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राघव_रमण (R.J)..
ज' कही हम मिथिला घुमब पिया घुमायब कोना अहां से त' कहु।। षड्दर्शन के टीका जतय सं निकलय वेद वेदांग के धुन जतय सं बहय ज' कही हम एकरा पढवै पिया पढायब कोना अहां से त' कहु।। टाट तिलकोर सीम भरल छल जतय चार पर सजमैन आ कदीमा फरल ज' कही हम ई सब खायब पिया खुआयब कोना अहां से त' कहु।। भोर पराती गावैत मैया उठल दिन नचारी सुनावैत देव पुजल ज' कही हम ई सब सीखब पिया सीखायब कोना अहां से त' कहु।। सब मिलि क रहैत छल एकहि आंगन माय बाबु के पूजैत चरण पावन ज' कही हम संगहि पूजब पिया पूजायब कोना अहां से त' कहु। आब बदलि गेल देखु अपन मिथिला संस्कार बदलल भेल अबला मातृभाषा अपन पूत बाजत पिया बजायब कोना अहां से त' कहु।। ज' कही हम मिथिला घुमब पिया घुमायब कोना अहां से त' कहु।। © राघव रमण 28/11/19 ज' कही हम मिथिला घुमब पिया घुमायब कोना अहां से त' कहु।। षड्दर्शन के टीका जतय सं निकलय वेद वेदांग के धुन जतय सं बहय ज' कही हम एकरा पढवै पिय
sandy
‘‘उठा, उठा.. दिवाळी आली, मोती स्नानाची वेळ झाली..’ हा हा म्हणता दिवाळी जवळ आली पण असं वाटतच नाही. थंडीचा कुठे पत्ता नाही उलट पाऊस कधीही कोस
yogesh atmaram ambawale
लहानपणीच्या दिवाळीत आणि आत्ताच्या दिवाळीतला फरक... लहानपणी आम्ही रात्री १०/११ वाजेपर्यंत फटाके वाजवायचो आता रात्रभर फटाके फोडले जातात. (कैप्शन मध्ये वाचावे). प्रिय मित्र आणि मैत्रिणीनों आजचा विषय आहे लहानपणीच्या दिवाळीत आणि आताच्या दिवाळीतला फरक... वाढत चाललेले अंतर,नव-नव्या वस्तुत भरकटत चाललेलो
@lifehacks_quote
कितना अजीब धुआँ है ये सिर्फ पराली जले तो.. दिल्ली तक पहुँच जाता है सारी फसल जल जाये तो... तहसील तक नहीं पहुँच पाता. पराली #
संजय श्रीवास्तव
तुझ पर नहीं कोई अधिकार है, किसी और का तू अब प्यार है। इस गम से भी निकल जायेंगे- मुझे खुद पर सनम एतबार है।। परायी
Anand Kumar Ashodhiya
पाती मेरे पी की पाती मेरे पी की पिया से भी प्यारी पिया के ही प्यार कारन बनी तूँ हमारी बार-बार चूमूँ तोहे गले से लगाऊं प्राणप्यारी पाती कब पिया जी को पाऊं पिया बिन जिया मोरा मारे है उडारी पिया के ही प्यार कारन बनी तूँ हमारी तकिये के नीचे तेरी सेज बिच्छादूं ज़ुल्फों की छाँव करके आ तुझको सुलादूं लोरी गाऊं मीठी आए नींद की ख़ुमारी पिया के ही प्यार कारन बनी तूँ हमारी भोर भए तो तुझे वक्ष में छुपालुं दुनिया की जलती नज़र से बचालुं आ मेरे अँग लगजा तुझपे सारी ज़िन्दगी वारी पिया के ही प्यार कारन बनी तूँ हमारी जाने काहे फड़के आज़ मोरी बायीं अँखियाँ आये मोहे हिचकी तो ताना मारे सखियाँ राम करे पूरवैय्या ले आये खबर तुम्हारी पिया के ही प्यार कारन बनी तूँ हमारी पाती मेरे पी की पिया से भी प्यारी पिया के ही प्यार कारन बनी तूँ हमारी रचयिता : आनन्द कुमार आशोधिया कॉपीराइ ©Anand Kumar Ashodhiya #पाती
जगदीश निराला Jagdish Nirala
ईक चॉद सी थी वो बेदाग़ तारें सितारे से प्यारे बच्चें थे जब चँदा ही ना रहा तो. तारों को भी पिघलना ही था. बची रात कत़रे कत़रे सी टपक कर रोती रही. कोई नही आया ऑसूओं को पौंछने भौर जब हुई सभी कह रहे थे. बड़ी ही ग़मग़ीन रात थी डराती कंपकपाती फुकॉरती निशा! जगदीश निराला माँगरोल डराती रात