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manju sharma
इक्कीसवीं सदी में यह क्या नया दौर आया है जो मदद करता है किसी की उसने ही धोखा खाया है यह कैसी आधुनिकता दिखा रहा इंसान जो अपने कहलाते हैं उन्होंने ही जहर पिलाया है इक्कीसवीं सदी
Dr Jayanti Pandey
जब जिंदगी में विकास न था, जिंदगी थी बस चैन वाली आंगन से भी दिखता था चांद,और रातें होती तारों वाली। दिन हो खाली तो बाग भी थे , दोस्त भी थे हम खयाली चार जोड़ी कपड़ों में भी , थी शान पूरी जमीदारों वाली। घर में सबके , घर का भाव था , हंसी ठठ्ठा और चाव था पैसे कम थे , कम ही सही ; सामाजिकता का निभाव था। छोटे बड़े त्यौहार सौ थे , सब की जगह थी खास वाली रोज कोई दौड़ ना थी , जिंदगी थी चैन ओ सुकून वाली। सफेदी चूने से हो पर हो और गुलजार हो सब की दिवाली होली खेलने सब निकलते, रहता नहीं था कोई भेद खाली। जब से यह विकास आया, इक्कीसवीं सदी हो गई बवाली दड़बों से घर में सिमटकर , घर भी खाली दिल भी खाली। समाज तो ऐसा है बिखरा , टूटती देखो संबंधों की डाली साधन जुटाने में ऐसे डूबे, जैसे सब ने मदहोशी की दवा ली। #उफ्फ ये इक्कीसवीं सदी का विकास #yqhindi #yqdidi #jayakikalamse #hindipoetry
Sanjeev Jha
'1' कहीं शोर और शराबे कहीं धूम और धड़ाके लगे मैदान में मेले दिखे सड़कों पर सन्नाटे पहली जो ढली शाम ये तमाशा बदल गया सदी का पहला विहान ढल गया वनभोज में था यौवन मेले में तरुणापा भूले भी नहीं देखा किसी चेहरे पे बुढ़ापा मित्रों के संग घुमा बाबा भूल गया सदी का पहला विहान ढल गया क्रमशः... ©संजीव #सदी #पहला #विहान #LostInCrowd
Sanjeev Jha
'2' सड़कों पे जो लिखे थे नववर्ष के संदेशे उसको कुचल रहे थे उसके भी जोड़े जूते कैसे कहूं कि सबका दिल बहल गया सदी का पहला विहान ढल गया गीतों के धुन पर ठुमके लगते रहे निराले हर मौज छू के जैसे पुलकित हुए किनारे अपनी गली में जैसे फिल्मिस्तान उतर गया सदी का पहला विहान ढल गया क्रमशः... ©संजीव #सदी #पहला #विहान #LostInCrowd
Sanjeev Jha
'3' तरह तरह के व्यंजन थालों में सजा भोजन फेंकी हुई पॉलीथिन में वो खोज रहे थे जूठन किसी की पार्टी हुई उसकी मुस्कान छल गया सदी का पहला विहान ढल गया किसी ने कह दिया था जनवरी झोली भरेगी बूढ़ी काकी मान ली थी अब मेरी खोली भरेगी अगली सुबह झोपड़तोड़ का एलान कर गया सदी का पहला विहान ढल गया (इतना ही) ©संजीव #सदी #पहला #विहान #LostInCrowd
Parasram Arora
इस सदी का पूरा मौन न जाने कौन पी गया है सब तरफ मासूम चीखे है सूखे की लपटे है नदी सूक गई है या फिर तड़पती मछलियों ने सागर का सारा पानी पी लिया है ©Parasram Arora इस सदी का......
Arora PR
एक सदी का सफर तुम पूरा कर चुके फिर भी इस धरती का क्षेत्रफल तुमसे नपा नहीं. दर्द तङप और रुसवाइयो का दौर आखिर कब तक चलेगा ...।............................... समझलो इन चीज़ो के लिए बेशकीमती वक़्त जाया करना ठीक नहीं ©Arora PR सदी का सफर