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gora_shayer
की गुनहा किया में जो भी तेरे शहर में खुले आम किया मैने तेरे शहर में (Gora) ©Narendra Kumar Gora की गुनहा किया में जो भी तेरे शहर में खुले आम किया मैने तेरे शहर में (Gora)
अशुनुराग
जहां शहर पत्थर का हो वहाँ आईना नहीं दिखाया करते ! #NojotoQuote #एक शहर ऐसा भी!
rahulpandey
शहर शहर तुम्हारे दीदार के वास्ते आ जाते है वरना शहर और भी है आवारागगर्दे करने के लिए ।।राहुलपाण्डेय।। #शहर और भी है
Artist Rishi Jain
ये शहर जो मेरा घर है मेरा हमसफ़र है मेरी कहानी है इसकी गलियाँ भी मुझसे बात करती है दो रोज न गुजरूँ उनसे तो इंतज़ार करती हैं नाराज हो मुझसे शिकायतें भी हर बार करती है... ये शहर मेरी हर धड़कन में बसता है साथ रोता है और मेरे साथ हँसता है यह शहर मेरे सारे किस्से समेटा है मैं इसी की गोद मे जन्मा इसने मेरा बचपन भी देखा है.. आवाज दोस्तो की अब भी इसमें सुनाई देती है यह शहर जो मेरा घर है कभी एक छोटा गाँव होता था कमियाँ बहुत होंगी मग़र हर कोई साथ होता था वक़्त बदला मेरे शहर के हालात बदले हैं कुछ हाथ छूटे कुछ साथ बदले हैं लेकिन इमारतों के एवज़ में खोई नीम-इमली अब भी दिखाई देती है... यह जो शहर है अब भी मेरे साथ चलता है ज़रा-सा दूर जाऊं तो मुझे अब भी याद करता है.. यह शहर जो मेरा घर है... -ऋषि 07/10/19 यह शहर जो मेरा घर है...
Sudha Upadhyay
कभी माँ की तरह ममता से भरा लगता है, तो कभी पिता की तरह संघर्षशील भी लगता है। हाँ मेरा शहर जो मेरा घर है। कभी दुःख से बोझिल हवा सा तो कभी सुख का मीठा बयार सा लगता है। हाँ, मेरा शहर जो मेरा घर है, कभी भैया का झूठा गुस्सा सा तो कभी बहन के मीठे मनुहार सा लगता है। इक अनगिनत रिश्ते की डोर में बँधा सरहद सा लगता है। हाँ मेरा शहर जो मेरा घर है, कभी अपनो की फुलवारी सा, तो कभी परायों के जंगल जैसा लगता है। कभी हँसी की फुहार सा, तो कभी क्रंदन का चीत्कार सा लगता है, मेरे सपनों सा हसीन तो कभी निराशा के बादल सा लगता है। हाँ मेरा शहर जो मेरा घर है, कभी देवों के वरदान सा, तो कभी अभिशाप सा लगता है। कभी संगदिल निष्ठुर सा, तो कभी उदार मोम सा पिघलता भी लगता है। हाँ मेरा शहर जो मेरा घर है। मेरा शहर जो मेरा घर है
ankit saraswat
आधुनिकता की दौड़ में गाँव भी शहर हो गये।। खपरैल के बने मकान आज पक्के हो गये आधुनिकता की दौड़ में गाँव भी शहर हो गये। डाबर से बने रास्ते हैं अब हर तरफ, धूल से भरे रास्ते जाने कहाँ खो गये। आधुनिकता की दौड़ में गाँव भी शहर हो गये।। हर कूआँ सूखा पड़ा हर घर मे समर हो गये। चौपालें वीरान हैं सब कैद घरों में हो गये। आधुनिकता की दौड़ में गाँव भी शहर हो गये।। #अंकित सारस्वत# #गाँव भी शहर हो गये