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Tarun Vij भारतीय
व्यंग्यात्मक छंद मंदिरों में आज घंटियां बजा रहे जो, कल तुम्हारे हाथ से झुनझुना बजवाएंगे। आज दर दर फिरते है वोट मांगते जो, कल तुम्हारे हाथ में कटोरा थमवाएंगे। लगाके आग शहर में श्मशान जैसी, उसपर फिर चुनावी रोटियां सिकाएंगे। नेता है वो उनके शास्त्र में यही लिखा है, इंसानों को लड़ा के खुद मंत्री बन जाएंगे। दुमछल्ला शहर भर में हुए दंगें, हुए जब मजहब नंगे। इंसानी लहूं में आज देखो गीता कुरान है रंगे। व्यंग्यात्मक शैली में लिखा मेरा पहला छंद जो कि #राजनीति और #धर्म पर एक कटाक्ष है। इस प्रकार की रचना की प्रेरणा मुझे प्रसिद्ध कवि सरदार प्रता
अज्ञात
प्रथम आप सभी प्रबुद्ध रचनाकारों के चरणों में वंदन करता हूं.🙇♂️🙇♂️🙏इस लेख के माध्यम से इस ऐप पर विविध रचनाकारों की अनमोल रचनाओं को पढ़ते हुये आज बरबस ही दो पंक्तियों की एक रचना पर नज़र पड़ी..और उस रचना को पढ़कर जिन भावों का मेरे अंतर में प्राकट्य हुया उन्हें जस के तस आपके समक्ष प्रगट करता हूं, रचना के संदर्भ में ही यह सारा लेख लिखता हूं, कहां तक लिख पाउँगा नही जानता कितना लिख पाउँगा नही जानता मगर जब तक लिखूंगा नही तब तक हृदय अशांत रहेगा और एक बात जिनकी रचना के बारे में आगे कहूंगा बिलकुल निष्पक्ष ढंग से कहूंगा। कृपया शेष भाग कैप्शन में पढ़कर कृतार्थ करें 🙏🙏🙏🙏🙏 ©Adv. R. Kumar रचना इस पेज के शीर्ष भाग पर अंकित है जो एक विदुषी महिला रचनाकार ने गढ़ी है, और अपनी इस रचना के माध्यम से मानो स्त्री पक्ष की ओर से पुरुष पक्ष
ishwar
ख़ुदा ने तुम्हे इंसान बनाया है तो इंसानियत खरीदो कुत्ते नही । वरना संगत का असर तो आएगा , फिर पूँछ ही हिलाओगे इंसानो के सामने ।। व्यंग्यात्मक परिदृश्य।
अभिषेक सिंह
शराब कहने को तो ये हर मर्ज की दवाई है, पर इसी से घर मे आफत आई है, कुछ लोग इसे तनाव का इलाज बताते है,तो कुछ तन्हाई का साथी कहते है, पीने वाले तो इसे अपनी महबूबा भी कहते है, अगर ये इतनी जरूरी है तो इसे छिप कर पीना क्यूँ, अगर जरूरी नही है तो व्यर्थ में चर्चा क्यों?? #शराब,#व्यंग्यात्मक कटाक्ष
करण शुभकरण
जो टूट गया वो वादा था खत मिला जो उसका आधा था वो सुबह को यही सोच कर आई थी मेरे पास रात न रुकने का तो उसका शुरू से ही इरादा था किया तो उसने भी था इश्क मुझसे ग़ालिब उसका थोड़ा और मेरा थोड़ा ज्यादा था मासूमियत मगरूरियत को छुपा लेती है मैं पढ़ न सका चेहरे पर उसके मेकअप बहुत ज्यादा था #कहानी #गजल #शायरीलवर #व्यंग्यात्मक
kamal
लङकियां भाव खा रही है लङके धोखा खा रहे हैं पूलिस रिश्वत खा रही है नेता माल खा रहे हैं किसान जहर खा रहा है जवान गोली खा रहा है क्या मेरा भारत बदल रहा है 🤔🤔🤔🤔🤔😴😴 ©kamal #Information and education. व्यंग्यात्मक टिप्पणी
Dilkhush Rao Suras
परिवर्तन लाना चाहते हो तो भीड़ वाली रैली बदलो काम सभी नेता कर लेंगे पहले अपनी शैली बदलो ©Kavi Dilkhush Rao Suras शैली बदलो