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Durgesh Kumar
मैं दुर्गेश कुमार साहू, पिता श्री रोहित राम साहू, उम्र 23, व्यवसाय लेखन , निवासी ग्राम - राखी नया रायपुर अटल नगर. यह घोषणा करता की मेरे जितने भी कविता, कहानी, सायरी, जोक मे SUN WRITER और DLM लिखा होता है, वे मेरे खुद के द्वारा मतलब दुर्गेश कुमार साहू के द्वारा लिखा हुआ है. जिसमें किसी का किसी भी प्रकार की कॉपीराइट नहीं है. यह मेरे खुद के मेहनत और तजुर्बा से लिखा हुआ पंक्ति है. अतः मेरे कोई भी पंक्ति, कविता, कहानी, जोक या सायरी किसी और के पंक्ति, कविता, कहानी, जोक या सायरी से कोई ताल्लुक़ात नहीं रखता है. अतः SUN WRITER, DLM और दुर्गेश कुमार साहू एक ही आदमी है. ©Durgesh Kumar घोषणा पत्र for identification
Anamika Nautiyal
चुनावी घोषणा पत्र घोषणापत्र यानी एक काग़ज़ पर अपने विचारों को लिखकर उसकी घोषणा करना शायद यही या फिर कुछ और मगर जब घोषणा पत्र के आगे चुनावी श
Sunita D Prasad
कल कुछ बच्चों को मैंने, चुनते देखा कागज़, हाय!कैसी थी वो मजबूरी, कांधे पर उनके, लटकी थी एक बोरी, बीन रहे थे जो वो, कुछ टॉफी के थे छिलके, कुछ फटी पुरानी पुस्तकों के, तुड़े मुड़े से पन्ने, थे नेताओं के कुछ, रंग-बिरंगी, खोखले घोषणा-पत्र, और यही नहीं , थे उनमें, 'चलो स्कूल' के, कुछ झूठे प्रचार-पत्र, हाँ, वो जो बीन रहे थे उनमें, उनका ही था बचपन, कुछ खोया सा, कुछ टूटा बिखरा सा, उनके कांधे की बोरी, थी खिल्ली, उन झूठे दावों की, जो अब तक, सफेद नकाबपोश थे करते आए,. हैं न ये प्रश्न भी, थोड़ा अजीब सा, कि ये मेरा भारत महान है कैसा..? जब इसका एक पूरा बचपन, है बिल्कुल बदरंग सा, जो... नंगे पाँव भटक रहा है गली-गली सड़क सड़क, लेकर लंगड़ा सपना, मेरे उज्जवल भारतवर्ष का..?? #yqdidi #yqpowrim #yqbaba # एक बचपन ऐसा... *एक बचपन ऐसा..* कल कुछ बच्चों को मैंने, चुनते देखा कागज़, हाय!कैसी थी वो मजबूरी, कांधे पर उनके,
Srk writes
एक दिन अपना पत्र मुझ पे नाज़िल हो गया,, 🤎 उस को पढ़ते ही मिरी सारी ख़ताएँ मर गईं ©Srk writes #पत्र,, प्रेम पत्र
Parasram Arora
एक दिन मैंने जुटाइ हिम्मत और करदी घोषणा कि मै ख़ुद ही ईश्वर हू पर ये घोषणा खोखली साबित हुई ज़ब मैंने देखा. मै ख़ुद पर भी. भरोसा नहीं. कर पा रहा हूँ ©Parasram Arora घोषणा
Shubhada
पुन्हा एकदा भग्न तळ्याशी पाऊल हे अवघडते एकांतीचा सूर गवसण्या शब्द विणावे म्हणते मर्मसुखाचे लेवून अत्तर उत्तर का गहिवरते अभिलाषेच्या ओंजळीतली शब्द प्रभा थरथरते चांदणंवाटा शोधत जेव्हा प्रतिमेत कला बावरते ती प्रतिमा घेऊन ऊराशी निनावी पत्र लिहावे म्हणते शुभदा© पत्र
पूर्वार्थ
पत्र प्रेम भरा जब मैने उसे लिखा, उस कागज में उनका ही चेहरा दिखा, फिर याद आया उनका फंसाना, वो भूल गए हमें याद है वो मौसम सुहाना, लिखा की तुम बिन अधूरे है हम, तुम्हारी ही याद हमें हर रोज है आती, कभी तो जागते रहते है रातों को करवटें बदलकर, कभी आंखों में ही कट जाती है रातें, कभी दिल बहुत उदास होता है, जब तुम्हारा ही अहसास होता है, लाख रहें मेरे पास हरदम खोए रहते है, ये दिल तो सिर्फ़ तुम्हारे ही पास होता है, फूल खिलते है रोज बिन तेरे क्या सुगंध, तुम्हारे लिए ही शायद है उनमें सुगंध, ऋतु बदली मौसम बदला हम खुद न बदलपाएं, ये प्रेम की रीत है चलो हम ही इसे निभाएं, खुश तो हो तुम भी हमारा है क्या, रहना नित हंसते हुए इससे अच्छा क्या, हंसी तुम्हारी रोते को हंसा देती है, दुखियों के सब दर्द मिटा देती है, आंखे तो सच में बहुत ही प्यारी है, ये सिर्फ़ प्रेम बरसाने बाली है, चेहरा दिल को बहुत शुकून देता है, शून्य को भी शिखर कर देता है, पत्र नही ये दिल के जज्बात है, इस दिल के सबसे ख़ास ही आप है,, ©पूर्वार्थ #पत्र