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Måhïr Ålï

शेरो शायरियाँ क्या कोई बच्चों का खेल है, जल जाती है जवानियाँ लफ़्ज़ों की आग में। #nojotophoto

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 शेरो शायरियाँ क्या कोई बच्चों का खेल है, 

जल जाती है जवानियाँ लफ़्ज़ों की आग में।

Måhïr Ålï

शेरो शायरियाँ क्या कोई बच्चों का खेल है, जल जाती है जवानियाँ लफ़्ज़ों की आग में।M.A

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Ritik Verma the Swan

शेर-ओ-सुखन क्या कोई बच्चों का खेल है? जल जातीं हैं जवानियाँ लफ़्ज़ों की आग में। #coldmornings

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शेर-ओ-सुखन क्या कोई बच्चों का खेल है?
जल जातीं हैं जवानियाँ लफ़्ज़ों की आग में।

©Ritik Verma the Swan शेर-ओ-सुखन क्या कोई बच्चों का खेल है?
जल जातीं हैं जवानियाँ लफ़्ज़ों की आग में।
#coldmornings

Ranju@singh

शेर-ओ-सुखन क्या कोई बच्चों का खेल है? जल जातीं हैं जवानियाँ लफ़्ज़ों की आग में।...R@s

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शेर-ओ-सुखन क्या कोई बच्चों का खेल है? 
जल जातीं हैं जवानियाँ लफ़्ज़ों की आग में।....R@s शेर-ओ-सुखन क्या कोई बच्चों का खेल है? 
जल जातीं हैं जवानियाँ लफ़्ज़ों की आग में।...R@s

Veer Keh Raha

कारगिली चोटियों की जीत में शहीद हुई विक्रम, मनोज की जवानियाँ प्रणम्य है। #kargilvijaydiwas #IndianArmy #Soldier Internet Jockey Satyaprem

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On the Border वीरता के दीप प्राण पुंज से जलाने वाली
सोमनाथ जैसी जिन्दगानियाँ प्रणम्य है।

पैर से मशीन गन बांध के चलाने वाली
कुमाऊँ के सिंह की कहानियाँ प्रणम्य है।

शौर्यता की गोलियों से तोप को उड़ाने वाली
अब्दुल हमीद की रवानियाँ प्रणम्य है।

कारगिली चोटियों की जीत में शहीद हुई
विक्रम, मनोज की जवानियाँ प्रणम्य है। कारगिली चोटियों की जीत में शहीद हुई
विक्रम, मनोज की जवानियाँ प्रणम्य है।
#kargilvijaydiwas #IndianArmy #Soldier Internet Jockey Satyaprem

Veer Keh Raha

कारगिली चोटियों की जीत में शहीद हुई विक्रम, मनोज की जवानियाँ प्रणम्य है। #IndianArmy #kargilvijaydiwas #Poetry Internet Jockey #कविता

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वीरता के दीप प्राण पुंज से जलाने वाली
सोमनाथ जैसी जिन्दगानियाँ प्रणम्य है।

पैर से मशीन गन बांध के चलाने वाली
कुमाऊँ के सिंह की कहानियाँ प्रणम्य है।

शौर्यता की गोलियों से तोप को उड़ाने वाली
अब्दुल हमीद की रवानियाँ प्रणम्य है।

कारगिली चोटियों की जीत में शहीद हुई
विक्रम, मनोज की जवानियाँ प्रणम्य है। कारगिली चोटियों की जीत में शहीद हुई
विक्रम, मनोज की जवानियाँ प्रणम्य है।
#IndianArmy #kargilvijaydiwas #Nojoto #Poetry  Internet Jockey

Ashraf Fani【असर】

जितने लोग उतनी कहानियाँ फिर नौजवानों की जवानियाँ इसी दुनिया मे जन्में इसी में दफ़्त हो जाते हैं हसीन पौधे उनपे गुलकारियाँ रंगीन फूलों की फुलव #कविता

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जितने लोग उतनी कहानियाँ
फिर नौजवानों की जवानियाँ
इसी दुनिया मे जन्में
इसी में दफ़्त हो जाते हैं
हसीन पौधे उनपे गुलकारियाँ
रंगीन फूलों की फुलवारियाँ
इसी दुनिया में खिलते
इसी में दफ़्त हो जाते हैं
ये खेल सदियों से है
ये खेल चलता रहेगा
अपने अपने हिस्से का खेल
खेलना ही पड़ेगा

©Ashraf Fani Kabir🌷 asar जितने लोग उतनी कहानियाँ
फिर नौजवानों की जवानियाँ
इसी दुनिया मे जन्में
इसी में दफ़्त हो जाते हैं
हसीन पौधे उनपे गुलकारियाँ
रंगीन फूलों की फुलव

कवि राहुल पाल 🔵

निर्गुण भाव 🙏😊 ( अवधी ) लेखक / स्वंर - कवि राहुल पाल प्रेरणास्रोत - Rekha💕Sharma "मंजुलाहृदय" शब्दार्थ .. विसरा - भुला देना ,त्याग देना

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Nishant Sidar

तू रुकना नहीं । घर से निकला एक हाथ में झोला आंखों में उम्मीद चाहे मारे जग ताना चाहे कहे कुछ दुनिया #nishantsidar

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घर से निकला
एक हाथ में झोला
आंखों में
उम्मीद 

चाहे मारे जग ताना
चाहे कहे कुछ दुनिया
उनसे बड़ी है
तेरी ज़िद #NojotoQuote तू रुकना नहीं ।
घर से निकला
एक हाथ में झोला
आंखों में
उम्मीद 

चाहे मारे जग ताना
चाहे कहे कुछ दुनिया

Sachin Ratnaparkhe

ग़ज़ल: "हुस्न-ओ-शबाब" चाहता हूं तेरे लिए इमरोज़ कुछ न कुछ लिखूं, चाहता हूं तेरे लिए रोज़ कुछ न कुछ लिखूं। तेरी नर्गिसी आँखों में झलकता है #hindierotica #रुखसार #रेशमी_जुल्फें #हुस्न_ए_उरोज #बोसा_ए_लब #खूबसूरती_ए_जिस्म #कशिश_ए_हुस्न_ओ_शबाब #eroticgazal

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ग़ज़ल: "हुस्न-ओ-शबाब"

चाहता हूं तेरे लिए इमरोज़ कुछ न कुछ लिखूं,
चाहता हूं तेरे लिए रोज़ कुछ न कुछ लिखूं।

तेरी नर्गिसी आँखों में झलकता है ज़ाम-ए-इश्क़,
चाहता हूं तेरी आँखो पर रोज कुछ न कुछ लिखूं।

तेरी रेशमी जुल्फें सा अहसास है तुझसे मोहब्बत,
चाहता हूं तेरी जुल्फों पर रोज कुछ न कुछ लिखूं।

तेरी उभरे रुखसार से सजती है क़ातिल मुस्कुराहट,
चाहता हूं तेरे रुखसार पर रोज कुछ न कुछ लिखूं।

तेरे हुस्न-ए-उरोज पर मरती है कई जवानियाँ,
चाहता हूं तेरे उरोज पर रोज कुछ न कुछ लिखूं।

तेरे बोसा-ए-लब से ज्यादा सुरूर-ए-इश्क़ कहाँ,
चाहता हूं तेरे लबों पर रोज कुछ न कुछ लिखूं।

तेरी खूबसूरती-ए-जिस्म पर फ़िदा है सारा जमाना,
चाहता हूं तेरे जिस्म पर रोज कुछ न कुछ लिखूं।

तेरे कशिश-ए-हुस्न-ओ-शबाब से मदहोश है राही भी,
चाहता हूं तेरे शबाब पर रोज कुछ न कुछ लिखूं। ग़ज़ल: "हुस्न-ओ-शबाब"

चाहता हूं तेरे लिए इमरोज़ कुछ न कुछ लिखूं,
चाहता हूं तेरे लिए रोज़ कुछ न कुछ लिखूं।

तेरी नर्गिसी आँखों में झलकता है
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