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Lohit Tamta

अगर तुम साथ हो मेरे वहाँ ग़मों का काम थोड़ी है, जहाँ है तुम्हारी नज़्में तो वहाँ गजलों का सहारा थोड़ी है, जो तुम्हारी कविताओं से मिलती है वो हिम #SunSet #ज़िन्दगी

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अगर तुम साथ हो मेरे वहाँ ग़मों का काम थोड़ी है,
जहाँ है तुम्हारी नज़्में तो वहाँ गजलों का सहारा थोड़ी है,
जो तुम्हारी कविताओं से मिलती है वो हिम्मत आम थोड़ी है,
कह नहीं पता हूँ कुछ तुमसे पर अपनी कविताओं में बयां सब कर जाता हूँ,
क्योंकि तुम्ही से सीखा है कवितायें अक्सर सब बयां कर देती है।

©Lohit Tamta अगर तुम साथ हो मेरे वहाँ ग़मों का काम थोड़ी है,
जहाँ है तुम्हारी नज़्में तो वहाँ गजलों का सहारा थोड़ी है,
जो तुम्हारी कविताओं से मिलती है वो हिम

Lohit Tamta

क्या गम है जो तुझे खा रहा है, क्यों तेरी आँखे आज नम है, जो है सैलाब तेरे दिल में आ कह दे फ़िर मुझसे, सिर्फ़ तेरा यार नहीं तेरा भाई हूँ मैं, सु #Poetry

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मुश्किल घड़ी और दोस्त क्या गम है जो तुझे खा रहा है,
क्यों तेरी आँखे आज नम है,
जो है सैलाब तेरे दिल में आ कह दे फ़िर मुझसे,
सिर्फ़ तेरा यार नहीं तेरा भाई हूँ मैं,
सुख और दुख दोनों में तेरे साथ हूँ मैं,
ये एक काली रात है गुज़ार जायेगी, हिम्मत रख मेरे भाई खुशियां वापस आएंगी,
यूँ तो लड़ाई तू खुद अंदर ही अंदर लड़ रहा है पर घबराता क्यों है जब तेरा भाई तेरे साथ खड़ा है,
जो गया उसे अब जाने दे, क्यों अब आधा सा रिश्ता लिए घूम रहा है,
वो दो पल का साथी था वो चला गया, अब क्यों उसके पीछे जाना है,
ज़िन्दगी और अपनों के ख़ातिर तुझको वापस लौट कर आना है,
चल बैठ मेरे साथ हाथों में ले कर जाम,
याद करेंगें वो मस्ती भरे दिन और वो समंर की शाम,
अब मुस्कुरा खुल के और जी ले ये ज़िन्दगी आज़ादी से मेरी जान।

©Lohit Tamta क्या गम है जो तुझे खा रहा है,
क्यों तेरी आँखे आज नम है,
जो है सैलाब तेरे दिल में आ कह दे फ़िर मुझसे,
सिर्फ़ तेरा यार नहीं तेरा भाई हूँ मैं,
सु

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#नोबेल_विजेता_रवींद्रनाथ_टैगोर_कृत ऐकला_चोलो_रे.... (Hindi version) तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे फिर चल अकेला... चल अकेला.

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#नोबेल_विजेता_रवींद्रनाथ_टैगोर_कृत 
ऐकला_चोलो_रे.... (Hindi version)

तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे
फिर चल अकेला... चल अकेला... चल अकेला... चल अकेला रे 
ओ तू चल अकेला.... चल अकेला... चल अकेला... चल अकेला रे

तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे
फिर चल अकेला... चल अकेला... चल अकेला ... चल अकेला रे

यदि कोई भी ना बोले ओरे ओ रे ओ अभागे कोई भी ना बोले
यदि सभी मुख मोड़ रहे सब डरा करे
तब डरे बिना ओ तू मुक्तकंठ अपनी बात बोल अकेला रे
ओ तू मुक्तकंठ अपनी बात बोल अकेला रे

तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे

यदि लौट सब चले ओरे ओ रे ओ अभागे लौट सब चले
यदि रात गहरी चलती कोई गौर ना करे
तब पथ के कांटे ओ तू लहू लोहित चरण तल चल अकेला रे

तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे

यदि दिया ना जले ओरे ओ रे ओ अभागे दिया ना जले
यदि बदरी आंधी रात में द्वार बंद सब करे
तब वज्र शिखा से तू ह्रदय पंजर जला और जल अकेला रे
ओ तू हृदय पंजर चला और जल अकेला रे

तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो फिर चल अकेला रे
फिर चल अकेला चल अकेला चल अकेला चल अकेला रे
ओ तू चल अकेला ....चल अकेला... चल अकेला ...चल अकेला रे #नोबेल_विजेता_रवींद्रनाथ_टैगोर_कृत 
ऐकला_चोलो_रे.... (Hindi version)

तेरी आवाज़ पे कोई ना आये तो 
फिर चल अकेला रे फिर चल अकेला... चल अकेला.

Divya Prakash Singh

रात्रि की व्यथा भोर का समय, इस धरा से लौट रही, वो रात्रि सुंदरी, काली सी, धीरे धीरे, नदीं के तीरे, छट गया अब कोहरा, #nojotohindi

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रात्रि की व्यथा
पूरी रचना कैप्सन में पढ़ें। #NojotoQuote रात्रि की व्यथा
भोर का समय,
इस धरा से लौट रही,
वो रात्रि सुंदरी,
काली सी,
धीरे धीरे,
नदीं के तीरे,
छट गया अब कोहरा,

Lohit Tamta

बीते दिनों से कुछ ख़ास हुआ है, तेरा नाम मेरे लिए अब आम हुआ है, कुछ ऐसा एजाज़ हुआ तेरा मेरे ख़्वाबों में आने का सिलसिला अब ख़त्म हुआ है, मेरे चहर #Poetry

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बीते दिनों से कुछ ख़ास हुआ है,
तेरा नाम मेरे लिए अब आम हुआ है,
कुछ ऐसा एजाज़ हुआ तेरा मेरे ख़्वाबों में आने का सिलसिला अब ख़त्म हुआ है,
मेरे चहरे में मुस्कान फ़िर से आने लगी है, ज़िन्दगी वापस गुन-गुनाने लगी है,
रात अब खौफ़ नहीं ख़्वाब देने लगी है,
और सुबह की किरण फ़िर से उगने की मुझे उम्मीद देने लगी है,
माँ का लाड़ला बेटा फ़िर से बनने लगा हूँ, वक़्त के साथ-साथ अब खुद पे ध्यान देने लगा हूँ,
तेरे लौट के आने के ख़याल अब मुझे सताते नहीं है,
तेरी याद में आँसू अब आते नहीं है,
तेरा नंबर अब मेरे फ़ोन में नहीं है, और वो तेरी ढ़ेर सारी तस्वीरें अब गैलेरी में नहीं है,
तेरे दिए हुए तोफों को जला दिया हूँ, उनकी रख को पहाड़ों में उड़ा दिया हूँ,
देख ज़िन्दगी के ख़ातिर आज फ़िर से अपने पैरों में चलने लगा हूँ,
बैसाखी का सहारा छोड़ अब फ़िर से दौड़ने लगा हूँ,
कुछ यूँ सा मेरे साथ एजाज़ हुआ है,
बीते दिनों से कुछ ख़ास हुआ है।

©Lohit Tamta बीते दिनों से कुछ ख़ास हुआ है,
तेरा नाम मेरे लिए अब आम हुआ है,
कुछ ऐसा एजाज़ हुआ तेरा मेरे ख़्वाबों में आने का सिलसिला अब ख़त्म हुआ है,
मेरे चहर

Lohit Tamta

मेरा भी घर था, मेरा भी परिवार था, मेरी भी एक मोहब्बत थी जिससे मुझे बेइंतहा प्यार था, मेरी भी एक दास्ताँ थी, शुरू हुई जवानी थी, पहाड़ों की वाद #Poetry

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मेरा भी घर था, मेरा भी परिवार था,
मेरी भी एक मोहब्बत थी जिससे मुझे बेइंतहा प्यार था,
मेरी भी एक दास्ताँ थी, शुरू हुई जवानी थी,
पहाड़ों की वादियों में छुपी मेरी भी एक कहानी थी,
हँस-मुख सा चंचल मैं मस्त मगन रहता था, एक लेखक बनने की चाहत को दिल में लिए फिरता था,
मगर अपने पिता और दादा जी जैसा फ़ौजी बनने का जुनून मेरी चाहत से ज्यादा था,
18 साल की उम्र में मेरे घर एक चिट्टी आई मेरी माँ और घर से दूर वो मुझे खिंच लाई,
4 साल की ट्रेनिंग में माँ और घर की याद बहुत सताई,
फ़िर कंधों में 2 सितारे ऐसे चमके, आसमान के हज़ारों सितारे भी उनके सामने फिके लगे,
अफसर बन के ठाट की ज़िन्दगी अगर बिताता तो पिता के वचन का मूल कैसे चुकाता,
उनकी तस्वीर को किसी फूल की माला से नहीं आने मैडल से जो सजाना था, अपने आप से किया ये मैंने ये वादा था,
उनकी तरह मैंने भी बलिदान के शब्द को पहचाना था,
लेके अपना बस्ता कमांडो ट्रेनिंग स्कूल बढ़ चला,
कीचड़ के पानी से मेरा स्वागत हुआ, फ़िर अपने एक पसंदीदा हथियार को मैंने चुना,
7 दिन तक भूखा-प्यासा बस दौड़ता रहा, 6 महीने की वो कठोर परीक्षा के बाद 9 पैरा स.फ के बलिदान बैज को हासिल किया,
अब मुझको राण भूमि में जाना था क़र्ज़ था जो देश का मुझपे वो चुकाना था,
मणिपुर में मेरी पहली पोस्टिंग और माँ का वो काँप जाना था, ज़िंदा लौटूंगा माँ ये झूठा वादा माँ से करना मेरा आम था,
यूँ तो जब-जब मैं सरहद पे जाता एक तस्वीर बट्वे से निकल के उसे बात करने लग जाता, इश्क़ था अधूरा मेरा बच्पन का प्यार था सोच के उसके बारे में आँसू चुपके से बहता था,
आँसू जब भी आते थे तो कभी 0डिग्री में जम जाते या तो 50 में सुख जाते थे,
जब कभी छुट्टी में घर जाता एक इमरजेंसी कॉल आ जाता, जंग के लिए फ़िर से मैं सज्ज हो जाता,
शादी की तारीख नज़दीक थी मेरी उस रोज़ भी ऐसा ही कॉल आया था,
युद्ध भूमि में मुझे टीम लीड करने को बुलाया था,
सीने में 2 गोली और पैर में 4 खा के भी मैंने दुश्मन को मार गिराया था,
आज अपने पिता की फोटो को मैंने अपने मेडल्स से सजाया है,
क्योंकि राण भूमि में मैंने भी अपना रक्त बहाया है,
आज ज़िस्म में वर्दी नहीं है तो क्या हुआ गोलियों के निशा को मैंने अपने जिस्म में शौर्य की तरह सजाया है।

©Lohit Tamta मेरा भी घर था, मेरा भी परिवार था,
मेरी भी एक मोहब्बत थी जिससे मुझे बेइंतहा प्यार था,
मेरी भी एक दास्ताँ थी, शुरू हुई जवानी थी,
पहाड़ों की वाद
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