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Kuldeep Singh Ruhela
#ताज़ा ग़ज़ल 🌷🌿 मोहब्बत में ऐसा दिवाना हुआ दिल कि मुझसे ही मेरा बेगाना हुआ दिल ये देखे है सपना सुहाना-सुहाना चलो अब मिरा भी सुहाना हुआ दिल मोहब्बत भरे गीत है गाता फिरता बहुत आजकल आशिक़ाना हुआ दिल मोहब्बत में करने लगा शायरी भी छबीला बड़ा शायराना हुआ दिल बड़ी क़ातिलाना निगाहें हैं उसकी है जिसकी नज़र से निशाना हुआ दिल जुदाई, तड़प, रतजगे, बेक़रारी इन्हीं का तो अब ये ठिकाना हुआ दिल गया था मुझे छोड़ के पास उनके तो फिर क्यों तिरा लौट आना हुआ दिल ख़्यालों में उनके तू बेसुध पड़ा है तू है ख़ैर से या रवाना हुआ दिल कब आती थी इसको मोहब्बत समझ में लगी चोट तब ये सयाना हुआ दिल !! #Chand_tuta_tara_pighla #ताज़ा ग़ज़ल 🌷🌿 मोहब्बत में ऐसा दिवाना हुआ दिल कि मुझसे ही मेरा बेगाना हुआ दिल ये देखे है सपना सुहाना-सुहाना चलो अ
यशवंत कुमार
तुम्हें ढ़ूँढ़ता हूँ मैं रंग-रंगीला होकर तुम्हें ढ़ूँढ़ता हूँ, मैं छैल-छबीला होकर तुम्हें ढ़ूँढ़ता हूँ, तु है कि जर्रे-जर्रे में समायी है; मैं भीड़ में अकेला होकर तुम्हें ढ़ूँढ़ता हूँ!! मौज़ूदगी तेरे अक्स की हर ओर पाता हूँ, मैं पागल हवा संग बहता जाता हूँ, तु पल-पल, नए-नए स्वांग रचती है; मैं आशिक़ अलबेला होकर तुम्हें ढ़ूँढ़ता हूँ!! अनजानी राहों पर बढ़ता जाता हूँ, कितने ही सपने मैं गढ़ता जाता हूँ, तपिश तेरी जुदाई की इतनी ज़्यादा है; मैं अंग-अंग गीला होकर तुम्हें ढ़ूँढ़ता हूँ!! मेरी हर ख़्वाहिश का वज़ूद तु है, मेरी बढ़ती बेसब्री का राज़ तु है, चिंगारी भड़काई है तुमने शमा बनकर मुझमें; और अब मैं शोला होकर तुम्हें ढ़ूँढ़ता हूँ!! तुम्हें ढ़ूँढ़ता हूँ मैं रंग-रंगीला होकर तुम्हें ढ़ूँढ़ता हूँ, मैं छैल-छबीला होकर तुम्हें ढ़ूँढ़ता हूँ, तु है कि जर्रे-जर्रे में समायी है;
भाग्य श्री बैरागी
अतरंगी दुनिया में सतरंगी सी होली है, रंग पैसों का सब पे चढ़ा ऐसे भी रंग हैं, गरीबी में कहाॅं पैसों में ही सब संग हैं। सबके हो जाने में प्यारी नारी भी रंगी है, शर्म, अनुशासन और सुहाग का भी रंग है, वो दहलीज़ न लाॅंघे तब तक सब संग हैं। घर ने भी तो कई रंगों में होली खेली है, सुख-दुःख के साथी में भी तो कई रंग हैं, धूप बरसात से बचाता बरसो से संग है। प्रकृति ने भी बरसों से कई रंग बिछाए हैं, सावन हरा,पतझड़ पीला,धनुष सात रंग हैं, बसंत बहार रंगमई कई भावनाओं संग हैं। (कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें) अतरंगी दुनिया में सतरंगी सी होली है, रंग पैसों का सब पे चढ़ा ऐसे भी रंग हैं, गरीबी में कहाॅं पैसों में ही सब संग हैं। सबके हो
Anita Saini
इश्क़ देश धर्म से ताल्लुक नहीं रखता लोग बाँट देते हैं धर्म जाति कबीलों में! जो करते हैं सबसे ज़्यादा मुख़ालफ़त वही लोग गिने जाते हैं सेठ नबीलों में! मोहब्बत अक्लमंदों का काम नहीं है बेकार फ़ालतू की चीज़ है अक़ीलों में! पाकीज़ा इश्क़ की दास्ताँ अब सिमटकर रह गई है काग़ज़ी तपसरा तफ़सीलो में! ख़ैर अब मोहब्बत जिस्मानी हो गई है बैर करा देती है अच्छे अच्छे ख़लिलों में! पाकीज़ा मोहब्बत का दम तो भरते हैं मगर कोई एक संजीदा होता है सैंकड़ों छबीलों में! जब हो जाता है किसी से इश्क़ रूहानी,वो कहाँ क़ैद होता है रिवायतों की फ़सीलों में! भरोसा हो तो हवाओं में चराग जल उठते हैं बूँद तेल में भी लौ जल उठती है कंदीलों में! उसका ख़ुद ख़ुदा रखवाला हो जाता है जिसकी ख़ैरियत की दुआएँ माँगी गई हो नफ़ीलों में! अक़ील-बुद्विमान, नबील-महान, उदार ख़लिल-सच्चा दोस्त,फ़सील-चारदीवारी नफ़ील-एक नमाज़ छबीला-नौजवान कंदील-लालटेन या दीया इश्क़ देश धर्म से ताल्लुक नह
MohiniGupta
मैं समय हूँ। (poem read in caption) मैं समय हूँ, ब्रह्मांड को पहली रचना हूँ, पृथिवी की संरचना हूँ, पहले बीज का पहला कोपल हूँ, समुद्र की पहली हलचल हूँ। मैं भूत वर्त भविष्य हूँ,