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Sudeshwar sah
इनका नाम सिहाब है ये केरल से पैदल मकका मदिना चल दिए है 3 जुन को जो फरवरी 2023 को पहुचेगा ©Sudeshwar Sah #मक़्का मदिना
Pragati Shukla
जो मैं कहुँ मैं सुरमा लगता हुँ, तो क्या तुम मुझे सहमी हुई आँखों से देखोगी? मुस्कुराते हुये लब फडफडाऐगे पर क्या अदंर हि अंदर तुम्हारी रूह काँपती होगी ? क्या मैं चंदन लगा आँऊ तो तुम मुझसे इजहार करोगी ,मेरे बालों को सँवारते हुए कनखियों से मेरे होठ़ निहारोगी | जो मैं कहुँ मेरा नाम अहमद हैं राम नहीं, मैं चादर चढाता हुँ, चुनरी नहीं। तो क्या तुम मुझसे नजरें चुरा लोगी ?अपनी गली में मुझे देखते ही घर का फटक बंद कर लोगी। फर जो मैं माता की चौकी का चंदा इकट्ठा करने आऊं, तो क्या तुम व्दार खोल स्वागत करोगी ? 101 का चढावा दे, मुझे दूर तक जाते हुए निहारोगी। क्या मेरा कौम ही बंधन हैं तुम्हरा,क्या मेरी रुह का कोइ मोल नही, माटी से हि बना हुँ, मक्का मदिना का मैं रेत नहीं । जो मैं कहुँ मैं सुरमा लगता हुँ, तो क्या तुम मुझे सहमी हुई आँखों से देखोगी? मुस्कुराते हुये लब फडफडाऐगे पर क्या अदंर हि अंदर तुम्हारी रूह काँ
Namit Raturi
तेरे चहरे पे भटक के आई तेरे बालों की दो लटाएं, मेरा मासूमियत से उंगलियों से तेरे कान के पिछे ले जाना, तेरे होठों के दरमियां घहराई मापति मेरी दो निगाहें, और फिर मुझे तरसाने के लिए तेरा होठों को दाँतों से दबाना, याद है ना? जिन साँसों पे कब्जा था,तेरे जिस्म की महक का, कैसे रिहा करुं उन साँसों को खुद से, तारों की छाया जो रंग जाति थी तुझे कनक सा, सोने की चमक देख जो बन जाते थे हम बुत से, याद है ना? तरुवर की छाया के निचे,वो हवाओं के जोर पे नाचते पत्ते, टूट कर फिर हवाओं मे हवाओं से बलखाते मचलते सरसराते, नजदिकियों को और नजदिक लाते वो रस्ते कच्चे, दूर तक पास होकर चलते,धिरे धिरे तुझमे समाते, याद है ना? मेरी इबादतों मे मेरी मन्नत थी तुम, मेरा हज मेरा मदिना थी तुम, मै जिहादी आशिक था,मेरी जन्नत थी तुम, मै डूबता अगर तन्हाई मे,मेरी सफ़िना थी तुम, याद है ना? तुम्हारा मकान था,तुमने ही जमींदोज़ किया, क्या क्या टूटा क्या क्या बचा, चलो छोडो अब जो दिल तोड दिया, बस इतना कह दो एक दफा, हाँ याद है ।। तेरे चहरे पे भटक के आई तेरे बालों की दो लटाएं, मेरा मासूमियत से उंगलियों से तेरे कान के पिछे ले जाना, तेरे होठों के दरमियां घहराई मापति मेरी