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SANDIP GARKAR

इयत्ता चौथी परिसर अभ्यास 2 शिवजन्मपूर्वीचा महाराष्ट्र

इयत्ता चौथी परिसर अभ्यास 2 शिवजन्मपूर्वीचा महाराष्ट्र #Talk

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N M

सफलता तेरे कदम चूमेगी
किसी और पर नहीं
खुद पर विश्वास कर| सुप्रभात।
अभ्यास का अभ्यास कर,
तू होगा सफल, विश्वास कर...
#अभ्यासकर #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi
अभ्

सुप्रभात। अभ्यास का अभ्यास कर, तू होगा सफल, विश्वास कर... #अभ्यासकर #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi अभ्

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kunal

अभ्यास,,,निरंतर अभ्यास

अभ्यास,,,निरंतर अभ्यास

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richa verma

लक्ष्य का प्रयास कर।
तन में जब तक श्वास है
कर्म पर विश्वास कर।
 सुप्रभात।
अभ्यास का अभ्यास कर,
तू होगा सफल, विश्वास कर...
#अभ्यासकर #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
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सुप्रभात। अभ्यास का अभ्यास कर, तू होगा सफल, विश्वास कर... #अभ्यासकर #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi

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- आपका अभि

अपने सामर्थ्य पर विश्वास कर,


निराश ना हो प्रयास कर,
समस्या का उपहास कर

प्रयास कर, प्रयास कर....
अपने सामर्थ्य पर विश्वास कर  सुप्रभात।
अभ्यास का अभ्यास कर,
तू होगा सफल, विश्वास कर...
#अभ्यासकर #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi

सुप्रभात। अभ्यास का अभ्यास कर, तू होगा सफल, विश्वास कर... #अभ्यासकर #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi

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No Name

ताकि जीवन में हर परीक्षा 
आपको आसान लगे।  सुप्रभात।
अभ्यास का अभ्यास कर,
तू होगा सफल, विश्वास कर...
#अभ्यासकर #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
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Lokesh Mishra


एक नही कई बार कर,
रुक नही कुछ सोचकर,
हर कठिनाई पार कर,
तूफानों से टकरा जा,
धमाकों से आगाज कर,
उठ जा मेरे शेर तू,
अपना नाम कर, सुप्रभात।
अभ्यास का अभ्यास कर,
तू होगा सफल, विश्वास कर...
#अभ्यासकर #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
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Aditi Mishra

जिंदगी में जरूरी है। सुप्रभात।
अभ्यास का अभ्यास कर,
तू होगा सफल, विश्वास कर...
#अभ्यासकर #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi

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शायरशर्मा

तू रख विश्वास बस यही एक मात्र इस। सुप्रभात।
अभ्यास का अभ्यास कर,
तू होगा सफल, विश्वास कर...
#अभ्यासकर #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
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शायरशर्मा

तू रख विश्वास बस यही एक मात्र इस। सुप्रभात।
अभ्यास का अभ्यास कर,
तू होगा सफल, विश्वास कर...
#अभ्यासकर #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
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सुप्रभात। अभ्यास का अभ्यास कर, तू होगा सफल, विश्वास कर... #अभ्यासकर #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi

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Geet Wadhwani

कुछ नया प्रयास कर
ज्ञान हो या जिंदगी
विचार का विचार कर
हर बात के 2 पक्ष है
हर पक्ष का 2 पक्ष कर,!!HR

 सुप्रभात।
अभ्यास का अभ्यास कर,
तू होगा सफल, विश्वास कर...
#अभ्यासकर #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
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सुप्रभात। अभ्यास का अभ्यास कर, तू होगा सफल, विश्वास कर... #अभ्यासकर #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi

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N

निरंतर  हर  प्रयास  कर।

ना ख़ुद को यूँ निराश कर 
तू होगा सफल विश्वास कर। सुप्रभात।
अभ्यास का अभ्यास कर,
तू होगा सफल, विश्वास कर...
#अभ्यासकर #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi

सुप्रभात। अभ्यास का अभ्यास कर, तू होगा सफल, विश्वास कर... #अभ्यासकर #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi

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arrey.oh.chachu

Aur abhyaas ke pasine chuda do
Aur takh ke abhyaas khud puchey
Bol teri razaa kyaa hai सुप्रभात।
अभ्यास का अभ्यास कर,
तू होगा सफल, विश्वास कर...
#अभ्यासकर #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi

सुप्रभात। अभ्यास का अभ्यास कर, तू होगा सफल, विश्वास कर... #अभ्यासकर #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi

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R.S. Meena

सफ़लता दस्तक देगी तेरे दर।
मुश्किलों से जरा सा भी ना डर,
भर उड़ान, पर रख नजर डगर पर। सुप्रभात।
अभ्यास का अभ्यास कर,
तू होगा सफल, विश्वास कर...
#अभ्यासकर #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine
Collaborating with YourQuote Didi #rs

सुप्रभात। अभ्यास का अभ्यास कर, तू होगा सफल, विश्वास कर... #अभ्यासकर #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi rs #rsmalwar

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Adarsh Sinha

हर संयम प्रयास करो
किसी भी चीज़ में
पक्का होना चाहते हो
तो हर सत्र अभ्यास करो #अभ्यास
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Ravi gour

इरादा  🌹
मुझे एक किताब मिली जिसका नाम था
"किसी भी काम में सबसे अच्छा कैसे बने"
उस किताब में केवल एक पेज था जिसमे केवल एक शब्द लिखा था.
👇👇
✅ अभ्यास ✅

©Ravi gour #अभ्यास
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RITIK RAJPUT

जब सरल स्वभाव का पानी अपने प्रभाव

 से रास्ता बना सकता है और

पत्थर कठोर प्रभाव से रत्न बना सकता है....

      


                                        राधे राधे🙏 #अभ्यास
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kumar vishesh

करत करत अभ्यास के
जड़मति होत सुजान
रसरी आवत जात है
सिल पर परत निशान
 #NojotoQuote अभ्यास

अभ्यास

5 Love

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Mayank Shukla

रास्ता हमने सिर्फ नक़्शे पर ख़रीदा है मकान
तुम्हारे सामने पूरी सोसाइटी जगमगा रही है। #अभ्यास
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somnath gawade

अभ्यासाचा 'आभास'
निर्माण करणारा
'नापास' झाल्यावरच
पकडला जातो.😂🤣 #अभ्यास
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HP

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता
जीव की शारीरिक स्थिति पर विचार करें तो प्रत्यक्षतः यह देखने में आता है कि दो शक्तियाँ अवस्थित हैं। प्रथम पञ्चधा प्रकृति—जिससे हाथ, पाँव, पेट, मुँह, आँख, कान, दाँत आदि शरीर का स्थूल कलेवर बनकर तैयार होता है। इस निर्जीव तत्व की शक्ति और अस्तित्व का भी अपना विशिष्ट विधान है जो भौतिक विज्ञान के रूप में आज सर्वत्र विद्यमान है। जड़ की परमाणविक शक्ति ने ही आज संसार में तहलका मचा रखा है जबकि उसके सर्गाणुओं, कर्षाणुओं, केन्द्रपिण्ड (न्यूक्लिअस) आदि की खोज अभी भी बाकी है। यह सम्पूर्ण शक्ति अपने आप में कितनी प्रबल होगी इसकी कल्पना करना भी कठिन है। द्वितीय—शरीर में सर्वथा स्वतन्त्र चेतन शक्ति , भी कार्य कर रही है जो प्राकृतिक तत्वों की अपेक्षा अधिक शक्तिमान मानी गई है। यह चेतन तत्व संचालक है, इच्छा कर सकता है, योजनायें बना सकता है, अनुसन्धान कर सकता है इसलिये उसका महत्व और भी बढ़-चढ़कर है। हिन्दू ग्रन्थों में इस सम्बन्ध में जो गहन शोधों के विवरण हैं वे चेतन शक्ति की आश्चर्यजनक शक्ति प्रकट करते हैं। इतना तो सभी देखते हैं कि संसार में जो व्यापक क्रियाशीलता फैली हुई है वह इस चेतना का ही खेल है। इसके न रहने पर बहुमूल्य, बहु शक्ति -सम्पन्न और सुन्दर शरीर भी किसी काम का नहीं रह जाता। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

10 Love

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HP

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता
जीवधारियों के शरीर में व्याप्त इस चेतना का ही नाम आत्मा है। सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, ज्ञान तथा प्रयत्न उसके धर्म और गुण हैं। न्याय और वैशेषिक दर्शनों में आत्मा के रहस्यों पर विशद प्रकाश डाला गया है और उसे परमात्मा का अंश बताया गया है। यह आत्मा ही जब सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष आदि विकारों का त्याग कर देती है तो वह परमात्म-भाव में परिणित हो जाता है।

आज भौतिक विचारधारा के लोग इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं होते। उनकी दृष्टि में शरीर और आत्मा में कोई भेद नहीं है। इतना तो कोई साधारण बुद्धि का व्यक्ति भी आसानी से सोच सकता है कि जब उसके हृदय में ऐसे प्रश्न उठते रहते हैं—’मैं कौन हूँ’, ‘मैं कहाँ से आया हूँ’, ‘मेरा स्वरूप क्या है’, ‘मेरे सही शरीर-धारण का उद्देश्य क्या है’ आदि। ‘मैं यह खाऊँगा’, ‘मुझे यह करना चाहिए, ‘मुझे धन मिले’—ऐसी अनेक इच्छायें प्रतिक्षण उठती रहती हैं। यदि आत्मा का प्रथम अस्तित्व न होता तो मृत्यु हो जाने के बाद भी वह ऐसी स्वानुभूतियाँ करता और उन्हें व्यक्त करता। मुख से किसी कारणवश बोल न पाता तो हाथ से इशारा करता, आँखें पलक मारती, भूख लगती, पेशाब होती। पर ऐसा कभी होता नहीं देखा गया। मृत्यु होने के बाद जीवित अवस्था की सी चेष्टायें आज तक किसी ने नहीं कीं, आत्मा और शरीर दो विलग वस्तुयें—दो विलग तत्व होने का यही सबसे बड़ा प्रमाण है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

8 Love

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HP

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता
जीवधारियों के शरीर में व्याप्त इस चेतना का ही नाम आत्मा है। सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, ज्ञान तथा प्रयत्न उसके धर्म और गुण हैं। न्याय और वैशेषिक दर्शनों में आत्मा के रहस्यों पर विशद प्रकाश डाला गया है और उसे परमात्मा का अंश बताया गया है। यह आत्मा ही जब सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष आदि विकारों का त्याग कर देती है तो वह परमात्म-भाव में परिणित हो जाता है।

आज भौतिक विचारधारा के लोग इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं होते। उनकी दृष्टि में शरीर और आत्मा में कोई भेद नहीं है। इतना तो कोई साधारण बुद्धि का व्यक्ति भी आसानी से सोच सकता है कि जब उसके हृदय में ऐसे प्रश्न उठते रहते हैं—’मैं कौन हूँ’, ‘मैं कहाँ से आया हूँ’, ‘मेरा स्वरूप क्या है’, ‘मेरे सही शरीर-धारण का उद्देश्य क्या है’ आदि। ‘मैं यह खाऊँगा’, ‘मुझे यह करना चाहिए, ‘मुझे धन मिले’—ऐसी अनेक इच्छायें प्रतिक्षण उठती रहती हैं। यदि आत्मा का प्रथम अस्तित्व न होता तो मृत्यु हो जाने के बाद भी वह ऐसी स्वानुभूतियाँ करता और उन्हें व्यक्त करता। मुख से किसी कारणवश बोल न पाता तो हाथ से इशारा करता, आँखें पलक मारती, भूख लगती, पेशाब होती। पर ऐसा कभी होता नहीं देखा गया। मृत्यु होने के बाद जीवित अवस्था की सी चेष्टायें आज तक किसी ने नहीं कीं, आत्मा और शरीर दो विलग वस्तुयें—दो विलग तत्व होने का यही सबसे बड़ा प्रमाण है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

8 Love

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HP

जीव की शारीरिक स्थिति पर विचार करें तो प्रत्यक्षतः यह देखने में आता है कि दो शक्तियाँ अवस्थित हैं। प्रथम पञ्चधा प्रकृति—जिससे हाथ, पाँव, पेट, मुँह, आँख, कान, दाँत आदि शरीर का स्थूल कलेवर बनकर तैयार होता है। इस निर्जीव तत्व की शक्ति और अस्तित्व का भी अपना विशिष्ट विधान है जो भौतिक विज्ञान के रूप में आज सर्वत्र विद्यमान है। जड़ की परमाणविक शक्ति ने ही आज संसार में तहलका मचा रखा है जबकि उसके सर्गाणुओं, कर्षाणुओं, केन्द्रपिण्ड (न्यूक्लिअस) आदि की खोज अभी भी बाकी है। यह सम्पूर्ण शक्ति अपने आप में कितनी प्रबल होगी इसकी कल्पना करना भी कठिन है। द्वितीय—शरीर में सर्वथा स्वतन्त्र चेतन शक्ति , भी कार्य कर रही है जो प्राकृतिक तत्वों की अपेक्षा अधिक शक्तिमान मानी गई है। यह चेतन तत्व संचालक है, इच्छा कर सकता है, योजनायें बना सकता है, अनुसन्धान कर सकता है इसलिये उसका महत्व और भी बढ़-चढ़कर है। हिन्दू ग्रन्थों में इस सम्बन्ध में जो गहन शोधों के विवरण हैं वे चेतन शक्ति की आश्चर्यजनक शक्ति प्रकट करते हैं। इतना तो सभी देखते हैं कि संसार में जो व्यापक क्रियाशीलता फैली हुई है वह इस चेतना का ही खेल है। इसके न रहने पर बहुमूल्य, बहु शक्ति -सम्पन्न और सुन्दर शरीर भी किसी काम का नहीं रह जाता। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

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HP

आज भौतिक विचारधारा के लोग इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं होते। उनकी दृष्टि में शरीर और आत्मा में कोई भेद नहीं है। इतना तो कोई साधारण बुद्धि का व्यक्ति भी आसानी से सोच सकता है कि जब उसके हृदय में ऐसे प्रश्न उठते रहते हैं—’मैं कौन हूँ’, ‘मैं कहाँ से आया हूँ’, ‘मेरा स्वरूप क्या है’, ‘मेरे सही शरीर-धारण का उद्देश्य क्या है’ आदि। ‘मैं यह खाऊँगा’, ‘मुझे यह करना चाहिए, ‘मुझे धन मिले’—ऐसी अनेक इच्छायें प्रतिक्षण उठती रहती हैं। यदि आत्मा का प्रथम अस्तित्व न होता तो मृत्यु हो जाने के बाद भी वह ऐसी स्वानुभूतियाँ करता और उन्हें व्यक्त करता। मुख से किसी कारणवश बोल न पाता तो हाथ से इशारा करता, आँखें पलक मारती, भूख लगती, पेशाब होती। पर ऐसा कभी होता नहीं देखा गया। मृत्यु होने के बाद जीवित अवस्था की सी चेष्टायें आज तक किसी ने नहीं कीं, आत्मा और शरीर दो विलग वस्तुयें—दो विलग तत्व होने का यही सबसे बड़ा प्रमाण है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

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HP

जीवधारियों के शरीर में व्याप्त इस चेतना का ही नाम आत्मा है। सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, ज्ञान तथा प्रयत्न उसके धर्म और गुण हैं। न्याय और वैशेषिक दर्शनों में आत्मा के रहस्यों पर विशद प्रकाश डाला गया है और उसे परमात्मा का अंश बताया गया है। यह आत्मा ही जब सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष आदि विकारों का त्याग कर देती है तो वह परमात्म-भाव में परिणित हो जाता है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

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HP

कुछ दिन पूर्व इस बात को लेकर वैज्ञानिकों में काफी लम्बी चर्चा चली थी और आत्मा के अस्तित्व सम्बन्धी उनके मत लिए गए थे जिन्हें सामूहिक रूप से ‘दो ग्रेट डिजाइन’ नामक पुस्तक में प्रकाशित किया गया है। पुस्तक में उपसंहार करते हुए लिखा गया है—

‘यह संसार कोई आकस्मिक घटना नहीं लगता है। इसके पीछे कोई सुनियोजित विधान चल रहा है। एक मस्तिष्क, एक चेतन-शक्ति काम कर रही है। अपनी-अपनी भाषा में उसका नाम चाहे कुछ रख लिया जाय पर वह मनुष्य की आत्मा ही है।’

इसके अतिरिक्त जे. एन. थामसन, जे. बी. एम. हेल्डन, पी. गोइडेस, आर्थर एच. काम्पटन, सर जेम्स जोन्स आदि वैज्ञानिकों ने भी आत्मा के अस्तित्व में सहमति प्रकट की है। उसके प्रत्यक्ष ज्ञान के साधनों का पाश्चात्य देशों में भले ही अभाव हो, पर विचार और बुद्धिशील मनुष्य के लिए यह अनुभव करना कठिन नहीं है कि यह जगत केवल वैज्ञानिक तथ्यों तक सीमित नहीं वरन् उन्हें नियन्त्रित करने वाली कोई चेतना भी अवश्य काम कर रही है और उसे जानना मनुष्य के लिए बहुत आवश्यक है।

शास्त्रीय कथानकों के माध्यम से आत्मा के अस्तित्व, गुणों और क्रियाओं के सम्बन्ध में बड़ी ही ज्ञानपूर्ण चर्चायें की गई हैं। ऐसे कथानकों में नारद, ध्रुव आदि के वार्तालाप के साथ राजा चित्रकेतु की कथा भी बड़ी शिक्षाप्रद और वास्तविक तथ्यों से ओत प्रोत है।

चित्रकेतु एक राजा था जिसे महर्षि अंगिरा की कृपा से एक सन्तान प्राप्त हुई थी। बच्चा अभी किशोर ही था कि उसकी मृत्यु हो गई। राजा पुत्र-वियोग से बड़ा व्याकुल हुआ। अन्त में ऋषिदेव उपस्थित हुए और उन्होंने दिवंगत आत्मा को बुलाकर शोकातुर राजा से वार्तालाप कराया। पिता ने पुत्र से लौटने के लिए कहा तो उसने जवाब दिया, ‘ए जीव! मैं न तेरा पुत्र हूँ और न तू मेरा पिता है। हम सब जीव कर्मानुसार भ्रमण कर रहे हैं। तू अपनी आत्मा को पहचान। हे राजन् ! इसी से तू साँसारिक संतापों से छुटकारा पा सकता है।’ अपने पुत्र के इस उपदेश से राजा आश्वस्त हुआ और शेष जीवन उसने आत्म-कल्याण की साधना में लगाया। राजा चित्रकेतु अन्त में आत्म-ज्ञान प्राप्त कर जीवन-मुक्त हो गया।

यह आत्मा अनेक योनियों में भ्रमण करती हुई मनुष्य जीवन में आती है। ऐसा संयोग उसे सदैव नहीं मिलता। शास्त्रीय अथवा विचार की भाषा में इतना तो निश्चय ही कहा जा सकता है कि जीवों की अपेक्षा मनुष्य को जो श्रेष्ठताएँ उपलब्ध है वे किसी विशेष प्रयोजन के लिए ही हैं जो आत्मज्ञान या अपने आपको जानना ही हो सकता है, आत्मज्ञान ही मनुष्य-जीवन का लक्ष्य है जिससे वह जीवभाव से मुक्त होकर ईश्वरीय भाव में लीन हो जाता है। आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

आत्म-सत्ता और उसकी महान् महत्ता

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Ranjeet Singh Parmar

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अभ्यास

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