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Parasram Arora
मेरे ह्रदय की राजधानी तक ज़ो राजपथ जाता था. उस पर आवागमन करने वाले अनगिनित वैचारिक वाहनो का तांता लगा हुआ था और वहशी हादसों का अभिशप्त दौर भी आरम्भ हो गया था..... तभी तो मै अपना तथाकथित पथ भूल कर भटकता हुआ अनजानी ऊबड़ खाबड़ पगडंडी पर पहुंच गया था.. और अब रही सही उम्मीद अपने गंतव्य तक पहुंचने की भी बची नहीं थीं क्योंकि इस कच्चे मार्ग पर सन्नाटा तो था ही साथ मे यहां ज़हरीली जंगली झाडिया भी थी और नफरत क़े काँटों से सज़ी इस पगडंडी पर चल कर मुझे अपने गंतव्य तक पहुंचना भी था ©Parasram Arora गंतव्य.......
Parasram Arora
ऐ दोस्त मेरी धीमी गति की यू गिला न कर मेरे लीए तो मेरा गंतव्य. मेरी यात्रा मे ही है क्योंकि यात्री मे ही यात्रा है. और मेरा गंतव्य भी मुझसे अलग नही है मेरे लीए तो खुद मेरी मंजिल यात्रा मे ही है मेरे होने मे ही मेरा सत्य है मेरे होने मे ही मेरी सत्ता है ©Parasram Arora गंतव्य.....
Parasram Arora
माना क़ि जीवन एक लम्बी यात्रा है. और यात्रा करने वाला यात्री भी नहीं चाहता क़ि उसकी यात्रा कभी थमे इसलिए कई बार वो मंद गति से चलने का प्रयास भी करता है ताकि गंतव्य उससे दूरी बनाये रखे और यात्रा की निरंतरता जारी रहे लेकिन कई यात्री ऐसे भी होते हैँ जो तेज गति से चलकर गंतव्य क़ेभी पार चले जाते हैँ और यात्रा क़े धीमी गति वाले आनंद से वँचित रह जाते हैँ ©Parasram Arora #गंतव्य.......
Chintoo Choubey
सफर का सुहाना होना सिर्फ इस बात पर निर्भर करता है कि, आपका गंतव्य कितना मनोहारी है, अगर आप का गंतव्य मनोहारी नहीं भी है तो, सफर का आनंद लिजीए और मन का होने दिजिए! गंतव्य
Parasram Arora
एकाकी पन. का अभ्यस्त हो चुका हूँ .......क्योंकि सभी प्रकार की व्यस्तताओं से अपना मोह भंग क़र. चुका हूँ ..शिथिल हो चुकी भावनाओ की नैया मै उस पार पहुँचा चुका हूँ .......अब मुझे जाना कहीं नहीं क्यों की अब पहुंचना मुझे कहीं नही . गंतव्य का समापन
Parasram Arora
मौन का ये सरल सुखद पलहै वैसे भी ख़ामोशी और तन्हाई का उपहार हर किसी क़ो मिलता ही कहा है? हमारी जड़ताओंऔर जकड़नो. क़ो स्वच्छन्द करने में. दूरगामी भूमिका निभाने में सक्षम है ये ख़ामोशी. और मौन की सिंहरन यही मौन ज़ब शून्य के झूले में बैठ कर झूलने लगता है तो मै सोचने के लिये विवश हो जाता हूं कि. मै कहा हूं? क्यों हूं? क्या हूं? मै इससे पहले कहा था?. क्यों था? मुझे आगे कहा जाना है? गनतव्य मेरा कहा है? ©Parasram Arora गंत्वय.....
अँकित आजाद गुप्ता
गुनहगार मुझे समझते हो तो बेशक सजा अता करना, जब समय मिले तो हकीक़त क्या है इसका पता करना। ©अंकित आज़ाद गुप्ता #shadesoflife #गुनहगार #सजा #अता #पता
Anamika
सेतु होती है घर की स्त्री.. जोड़े रखती है एक दूसरे को.. समेट लेती है सबके विचारों को.. बोझ ढो़ लेती है, जिम्मेदारियों के... पहुंचा देती है सही गंतव्य पर.. #स्त्री #सेतु #बोझ #गंतव्य #yourqoutehindi #tulikagarg