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Pushpraj Mishra
- ॐ गं गणपतये नम:- - कुण्डलिया - हे गौरी नंदन विघ्न हरण, मंगल कारक गणराज। सर्व सिद्धि दाता प्रभो, करहु सफल सब काज।। करहु सफल सब काज, नाथ विनवउं प्रभु तोहीं। बुद्धि निधान ज्ञान के सागर, एकदंत प्रभु सोहीं। कहते कवि पुष्पराज, जम्बु मोदक प्रिय तोहीं। असरण सरण हरो भव बाधा, ज्ञान दान दो मोहीं।। -पं. पुष्पराज मिश्र 'पुष्प' कुण्डलिया
Jitendra Kumar 'Noor'
कुण्डलिया निर्ममता तो देखिए, किया हृदय पाषाण। फिर भी उसके प्रेम में, व्याकुल हैं ये प्राण॥ व्याकुल हैं ये प्राण, ढूँढते फिरते उसको। रत्ती भर भी नहीं, हमारी चिन्ता जिसको। सूख गये हैं अश्रु, रक्त धमनी में जमता। वह निष्ठुर निश्चिन्त, हाय! ऐसी निर्ममता॥ ©Jitendra Kumar 'Noor' #कुण्डलिया
Durga Bangari
"संस्कृति और आधुनिक भारत की असल तस्वीर" एक बारी को भगवान के मुँह से अश्लील शब्दों का प्रयोग कदाचित गुस्सा दिलाता है। किन्तु प्रगतिशील समाज में जब सब मान-सम्मान,मर्यादा,धर्मों के महत्व बदल सकते है/मॉडर्न हो सकते है,तो भगवान के शब्दों में बदलाव क्यों नहीं! ऐसा पटकथा लेखन और उसका चित्रण होना चाहिए जो असल समाज को और राजनीति को आईना दिखा सके। #टिप्पणी #टिका टिप्पणी
Shivshankar pathak
Alone "कुण्डलिया-छन्द " धरती की जल शान है , जानो ऐको मोल । जल-संरक्षण अपना ले , पानी है अनमोल ।। पानी है अनमोल , ये जीवन सबको देता ।। नित्य है रत् परमार्थ में,ए जग से कुछ न लेता ।। कह शिवसागर सुनैं , सावधानी न बरती । सबकी जान पानी , पानी से ही धरती ।। -शिवशंकर पाठक "शिवसागर" सागर , मध्यप्रदेश ©Shivshankar pathak #alone#कुण्डलिया #छन्द
Shivshankar pathak
"कुण्डलिया-छन्द" राम-राम यहाँ जग रटै,जननी रटे न कोय । रटता जो इस जननि को,अधम भी सज्जन होय ।। अधम भी सज्जन होय,जो जननि शीश झुकावै । भोग इते सुख सबइ,फिर अन्त मोक्ष खौं पावै ।। कह शिवसागर सुनैं,इत कर एक नेक-काम । प्रथम रटौ जननी खौं,फिर पाछें सीता-राम ।। -शिवशंकर पाठक "शिवसागर " सागर, मध्यप्रदेश ©Shivshankar pathak #Sunrise#कुण्डलिया #छन्द
Yadav Rajveer
कहते हैं कि बेटे को पढ़ाओ तो सिर्फ बेटे शिक्षित होते हैं। मगर एक बेटी पढ़ाने से परिवार का एक जनरेशन शिक्षित हो जाता है। अब इसी फॉर्मूला को आज की नंगी पुंगी, दारूबाज और सुट्टेबाज लड़कियों पे अप्लाई कर के सोचो, उस आने वाली पीढ़ी का नतीजा जो ये लेकर आएंगी। ©Yadav Rajveer #टिप्पणी
Shivshankar pathak
"कुण्डलिया-छन्द" जल बिन सूनो जीवना , सूनो जौ संसार । जल बिन हम इस धरा पे , का करहें आहार ।। का करहें आहार , बिन जल कछु ना होवे । रे मानुष-मन जागजा , काहे चैन सें सोवे ।। कह शिवसागर सुनैं , कैंसे हो जल बिन कल । हर-इक् बूँद बचाले , है जगत का अमरत जल ।। -शिवशंकर पाठक "शिवसागर" सागर , मध्यप्रदेश ©Shivshankar pathak #seaside#कुण्डलिया #छन्द