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Dhyaan mira

#dearzindgi mis unknown सतीश शैवालिया subhasmita Nayak rohi pathak Chaudhari Priyanshu #विचार

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❤️tera juth
"karna mera intezar"
humara sach...
"tere juth pe etbaar.
❤️

©dhyan mira #dearzindgi  mis unknown सतीश शैवालिया  subhasmita Nayak rohi pathak Chaudhari Priyanshu

Sarita Shreyasi

#जबतक वो बंधी नहीं थी, वो भी स्वच्छ, निर्मल जलधारा थी। किसी से कोई अपेक्षा नहीं, अपनी राह बहे जाना, जो मिला उसे ही स्नेह से नहला देना। मुस्क

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पर कटा कर उड़ने की चाहत, 
यही चाहत जान ले लेती है।

(Read in caption) #जबतक वो बंधी नहीं थी, वो भी स्वच्छ, निर्मल जलधारा थी। किसी से कोई अपेक्षा नहीं, अपनी राह बहे जाना, जो मिला उसे ही स्नेह से नहला देना। मुस्क

Aprasil mishra

प्रारब्ध पर शैवालिनी रोती नहीं, निस्सीम तृष्णा की हदें होती नहीं. तटबंध के स्पर्श में सिमटी हुई, धारा अमिट विश्वास को खोती नहीं. #Struggle

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" नदी के किनारों की वेदनायें "  प्रारब्ध  पर  शैवालिनी  रोती  नहीं,
निस्सीम तृष्णा की  हदें  होती नहीं.
तटबंध  के   स्पर्श  में  सिमटी  हुई,
धारा अमिट विश्वास को खोती नहीं.

Aprasil mishra

********************************* पीड़ायें तो पीड़ायें हैं विह्वल पीड़ायें क्या जाने, है हिमनद में यों तपी देह कि वह बह बह कर ही म #Pain #Struggle #tears #river #View #yqhindi #हरिगोविन्दविचारश्रृंखला

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"जलप्लावन : शैवालिनि(नदी) पीड़ा"
( अनुशीर्षक👇)  *********************************

पीड़ायें  तो  पीड़ायें   हैं   विह्वल  पीड़ायें  क्या  जाने,
है हिमनद में यों तपी देह कि वह बह बह कर ही म

Priyanjali

आपलोगों के बहुमूल्य सुझावों का प्रतीक्षा रहेग.........🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 देखो नदी कुछ कहती है...... छल छल कल कल जो बहती है.... उदगम से विगम त #Life #experience #जीवन #Water #कविता #river #nojotowriters #अनुभव #NojotoWriter #सीख

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देखो नदी कुछ कहती है......
        छल छल कल कल जो बहती है....
उदगम से विगम तक........   
    शैशवकाल से यौवन होकर अंत तक......
                     सागर में विलीन होकर समाहित होने तक.......        
       देखो नदी कुछ कहती है........      
 बहुत कुछ सिखाती है...........
               छल छल कल कल जो बहती है........!!

उद्गम स्थल शैशव सा चंचलता से भरा.........
मध्यम स्थल यौवन सा उन्माद से गुज़रा......
विगम स्थल में शांत हो जाती है.................
देखो नदी कुछ कहती है......
             छल छल कल कल जो बहती है......!!

उदगम में शिशु सा शोर करती है............
बच्चों सा ही अपनी मनमानी करती है.....
पहाड़ पर्वतों से गिरती है.....
               बड़े बड़े चट्टानों को भी तोड़ देती है.....
  देखो नदी कुछ कहती है.......
छल छल कल कल जो बहती है...........!!

मध्य भाग में यौवन सा उन्माद में चलती है....
   जो मिलता है बहा ले जाती है.....
सही दिशा मिल जाए तो........
   विद्युत को भी जन्म देती है........
   न मिले तो विकराल रूप धारण कर......
    बाढ़ के रूप में प्रचंड विनाश करती है....
देखो नदी कुछ कहती है.................
        छल छल कल कल जो बहती है............!!

विगम स्थल में बृद्ध सा शांत हो जाती है.......!
मानो अनुभवों का सागर लिए......
अपने सफ़र को याद करती है.......
        शैवाल भी उग आते हैं वक्ष में इसके......
    मानो सीना तान आँख दिखाते.........
लेकिन अब थक चुकी है यूँ लड़ते लड़ाते..........!!

इसलिए शांति से किनारे कर उन्हें....
संगम की ओर प्रस्थान करती है......
देखो नदी कुछ कहती है...............
   छल छल कल कल जो बहती है......!!

कुछ धाराएं छूट जाती हैं............
तो कुछ आकर मिल जाती हैं.......
आने जाने को लेकर..................
कोई अभियोग न असंतोष प्रकट करती हैं..........
जाने वाले को जाने देती है..........
                   मातृसमः हृदय से आजीवन जल देकर.....        
उसके प्रवाह को गति देती है......  
देखो नदी कुछ कहती है............
बहुत कुछ सिखाती है...............
छल छल कल कल जो बहती है........!!!!!

©Priyanjali आपलोगों के बहुमूल्य सुझावों का प्रतीक्षा रहेग.........🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


देखो नदी कुछ कहती है......
        छल छल कल कल जो बहती है....
उदगम से विगम त

Sunita D Prasad

उसके होठों का ध्वनित उल्लास श्रृंगारहीन है ! क्या किसी हँसते हुए चेहरे पर बेतरतीबी देखी है ? जैसे कई रातों की अनभिज्ञता और अंधकार में जन्म

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उल्लास जी की कविताएं 
उसके होठों का ध्वनित उल्लास 
श्रृंगारहीन है !
क्या किसी हँसते हुए चेहरे पर बेतरतीबी देखी है ?
जैसे कई रातों की अनभिज्ञता और अंधकार में जन्म
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