वो हम-सफ़र था मगर उस से हम-नवाई न थी
कि धूप छाँव का आलम रहा जुदाई न थी
बिछड़ते वक़्त उन आँखों में थी हमारी ग़ज़ल
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी #कविता#holdinghands
حسن والوں کی خودنمائی نے،
توڑ ڈالے ہیں کتنے آئینے۔۔
हुस्न वालों की ख़ुद-नुमाई ने,
तोड़ डाले हैं कितने आईने..
کتنے دیرو حرم بنا ڈالے،
اک مرے #lost#gazal#urdupoetry#zohaib_amber