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Rakesh India
shashi shankar patel
Divyanshu Pathak
....💐💐💐💐 करनी बिन कथनी कथे, अज्ञानी दिन रात । कूकर सम भूकत फिरे, सुनी सुनाई बात ॥: : अर्थ: संत कबीर दास जी कहते हैं कि अज्ञानी एवं मूर्ख व्यक्ति काम कम और बातें अधिक करते हैं और सुनी सुनाई बातों को ही रटते हुए कुत्तों कि तरह हर गली में जा कर भोंकते रहते हैं उनका अपना कोई तर्क नहीं होता है । : रामचरित मानस में तुलसीदास जी कहते है---- : ब्रह्मज्ञान बिनु नारि नर कहहीं न दूसरी बात। कौड़ी लागी लोभ बस करहिं बिप्र गुर बात।। 😂😂😂😂🍫🍫🍫💐💐🐒🍨🍧 हमारे पूर्वजों की एक एक बात अनुकरणीय है ...... सामाजिक ज्ञान और व्यवहारिक सौंदर्य को समझने की सरल और उपयुक्त शिक्षा हमारे मूल ग्रंथों में बह
Sunita D Prasad
# सत्य की खोज.... --सुनीता डी प्रसाद💐 # सत्य की खोज.... तुम वेदनाओं को प्रबल करते गए,, मैं उनमें भी संभावनाएँ खोजती रही..। तुम यथार्थ का कठोर धरातल तैयार करते रहे,, मैं उनमें भी
Kulbhushan Arora
Diary of Bloody Man My second &third Blood donation in 1975 And annual function of Blood Bank Society Chandigarh सबक:: अति उत्साह से बचें☺️ #paidstory पहली बार रक्तदान का अनुभव अपने आप में एक खुमार जैसा था,सच कहूं तो थोड़ा गर्व भी अनुभव हो रहा ये सोच कर की मेरा रक्त किसी के vei
N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} अध्याय 2 : सांख्ययोग श्लोका 22 वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही।। अर्थ :- मनुष्य जैसे पुराने कपड़ोंको छोड़कर दूसरे नये कपड़े धारण कर लेता है, ऐसे ही देही पुराने शरीरोंको छोड़कर दूसरे नये शरीरोंमें चला जाता है। जीवन में महत्व :- यह गीता में कई प्रसिद्ध श्लोकों में से एक है, जिसमें यह समझाया गया है कि कैसे आत्मा अपने शरीर को छोड़ देती है और अन्य शरीरों के साथ पहचान करके नई परिस्थितियों में नए अनुभव प्राप्त करती है। व्यासजी द्वारा प्रयुक्त यह दृष्टान्त बहुत जानी मानी है । भगवान अपने विचारों को विशद उपमाओं के माध्यम से समझाने की विधि अपनाते हैं। इस तरह की तुलना आम आदमी को विचार स्पष्ट करने में मदद करती है। जैसे कोई जीवन की अलग अलग परिथितियों के लिए अलग अलग कपडे पहनता है, उसी प्रकार आत्मा एक शरीर को छोड़कर अन्य प्रकार के अनुभवों को प्राप्त करने के लिए दूसरे शरीर को धारण करती है। कोई भी नाइट गाउन पहनकर अपने काम पर नहीं जाता या ऑफिस के कपड़े पहनकर टेनिस नहीं खेलता। वे अवसर और स्थान के अनुकूल कपड़े पहनते हैं। यही हाल मौत या आत्मा का भी है। यह समझना इतना सरल है कि केवल अर्जुन ही नहीं, कोई भी विद्यार्थी या गीता का श्रोता त्याग के विषय को स्पष्ट रूप से समझ सकता है। अनुपयोगी कपड़े बदलना किसी के लिए भी मुश्किल या दर्दनाक नहीं होता है और खासकर जब किसी को पुराने कपड़े छोड़कर नए पहनने पड़ते हैं। इसी तरह, जब जीव को पता चलता है कि उनका वर्तमान शरीर उनके लिए किसी काम का नहीं है, तो वे पुराने शरीर को त्याग देते हैं। शरीर का यह "बूढ़ापन" या यों कहें कि शरीर की घटती उपयोगिता को केवल पहनने वाला ही निर्धारित कर सकता है। इस श्लोक की आलोचना यह है कि इस संसार में बहुत से बच्चे और युवा मरते हैं जिनका शरीर जीर्ण-शीर्ण नहीं था। इस मामले में, "बूढ़ापन" का अर्थ वास्तविक बुढ़ापा नहीं है, लेकिन शरीर की कम उपयोगिता यानी | इन बच्चों और युवाओं के लिए, यदि शरीर अनुपयोगी हो जाता है, तो वह शरीर पुराना माना जाएगा। एक अमीर व्यक्ति हर साल अपना भवन या वाहन बदलना चाहता है और हर बार उसे खरीदने के लिए कोई न कोई मिल जाता है। उस धनी व्यक्ति की दृष्टि से वह भवन या वाहन पुराना या अनुपयोगी हो गया है, लेकिन ग्राहक की दृष्टि से वही मकान उतना ही उपयोगी है जितना नया। इसी तरह, शरीर अप्रचलित हो गया है या नहीं, यह केवल वही तय कर सकता है जो इसे धारण करता है। यह श्लोक पुनर्जन्म के सिद्धांत को पुष्ट करता है। (राव साहब एन. एस. यादव ) अर्जुन इस दृष्टान्त के माध्यम से समझते हैं कि मृत्यु उन्हें ही डराती है जो इसे नहीं जानते। लेकिन जो व्यक्ति मृत्यु के रहस्य और अर्थ को समझता है, उसे कोई दर्द या दुख नहीं होता है, क्योंकि कपड़े बदलने से शरीर को कोई दर्द नहीं होता है, और न ही हम हमेशा वस्त्र त्यागने की स्थिति में रहते हैं। इसी प्रकार विकास की दृष्टि से आत्मा भी शरीर त्याग कर नये अनुभवों की प्राप्ति के लिये उपयुक्त नये शरीर को धारण करती है। इसमें कोई दर्द नहीं है। यह वृद्धि और परिवर्तन जीव के लिए है न कि चेतना के रूप में आत्मा के लिए। आत्मा हमेशा परिपूर्ण होती है, उसे विकास की आवश्यकता नहीं होती। ©N S Yadav GoldMine #City {Bolo Ji Radhey Radhey} अध्याय 2 : सांख्ययोग श्लोका 22 वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न
Vikrant Rajliwal
Shree
Book review पुस्तक समीक्षा प्रिय बाबा, सबसे पहले 'ईश्वर को पत्र' लिखने के संदर्भ में नव वर्ष पर प्रतियोगिता आयोजित करने की के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।🙏🏻 विजेताओं की स