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Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी नत मस्तक है सरकारे हेल्थ जीडीपी का हिस्सा हो गया हेल्थ इंश्योरेंस का बढ़ा चलन नर्सिंग होम फाइवस्टार हो गया है खाँसी जुकाम भी अब लाइलाज हो गया जाँच के नाम पर,पेशा डॉक्टरों का लूटने का हथियार हो गया रोगों का इलाज तो बाद में होगा जेबो पर डाके डालने का विश्व स्तरीय हेल्थ संगठनों द्वारा मानक तय हो गया कमीशन का खुला खेल मरीज व्यापार का जरिया हो गया संवेदनाओं वाला डिपार्टमेंट असवेदनाओ का शिकार हो गया प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #Health संवेदनाओं वाला डिपार्टमेंट, असंवेदनाओ का शिकार हो गया #nojotohindi
~VanyA V@idehi ~
कदाचित विरह के पीर में... अब दिल ये रोयेगा उम्रभर ! और आहत शब्दों के व्यूह से , निकलना ही होगा निरंतर रिक्तियों से भर चुका है , जो प्रेम का सूखा समन्दर! गूंजता रहेगा मेरे कर्ण में , उन स्नेहसिक्त अधरों का स्वर ! ©V Vanya #विरह के स्वर
Lalit Tiwari
यदि हृदय की वेदना के तार खुद बजने लगें आंख से आंसू न आए पर हृदय ही रो पड़े वेदना के स्वर
Madanmohan Thakur (मैत्रेय)
डमरु के स्वर प्रवल नाद से
Ashish Deshmukh
हम हिंदी अंग्रेजी को ही बोली समझ बैठे संवेदनशील ह्रदय आंखों में जुबां रखता है ©Ashish Deshmukh #संवेदनाओं #भाषा
Ek villain
धर्म का मर्म यही सिखाता है कि यदि कोई व्यक्ति पीड़ा में है तो हमें उसकी अनुभूति कर उसके दुख दर्द को दूर करने की दिशा में तत्पर होना चाहिए शॉपिंग और भावनाएं व्यक्ति परखता के गुण आत्मविश्वास से लेकर आंतरिक विकास के लिए संवेदनशील होना आवश्यक है सामाजिक जीवन में जो संवेदनशीलता और अधिक महत्व रखती है मनुष्य अपनी समस्त भावनाओं के प्रति संवेदनशील होता है इसलिए दूसरों के प्रति सदैव ऐसा व्यवहार करना चाहिए जैसे आप स्वयं के प्रति चाहते हैं ऐसा कुछ ना करें जिससे किसी को ठेस पहुंचे यह सब अंतस में संवेदना के अंकुर फूटना ही संभव होता है ©Ek villain दूसरे के प्रति संवेदना
Ayush kumar gautam
भोर काल में मंदिर की पवित्र घंटी के स्वर छन छन करती उसके पायल की मधुर छनकार क्षमा कर दो प्रभू उसकी कशिश में आकर्षण अधिक है शायर आयुष कुमार गौतम भोर काल में पवित्र घंटी के स्वर
कंचन
जीवन में तस्वीरें कैद होते जा रहे हैं .हर तस्वीर में कुछ यादें बनते जा रहे हैं नयी तस्वीरों का आना भी जरूरी होता है.. कुछ पिछले तस्वीरें को डिलीट करने के लिए .. शायद हमार जीवन कुछ ऐसा ही है.. पुराने को पीछे छोड़ ..नये को हासिल करना .. लेकिन पुराने तस्वीरों को यूंही डिलीट करना कहा तक सही है ..वह सिर्फ तस्वीर नहीं होती .. होती है उसमें एहसास , खुशी , अपनापन और होती है वह आइना हमें बताने के लिए हम क्या से क्या बन रहें हैं .. सही भी तो है कि हम नया से नया नहीं पाते हैं .. पुराने तस्वीरों और यादों में जाकर ही नयी तस्वीर और याद बनाते हैं ©कंचन #तस्वीरों के साथ संवेदना
Parasram Arora
निस्तब्ध पर्वतों से चैतन्यदायिनी हवाएं सागर पर संध्याकालीन सुकुमार निलिमाएँ प्रीटी क़े सेतुः से कब जाकर. जुड़ीं कब बलवती हुई संवेदनाएं और कब . जाकर जुड़ीं शाश्वत की धाराओं से पता ही न चला संवेदनाएं..