कहता है // जिनकी *सेवा* में *खपा* देते थे जीवन सारा, तू उन *माँ बाप* को अब *भार* कहता है // *वो* मिलने आते थे तो *कलेजा* साथ लाते थे, तू *दस्तूर* निभाने को *रिश्तेदार* कहता है // बड़े-बड़े *मसले* हल करती थी *पंचायतें* // तु अंधी *भ्रष्ट दलीलों* को *दरबार* कहता है // बैठ जाते थे *अपने पराये* सब *बैलगाडी* में // पूरा *परिवार* भी न बैठ पाये उसे तू *कार* कहता है // अब *बच्चे* भी *बड़ों* का *अदब* भूल बैठे हैं // तू इस *नये दौर* को *संस्कार* कहता है *........//* ✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻 ✍🏻✍🏻 पढ़ने के बाद मैं रोक न सका और आप सभी के बीच भी समर्पित किया !!! *तेरी बुराइयों* को हर *अख़बार* कहता है, और तू मेरे *गांव* को *गँवार* कहता है // *ऐ शहर* मुझे तेरी *औक़ात* पता है // तू *चुल्लू भर पानी* क
Poonam bagadia "punit"
sandy
*सुख म्हणजे नक्की काय असतं ?* सुख म्हणजे काय, सुखाचे प्रकार कोणते, सुख खरंच अस्तित्वात असतं की नसतं वगैरे वगैरे विषयांवर शतकानुशतके संत
पूर्वार्थ
आप दुनिया को किस नजरिये से देखते हैं –सुख दुःख इस बात पर निर्भर करता हैं । ©purvarth एंक गांव में सुबह एक यात्री आया उसने अपने घोडे को रोका , गांव के दरवाजे पर बैठे हुए एक बुढे आदमी से उसने पुछा- इस गांव के लोग कैंसे है ? मैं
SHREENIVAS MITAKUL
Agastya namdev ,,darpan,
रस्ता और गाँव रस्ते खाली खाली से लगते हैं अब तो गाँव के,,शहर सा वीराना लगता है ,(गाँव) बैलगाड़ी के नाम से बैलगाड़ी