Nojoto: Largest Storytelling Platform

New रङ्ग Quotes, Status, Photo, Video

Find the Latest Status about रङ्ग from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, रङ्ग.

Related Stories

    PopularLatestVideo

Rk Chhetri

#LOVEGUITAR म छुटै किसिमको मान्छे, सबै सगँ मिल्न नसक्ने, पानी झै हरेक रङ्ग मा घुलन नसक्ने।

read more
mute video

Bazirao Ashish

काश! कुकुरमुत्ते का रङ्ग भी गुलाबी होता! लोग इसे भी प्यार की निशानी समझते। ●◆● #Moon #शायरी

read more
काश!
कुकुरमुत्ते का रङ्ग भी गुलाबी होता!
लोग इसे भी प्यार की निशानी समझते।

●◆●
◆आशीष●द्विवेदी◆

©Bazirao Ashish काश!
कुकुरमुत्ते का रङ्ग भी गुलाबी होता!
लोग इसे भी प्यार की निशानी समझते।

●◆●

#Moon

Rk Chhetri

#LOVEGUITAR मे अलग टाइपका इन्सान हु सभिके सात मिल नै सक्ता पानि के तर हर रङ्ग मे घुल नै सक्ता... .....

read more
mute video

Bazirao Ashish

असित - गिरि - समं स्यात् कज्जलं सिन्धु - पात्रे । सुर - तरुवर - शाखा लेखनी पत्रमुर्वी ॥ लिखति यदि गृहीत्वा #पौराणिककथा

read more
असित - गिरि - समं   स्यात्   कज्जलं  सिन्धु - पात्रे ।
सुर - तरुवर - शाखा          लेखनी           पत्रमुर्वी ॥
लिखति      यदि      गृहीत्वा      शारदा    सर्वकालं ।
तदपि    तव      गुणानामीश     पारं     न      याति ॥

अर्थ: हे प्रभु (शिव जी)! यदि नीले या काले रङ्ग के समान पर्वतों को सागर रूपी दवात में घोलकर काली स्याही और देवलोक के कल्पवृक्ष की शाखाओं की लेखनी/कलम बनायी जाय/जा सके।
यदि माँ शारदा/सरस्वती स्वयं अनन्तकाल तक आपके गुणों की व्याख्यान लिखती रहें तब भी आपके सम्पूर्ण गुणों का को नहीं लिखा जा सकता। अर्थात् आप आदि व अनन्त हैं।
🙏

©Bazirao Ashish असित - गिरि - समं   स्यात्   कज्जलं  सिन्धु - पात्रे ।
सुर - तरुवर - शाखा          लेखनी           पत्रमुर्वी ॥
लिखति      यदि      गृहीत्वा

Abhishek Yadav

कुछ झर रहा भीतर असंख्य रङ्ग बदल रहे समय करवट घूम रहा जो घनीभूत हो सिमट गया था वह अघन हो प्रसर रहा एक लोक गढ़ रहा, अपने से परे कई लोक। अर्पण क

read more
कुछ झर रहा भीतर
असंख्य रङ्ग बदल रहे
समय करवट घूम रहा
जो घनीभूत हो सिमट गया था
वह अघन हो प्रसर रहा
एक लोक गढ़ रहा, अपने से परे कई लोक।
अर्पण कर दिया 
सञ्चित जलधार महारुद्र की जटा को
फूट पड़ा निर्बाध सा जलप्रपात
महाविलय का यह संगम
समवेत हो बह गया..
और मैं हुआ अक्षुण्ण सनातन।
मैं अखण्डित ही रहा
और देखता रहा सबकुछ होते खण्ड-खण्ड
राम का अन्तिम वियोग
या कि कृष्ण से सब छूट जाना
किन्तु अस्तित्व ने सब बचा लिया।
मैं सृष्टि का वह गीत बना
जिसे ऋषियों के अनुभव ने गाया था
पल भर का चलना
और सदियों का ठहर जाना
मैंने इसे ही जीवनगीत बना लिया।
मेरा तारा खो गया
जहाँ नभ आर-पार था
मेरी अपनी उतनीं ही दुनिया थी
जितना आकाश उतरा था हँसते-हँसते मेरी मुट्ठी में
क्योंकि वह दुनिया भी बस इतनी ही थी।
मैंने छोड़ दिया था
सबेरे को उसी जगत के किसी कोने में
मेरी रात पर्याप्त थी
मुट्ठी खोलकर रात के आलोक में सिकुड़ लेने को
रात की बयार चली
अनकही बातें, अनकही ही रह गईं।
यह झरना भी रह गया
क्योंकि न मुझे याद है,और न याद है उस 'याद' को!
कि भूलना मेरे ही चेत के हिस्से था
याद आए तो आधे शून्य में कुछ लिखूँ।
अभी भी मुझे याद है, पूरे शून्य की उधारी।
अटपटा सा वह ज्वार
बड़बड़ करे, तो उसे भी सुन लेता हूँ
पकने व फूटने में
सदैव कोई बुलबुलाहट टीसती है
और मैं अपने एक हिस्से की अर्ध-चंद्रिका में
देखता जाता हूँ..
अपने दूसरे हिस्से का सूरज-तारा।।😍😍
     -✍️अभिषेक यादव कुछ झर रहा भीतर
असंख्य रङ्ग बदल रहे
समय करवट घूम रहा
जो घनीभूत हो सिमट गया था
वह अघन हो प्रसर रहा
एक लोक गढ़ रहा, अपने से परे कई लोक।
अर्पण क

lalitha sai

अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्द नुते गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते। भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भू #myworld #lalithasai

read more
माँ.. तू सर्व जगत जननी..
माँ.. तू सर्वांतर्यामी..❤️❤️ अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्द नुते
गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते। 
भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भू
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile