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Binod Kumar Giri
भीड़ भरी रास्ता कुछ पल की मंजिल देती हैं क्यों कि हर भीड़ में दिखने वाला हमेशा अकेला ही चला था। विनोद कुमार गिरि
Binod Kumar Giri
Safar माना कि जिंदगी के रास्ते अपने वास्ते नहीं चलते लेकिन मेरे जीने का अंदाज़ भी तेरे वास्ते नहीं बदलते कुछ राज है तेरे आज भी जो तेरे जाने की बाद भी नहीं सुलझे। विनोद कुमार गिरि
Binod Kumar Giri
ख़ूबसूरत रामदरश मिश्र » बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे, खुले मेरे ख़्वाबों के पर धीरे-धीरे। किसी को गिराया न ख़ुद को उछाला, कटा ज़िंदगी का सफ़्रर धीरे-धीरे। जहाँ आप पहुँचे छ्लांगे लगाकर, वहाँ मैं भी आया मगर धीरे-धीरे। पहाड़ों की कोई चुनौती नहीं थी, उठाता गया यूँ ही सर धीरे-धीरे। न हँस कर न रोकर किसी में उडे़ला, पिया खुद ही अपना ज़हर धीरे-धीरे। गिरा मैं कहीं तो अकेले में रोया, गया दर्द से घाव भर धीरे-धीरे। ज़मीं खेत की साथ लेकर चला था, उगा उसमें कोई शहर धीरे-धीरे। मिला क्या न मुझको ए दुनिया तुम्हारी, मोहब्बत मिली, मगर धीरे-धीरे। विनोद कुमार गिरि
Binod Kumar Giri
आँखों से ओझल हो गया टूटा हुआ कोई तारा था, उम्मीद तो बहुत थीं तुझसे लेकिन तू तो समंदर सा किनारा था दो पल ही जी सकता हूं तेरे संग क्यू कि हर नदियों को मिलना किसको गवारा था। विनोद कुमार गिरि
Binod Kumar Giri
जब दिल को पता हैं हर दौर गुजरता हुआ चला जायेगा फ़िर आशियाना हर दौर में बनाएं चलेजाते जाते हैं। विनोद कुमार गिरि
Aditya pawan kumar
केवल स्वयं की आँखे से संसार को देखना बाकी अन्य को अंधा समझने जैसा है ©pawan kumar पवन कुमार
Pawan Kumar
हंसी आपकी कोई चुरा ना पाए कभी कोई आपको कोई रुला ना पाए खुशियों के दीप ऐसे जले जिंदगी में कोई भी तूफान उसे बुझा ना पाए ©Pawan Kumar पवन कुमार
पवन कुमार बैरवा
खत लिखती हू सांई से कुछ और मत समझना सिर्प आपकी साली हू घरवाली मत समझना आशी कुमारी पवन कुमार